उत्तरोत्तर उन्नति और समायोजन का संदेश है मकर संक्रांति का त्योहार
यह त्योहार प्रकृति के परिवर्तन, फसल कटाई के उल्लास को भी करता है प्रतिबिंबित
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सीवान। सनातनी परंपरा में हर त्योहार अपना विशिष्ट सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व रखता है। इसी क्रम में मकर संक्रांति त्योहार का भी विशिष्ट धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व है। यह त्योहार हमें प्रकृति के साथ जुड़ने और उसके परिवर्तनों के प्रति सम्मान के भाव का संदेश तो देता ही है। साथ ही, उत्तरोत्तर उन्नति और समायोजन का संदेश भी देता है। यह त्योहार संपूर्ण भारत वर्ष में विविध स्वरूपों में मनाया जाता है।
मकर संक्रांति त्योहार प्रत्येक वर्ष जनवरी में मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक होता है जो बेहद शुभ मुहूर्त माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उतरायण होता है, जिसका अर्थ यह होता है कि सूर्य अब उत्तर की ओर बढ़ने लगा है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह त्योहार यह संदेश देता है कि हमें प्रकृति के परिवर्तन को स्वाभाविकता और आत्मीयता से अंगीकार करना चाहिए और उसके साथ समायोजन को महत्व देना चाहिए। साथ ही, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त करने के लिए हमें सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। यह उन्नति सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक उन्नति को संदर्भित भी करता है। हर संदर्भ में उन्नति ही हमारे जीवन की सार्थकता को साबित करता है।
यह अलग बात है कि मकर संक्रांति त्योहार को देश के अलग अलग भागों में अलग अलग नामों से जाना जाता रहा है। पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में उगादि, केरल में मेकरबिलक्कू और विशु, ओडिशा में माघी, बिहार में तिल संक्रांति झारखंड में साक्रांति आदि ये सभी फसल कटाई के ही उत्सव हैं। मकर संक्रांति के दिन परंपरागत रूप से कई तरह के कार्यक्रमों में लोग भाग लेते हैं। इस दिन प्रकृति के संचालक आदिदेव भास्कर की पूजा की जाती है, उन्हें श्रद्धापूर्वक जलांजलि प्रदान की जाती है। पवित्र नदियों, सरोवरों में स्नान किया जाता है। यथा शक्ति दान पुण्य किया जाता है। इस अवसर पर विशेष तौर पर तिल गुड़ से बने प्रसाद का सेवन किया जाता है।
शीत ऋतु में गुड़ और तिल का सेवन आरोग्य की दृष्टि से बेहद लाभदायक माना जाता है। गुड़ प्राकृतिक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, जो शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है। गुड़ में विटामिन बी, कैल्शियम , फास्फोरस, आयरन भी पाए जाते हैं। गुड़ पाचनतंत्र की बेहतरी और कफ सर्दी के उपचार में भी लाभदायक रहता है। वहीं तिल में एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है।
तिल में भी विटामिन बी, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फास्फोरस आदि पाए जाते है। तिल में मौजूद ओमेगा 3 फैटी एसिड, हृदय के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। तिल के बीजों में मौजूद फाइबर पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है। जब आरोग्य बेहतर रहेगा, तभी हम उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हैं।मकर संक्रांति के अवसर पर कहीं कहीं दही चूड़ा तो कहीं खिचड़ी का सेवन किया जाता है। अन्य कई तरह के पारंपरिक व्यंजनों को भी तैयार किया जाता है। परिवार के लोग एक साथ मिलकर त्योहार का आनंद उठाते हैं। इस मौके पर पतंग उड़ाने की परंपरा रही है। उड़ती पतंग भी संदेश आगे बढ़ने का ही देती है।
मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा विशेष तौर पर की जाती है, जो जीवन और ऊर्जा के स्रोत हैं। इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जो सनातनी परंपरा का एक बेहद शुभ मुहूर्त माना जाता है। मकर संक्रांति पर पितरों को भी जल अर्पित कर उनके प्रति श्रद्धा भाव का प्रकटीकरण किया जाता है।
मकर संक्रांति का पर्व कृषि से भी विशेष तौर पर जुड़ा हुआ है। इसी समय रबी फसलों की कटाई का भी समय होता है। इस समय किसानों में विशेष उल्लास और उमंग पाया जाता है। गांवों में इस त्यौहार के अवसर पर विशेष उमंग देखा जाता है।
मकर संक्रांति का त्योहार एक बेहद सकारात्मक ऊर्जा को भी प्रकट करता है। इस अवसर पर आत्म चिंतन और आत्म विश्लेषण का भी अवसर होता है। इस समय स्वबोध के जागरण का भी सुअवसर प्राप्त होता है। यह त्योहार नई शुरुआत का भी संदेश देता है। सामंजस्य और समन्वय का भी एक प्रबल संदेश मकर संक्रांति का त्योहार देता है।
मकर संक्रांति का त्योहार हम परंपरागत आस्था और श्रद्धा से मनाएं। साथ ही, इस त्यौहार के धार्मिक, वैज्ञानिक महत्व को समझते हुए इसके संदेश को संजीदगी से महसूस करते हुए अपनी उन्नति के प्रति समर्पित प्रयास और समायोजन के भाव को अंगीकृत करने का प्रयास करना चाहिए।
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