देवउठनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु की योगनिद्रा से जागृति का प्रतीक है

 देवउठनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु की योगनिद्रा से जागृति का प्रतीक है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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गृहस्थ लोग देवउठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर को रखेंगे, जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग यह व्रत 2 नवंबर को करेंगे. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं. कहा जाता है कि इसी दिन से सभी देवता भी जागते हैं और चातुर्मास का अंत हो जाता है.

इस दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजा करने से सभी पाप मिट जाते हैं और मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है. व्रत के दौरान देवउठनी एकादशी की कथा सुनना बहुत शुभ माना जाता है.

देवउठनी एकादशी व्रत कथा

बहुत समय पहले एक राजा था जो बहुत धर्मी और न्यायप्रिय था उसके राज्य में हर कोई — चाहे राजा हो, मंत्री हो या आम जनता — सब एकादशी के दिन व्रत रखते थे. उस दिन कोई भी अन्न नहीं खाता था, केवल भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति होती थी.

एक दिन दूसरे राज्य से एक आदमी उस राजा के दरबार में नौकरी मांगने आया. राजा ने कहा, “मैं तुम्हें नौकरी दूँगा, लेकिन एक शर्त है — हमारे राज्य में एकादशी के दिन कोई अन्न नहीं खाता, उस दिन सिर्फ फलाहार होता है.” वह आदमी बोला, “ठीक है महाराज, मैं मानता हूँ.”

कुछ दिन बाद एकादशी आई. सब लोग फलाहार कर रहे थे, उस आदमी को भी फल और दूध दिया गया. लेकिन उसका पेट नहीं भरा. वह राजा के पास जाकर बोला, “महाराज, मुझसे भूखा नहीं रहा जाता, कृपया मुझे अन्न दे दीजिए.” राजा ने समझाया, “आज एकादशी है, अन्न खाना मना है.” लेकिन वह आदमी नहीं माना. आखिर में राजा ने कहा, “ठीक है, जो करना है करो,” और उसे अन्न दे दिया.

वह आदमी नदी किनारे गया, स्नान किया और वहीं अन्न पकाने लगा. जब खाना तैयार हो गया, तो उसने भगवान विष्णु को पुकारा — “आइए प्रभु! भोजन तैयार है.”

तभी भगवान विष्णु स्वयं पीताम्बर (पीले वस्त्र) धारण किए, चार भुजाओं वाले रूप में प्रकट हो गए. वे उसके साथ बैठकर प्रेम से भोजन करने लगे. भोजन के बाद भगवान अदृश्य हो गए.

कुछ दिन बाद अगली एकादशी आई. इस बार वह आदमी राजा से बोला, “महाराज, इस बार मुझे दुगना अन्न चाहिए.”
राजा ने आश्चर्य से पूछा, “क्यों?” वह बोला, “महाराज, पिछली बार मेरे साथ भगवान विष्णु भी भोजन करने आए थे, इसलिए अन्न कम पड़ गया.”

राजा यह सुनकर हैरान रह गया. उसने सोचा, “मैं तो सालों से व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ, फिर भी मुझे भगवान के दर्शन नहीं हुए, और इस व्यक्ति को हुए!” राजा ने कहा, “अगली बार मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा और देखूंगा.”

अगली एकादशी को राजा उसके साथ गया और पेड़ के पीछे छिप गया. वह व्यक्ति फिर स्नान करके भोजन बनाने लगा और भगवान को पुकारने लगा — “हे विष्णु! आइए, भोजन तैयार है.”

लेकिन इस बार भगवान नहीं आए। शाम तक वह पुकारता रहा, फिर दुखी होकर बोला, “हे प्रभु, अगर आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूँगा.”

इतना कहते ही वह नदी की ओर बढ़ा. उसके सच्चे भाव और प्रेम को देखकर भगवान तुरंत प्रकट हुए और बोले — “रुको भक्त! मैं आ गया हूं”

भगवान उसके साथ बैठकर फिर भोजन करने लगे. भोजन के बाद बोले, “अब तुम मेरे धाम चलो,” और उसे अपने दिव्य विमान में बिठाकर वैकुंठ ले गए.

यह सब देखकर राजा आश्चर्यचकित रह गया. उसके मन में विचार आया “मैं तो वर्षों से पूजा-पाठ करता हूं, लेकिन मुझमें सच्ची भक्ति नहीं थी. यह व्यक्ति नियम तो तोड़ गया, पर उसका मन भगवान के प्रति सच्चा था, इसलिए प्रभु ने उसे दर्शन दिए.”

उस दिन के बाद राजा का जीवन बदल गया. उसने समझ लिया कि भगवान की प्राप्ति केवल व्रत या उपवास से नहीं, बल्कि सच्चे मन, श्रद्धा और प्रेम से होती है. उसने भी उसी दिन से पूरे भाव से पूजा शुरू कर दी. अंत में उसे भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई.

देवउठनी एकादशी की यह कथा हमें सिखाती है कि व्रत का असली मतलब सिर्फ अन्न त्यागना नहीं, बल्कि मन की पवित्रता और भगवान के प्रति सच्चे भाव रखना है. जब भक्ति सच्ची होती है, तो भगवान खुद अपने भक्त के पास आते हैं.

पौराणिक कथा के अनुसार, देवउठनी एकादशी पर शंखासुर का वध किया था। यह युद्ध बहुत ही लंबा चला था। शंखासुर का वध करने के बाद भगवान विष्णु क्षीर सागर में जाकर सो गए थे। इसके बाद वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का उठे थे। इस दिन व्रत करने और पूरे विधि विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

 

 

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