नये वर्ष में अर्थव्यवस्था बढ़ने की उम्मीद है,कैसे?

नये वर्ष में अर्थव्यवस्था बढ़ने की उम्मीद है,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

जल्द ही हम नये साल में होंगे और लगभग एक माह बाद वित्त मंत्री अप्रैल, 2022 से शुरू होनेवाले वित्त वर्ष के लिए बजट पेश करेंगी. आर्थिक सर्वेक्षण के माध्यम से देश के आर्थिक प्रदर्शन के बारे में भी हमें जानकारी मिलेगी. वैसे हर माह या पखवाड़े आनेवाले सूचकांकों से हमें स्थिति का पता चलता रहता है और आर्थिक सर्वेक्षण की वैसी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती. इस आलेख में उन इच्छाओं का विवरण नहीं है, जिन्हें बजट में शामिल किया जाना चाहिए, बल्कि यह अगले साल की प्राथमिकताओं की पहचान के बारे में है.

वर्तमान आर्थिक स्थिति का सकारात्मक पक्ष यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी है और दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- अमेरिका और चीन- की वृद्धि दर पांच प्रतिशत से अधिक है. अधिक वृद्धि से अमेरिका में कुछ समस्याएं भी पैदा हो रही हैं. वहां मुद्रास्फीति की दर लगभग सात प्रतिशत पहुंच गयी है, जो चार दशकों में सबसे अधिक है. यह बहुत अधिक मुद्रा आपूर्ति और अब श्रम व कौशल की कमी से गंभीर हो रही है.

वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेज बढ़त भारत जैसे विकासशील देशों के लिए निर्यात का मौका होना चाहिए. असल में, इस साल भारत का वस्तु निर्यात 400 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है, जो पिछले साल से करीब 40 फीसदी ज्यादा है. दूसरे अच्छे सूचक बढ़िया कर संग्रहण (जो पिछले बजट में तय लक्ष्य से बहुत अधिक है), बढ़ता शेयर बाजार और कंपनियों का उच्च मूल्यांकन, कॉर्पोरेट सेक्टर में अच्छा मुनाफा (कम से कम बड़े कॉर्पोरेट का) तथा बैंकों के खाते में फंसे कर्जों का कम अनुपात हैं.

नकारात्मक पहलुओं में सबसे पहले ओमिक्रोन को लेकर चिंता है. महामारी की तीसरी लहर कितनी बड़ी हो सकती है? यह कितनी घातक हो सकती है? क्या इससे लॉकडाउन लगाने की नौबत आ सकती है? ये सभी आशंकाएं कुछ हद तक कम गंभीर हैं, क्योंकि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बेहतर तैयारी है, व्यापक टीकाकरण हुआ है, सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है, कोरोना से बचाव के निर्देशों के पालन पर अधिक जोर है, स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने को लेकर समझ अच्छी है. साथ ही, यह स्वीकारता भी है कि जीवन चलता रहना चाहिए.

भले ही यह वैरिएंट बहुत अधिक संक्रामक है, पर कम घातक है, लेकिन यह कहने का अर्थ यह नहीं है कि हमें लापरवाह हो जाना चाहिए. चिंता की बात अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में दबाव है, खासकर रेहड़ी-पटरी, किराना, मॉल के कामगारों की स्थिति ठीक नहीं है. मनरेगा के तहत काम की बढ़ती मांग को देखते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी दबाव में है. बहुत अच्छी फसल की उम्मीद के बावजूद अनाजों के भाव नीचे हैं, जिस कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग हो रही है.

खाद्य तेलों (अधिकतर आयातित) तथा दूध और पॉल्ट्री जैसी प्रोटीन स्रोतों के महंगे होने से खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ती जा रही है. ग्रामीण बेरोजगारी दर बढ़ रही है तथा ग्रामीण मजदूरी में ठहराव आ गया है. विभिन्न आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में श्रम भागीदारी दर महज 40 प्रतिशत रह गयी है, जो एशिया में सबसे कम है.

