होलिका दहन का पर्व 13 मार्च को मनाया जाएगा

होलिका दहन का पर्व 13 मार्च को मनाया जाएगा

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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होलाष्टक शुक्रवार से प्रारंभ हो चुकी है। इसके साथ ही होली पर्व की तैयारियां भी शुरू हो जाएगी। इस बार होलिका दहन का पर्व 13 मार्च को मनाया जाएगा। इस बार भी होलिका दहन पर भद्रा का वास रहेगा। सुबह से रात्रि तक तकरीबन 13 घंटे तक भद्रा रहेगी।

पंडितों का कहना है कि भद्रा समाप्ति के बाद ही होलिका दहन करना श्रेष्ठ होता है, विशेष परिस्थितियों में प्रदोष काल में भी होलिका दहन किया जा सकता है। इस बार ग्रह, नक्षत्रों की युति से इस बार कई शुभ योग बनेंगे। इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, धृति और शश योग का भी संयोग रहेगा।

होलाष्टक का दोष मान्य नहीं

होली के आठ दिन पहले का समय होलाष्टक कहलाता है। इस दौरान कुछ राज्यों में होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन मध्यभारत में होलाष्टक का दोष नहीं लगता है। पं. गंगाप्रसाद आचार्य ने बताया कि मध्यभारत में होलाष्टक का दोष मान्य नहीं है। यह दोष सतलज, रावी, व्यास, सिंधु और झेलम इन पांच नदियों के किनारे बसे राज्यों में लगता है। जिसमें पंजाबी, जम्म कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान का कुछ हिस्सा आता है।

शेष स्थानों पर इसका दोष मान्य नहीं है। शास्त्रों में भी होलाष्टक का दोष मान्य नहीं किया गया है। दूसरी ओर ज्योतिष मठ संस्थान के पं. विनोद गौतम का कहना है कि इस बार होलिका दहन के दिन 13 मार्च को सूर्य और शनि कुंभ राशि में एक साथ रहेंगे। इस दिन शनि अपनी स्वराशि कुंभ में रहेगा। यह संयोग देश दुनिया के लिए विशेष शुभ होगा।

भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन शुभ

सुबह से रात्रि तक भद्रा आमतौर पर होलिका दहन के दिन भद्रा की स्थिति रहती है, इस बार भी भद्रा की स्थिति रहेगी। ब्रह्मशक्ति ज्योतिष संस्थान के पं. जगदीश शर्मा ने बताया कि भद्रा सुबह 10.35 मिनट से प्रारंभ होगी, इस बार भद्रा का वास धरती पर रहेगा, इसलिए भद्रा समाप्ति के बाद ही होलिका दहन करना शुभ रहेगा।

भद्रा रात्रि 11:26 मिनट तक रहेगी, तब ही होली जलेगी। इसके साथ ही इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, धृति योग और शश योग का भी संयोग बन रहा है, जो विशेष तौर से शुभ माना गया है। इसलिए इस दिन का विशेष महत्व हैा
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए होलिका का विनाश किया था। इस बार होलिका पर भद्रा का साया रहेगा। ऐसे में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च को रात्रि 11 बजकर 26 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इस दिन लकड़ी, कांडे और उपले जलाकर होलिका की अग्नि प्रज्वलित की जाती है। परंपरा के अनुसार, नई फसल के गेहूं के दाने होलिका में अर्पित किए जाते हैं। साथ ही नवग्रह की लकड़ियां डालकर नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने की मान्यता है। परंपरागत रूप से होलिका की परिक्रमा की जाती है और इसमें कच्चे सूत का धागा बांधा जाता है। इसके बाद होली की राख को घर में लाकर तिलक करने की परंपरा है, जिससे परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

पंचांग अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा के साथ भद्रा का साया रहेगा। ज्योतिर्विद पंडित सुरेंद्र शर्मा के अनुसार, रात 10 बजकर 44 मिनट पर भद्राकाल समाप्त होगा। पूर्णिमा 13 मार्च की सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरू होगी। इसका समापन 14 मार्च की दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगा। भद्रा काल में होलिका दहन अशुभ माना जाता है। इसलिए होलिका दहन भद्रा समाप्ति के बाद ही होगा। 14 मार्च को होली वाले दिन चंद्र ग्रहण भी रहेगा। मगर यहां चंद्र ग्रहण का सूतक मान्य नहीं होगा क्योंकि ये ग्रहण भारत में नजर नहीं आएगा।

कब है होली: होली का त्योहार पूर्णिमा के अगले के अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस साल रंगों वाली होली 15 मार्च को खेली

जाएगी।

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