सावन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वैदिक पंचांग अनुसार आज 29 जुलाई को नाग पंचमी का त्योहार है। ये पर्व हर वर्ष सावन माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नागदेवताओं की पूजा- अर्चना करने का विधान है। वहीं कई लोग नाग पंचमी पर के दिन व्रत भी रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन सच्चे मन से व्रत रख भोलेनाथ और नाग देवता की पूजा करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। सथ ही कई जगह इस खास पर्व पर सांपों को दूध भी पिलाया जाता है। मान्यता है दूध पिलाने से जीवन के दुखों से निजात मिल सकती है और आर्थिक तंगी भी दूर होती है। क्योंकि नाग देवता को भगवान शिव का गण माना जाता है।
सँपेरा आता और खेल-खेल में ही बहुत तरह की जानकारियाँ देता – कितने तरह के, कैसे-कैसे साँप होते हैं? वे क्या-क्या खाते हैं? कैसी उनकी चाल होती है? उनमें से कौन-कौन से ज़हरीले हैं? अलग-अलग साँपों के जहरों को कैसे उतारा जाता है? ऐसी न जाने कितने तरह की जानकारियाँ, सहज ही बच्चों को, खेल-खेल में हो जाती थी।
वह बच्चों के गले में साँप डाल देता, बच्चों के मन से साँपों का डर निकालता, और न जाने क्या-क्या करता! यह डर ही एक प्रमुख कारण है कि आज साँप हमारे दुश्मन बन गए हैं। आज देखते ही साँप को मारने की जो प्रवृत्ति बन गई है, डर उसके पीछे का प्रमुख कारण है। क्योंकि आज कोई भी व्यक्ति नहीं जानता है कि कितने तरह के साँप होते हैं, उनमें से कितने जहरीले हैं? इनसे बचने के लिए क्या करना चाहिए? इनके जहर को कैसे उतार सकते हैं?
इसके अलावा, वह साँपों की, दुनिया भर की कहानियाँ सुना डालता। कई रंग-बिरंगे साँप लेकर आता कि ये तो तक्षक है। इसने परीक्षित को काटा था। इस साँप के ऊपर आऐ ढेरों रंगों की कथा सुनाता था कि काला तो काजल से है। सिंदूरी रंग सिंदूर से है। मेंहदी वाला रंग मेंहदी से है। क्योंकि तक्षक साँप ने जब राजा परीक्षित को काटा था तो उसकी महारानी ने अपने सुहाग की जितनी चीजें हैं, जितनी निशानियाँ हैं, वह सब इसके ऊपर फेंक दी थी। उसी से ये सारे रंग इस पर आऐ हैं। ऐसी बहुत सी कहानियाँ, वह सुनाता था।
सँपेरे और इन जैसे ढेरों लोग समाज के लोक शिक्षक थे। लोक शिक्षक की भूमिका निभाते हुए ये लोगों के सीधे घर, मोहल्ले तक पहुँचकर लोगों को बहुत तरह की जानकारियाँ देते थे।
नाग पंचमी के दिन ‘ऊं भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्।’ मंत्र से नाग देवता की पूजा की जाती है। इसके अलावा ‘सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले। ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:,’ ‘ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।’ और ‘ऊं श्री भीलट देवाय नम:।’ मंत्र का जाप भी नाग पंचमी के दिन पूजा के दौरान किया जाता है।
आभार- भारत गाथा
खण्ड 1: भिक्षावृत्ति
गुरुजी स्व. श्री रवीन्द्र शर्मा