यह 18 से 60 साल आयु के उन लोगों का अनुपात है, जो रोजगार में हैं या रोजगार की तलाश में हैं. बांग्लादेश में यह दर 53, पाकिस्तान में 48 और नेपाल में 74 प्रतिशत है. क्या भारत में यह कम दर हतोत्साहित कामगारों की ओर संकेत है, जो काम मिलने की उम्मीद भी छोड़ चुके हैं. भारत में महिला श्रम भागीदारी की दर 20 प्रतिशत है, जो समकक्ष देशों में पहले से ही सबसे कम है.

बढ़ती मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के साथ विषमता में वृद्धि भी हो रही है. विश्व विषमता रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी हिस्सा शीर्ष के 10 फीसदी लोगों के हाथों में है. इनमें से शीर्षस्थ एक फीसदी के पास अकेले 22 फीसदी राष्ट्रीय आय है, जबकि सबसे निचले आधे लोगों के पास राष्ट्रीय आय का केवल 13 प्रतिशत हिस्सा है.

इन आंकड़ों के लिहाज से भारत दुनिया की सबसे बड़ी विषम अर्थव्यवस्थाओं में है. इसकी पुष्टि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों पर आधारित नीति आयोग की रिपोर्ट से भी होती है, जिसमें बताया गया है कि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत अधिक बहुआयामी गरीबी दर है.

नीति आयोग आय का आकलन नहीं करता है और इसमें शिशु मृत्यु दर, परिसंपत्ति और शिक्षा का सर्वेक्षण होता है. ओमिक्रॉन, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, गरीबी और विषमता से भी परे बैंकों से कम कर्ज लेने, निजी क्षेत्र से बड़ी परियोजनाओं में अपेक्षित निवेश न होने तथा स्कूलों में छात्रों की अनुपस्थिति जैसे कारक भी चिंता के कारण हैं. इन दो सालों में स्कूली शिक्षा की स्थिति का लंबा नकारात्मक असर भारत के मानव पूंजी विकास पर पड़ सकता है.

इसीलिए अगले साल की प्राथमिकताएं स्पष्ट दिख रही हैं. सबसे पहले हमें बिना कड़ी पाबंदियों के ओमिक्रोन के लिए तैयार होना है. टीकाकरण की प्रगति को बढ़ाना होगा. हर जगह यह सुनिश्चित करना होगा कि कम से कम 50 फीसदी छात्रों के साथ स्कूल खुलें. तात्कालिक तौर पर सरकार की मंजूरी से कौशल विकास और प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए.

अगर लोगों को स्थायी रोजगार देने की बाध्यता न हो, तो कंपनियां प्रशिक्षुओं को तुरंत काम देंगी. राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन परियोजनाओं को गतिशील करना शुरू कर देना चाहिए. लगभग 20 लाख करोड़ रुपये सालाना खर्च करने के वादों पर अमल से नौकरियों और सहायक कारोबारों में बढ़त होगी. चौथी बात, निरंतर निर्यात वृद्धि के लिए समर्थन मिलता रहना चाहिए. कृषि निर्यात को बाधित नहीं करना चाहिए.

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को सफल बनाना होगा. भारत को निर्यात के क्षेत्र में बांग्लादेश से सीखना चाहिए, जिसने एक दशक से अधिक समय तक कपड़ा निर्यात पर ध्यान दिया है और आज वहां भारत से अधिक प्रति व्यक्ति आय है. करों के बोझ से भी राहत मिलनी चाहिए.

अगले साल अर्थव्यवस्था बढ़ने की उम्मीद है. कारोबारी और उपभोक्ता भरोसा बढ़ने के साथ निजी निवेश भी बढ़ेगा. ऐसा होने के लिए पहले उल्लिखित उपायों को लागू करना होगा और इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारों के स्तर पर काम किया जाना चाहिए.

Leave a Reply

error: Content is protected !!