देश के पहले ‘किंगमेकर’ थे के. कामराज,कैसे?

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जन्मदिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नेहरू के निधन के बाद के. कामराज ने शास्त्री और इंदिरा गांधी को पीएम बनवाने में किंगमेकर की भूमिका निभाई थी। केंद्र सरकार की ओर से मंत्रिमंडल में जब-जब बड़े फेरबदल किए गए तो कैबिनेट में शामिल लोगों का इस्तीफा दिलाकर संगठन में लाने का काम किया जाता है। ऐसे मौके पर कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे कुमारस्वामी कामराज की चर्चा जुबान पर जरूर आती है।

बता दें कि आज यानी की 15 जुलाई को के. कामराज का जन्म हुआ था। साल 1962 में जब चीन के साथ हुए युद्ध में कांग्रेस की छवि कमजोर पड़ रही थी। उस दौरान के. कामराज तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे। वहीं नेहरू के निधन के बाद कुमारस्वामी कामराज पार्टी के मजबूत और ताकतवर नेता के तौर पर उभरे थे।

तमिलनाडु के विरदुनगर में एक व्यवसायी परिवार में 15 जुलाई 1903 को के. कामराज का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम कामाक्षी कुमारस्वामी नाडेर था। हालांकि बाद में वह के. कामराज के नाम से जाने गए। कामराज अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे। बता दें कि महज 15 साल की उम्र में जलियावाला बाग हत्याकांड के चलते कामराज स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। वहीं 16 साल की उम्र में वह कांग्रेस से जुड़ गए। जब के. कामराज 18 साल के थे, तो महात्मा गांधी ने आसहयोग आंदोलन की शुरूआत की थी।

कामराज प्लान

कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए के. कामराज ने साल 1963 में सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। इस दौरान देश के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से उन्होंने तमिलनाडु का कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की। नेहरू को कामराज का विचार पसंद आया और उन्होंने इसे पूरे देश में लागू कर दिया। जिसकी वजह से इसे कामराज प्लान भी कहा जाता है। वहीं जब साल 2019 में कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई तो कामराज प्लान की चर्चा आम हो गई थी।

6 केंद्रीय मंत्री 6 सीएम का इस्तीफा

कामराज प्लान को लागू करने के बाद 6 कैबिनेट मंत्रियों और 6 मुख्यमंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कैबिनेट मंत्रियों में लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम, मोरारजी देसाई और एस के पाटिल जैसे लोग शामिल थे। तो वहीं मुख्यमंत्रियों में यूपी के सीएम चंद्रभानु गुप्त, एमपी के सीएम मंडलोई, और ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक आदि को इस्तीफा देना पड़ा था। इसी साल में के. कामराज को कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी।

के. कामराज का मानना था कि पार्टी के बड़े नेताओं को अपने पदों से इस्तीफा दिया जाना चाहिए और अपनी पूरी ताकत पार्टी में नई जान फूंकने में लगाना चाहिए। हालांकि कुछ राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्लान ने पं. नेहरू को अपनी नई टीम बनाने के लिए आजाद करना था। वहीं कामराज प्लान के बदौलत ही के. कामराज केंद्र की राजनीति में मजबूत हो गए थे। उनकी ताकत का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि नेहरू के निधन के बाद के. कामराज ने शास्त्री और इंदिरा गांधी को पीएम बनवाने में किंगमेकर की भूमिका निभाई थी। वहीं वह 3 बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे।

नमक आंदोलन में गए जेल

साल 1930 में के. कामराज ने नमक आंदोलन में हिस्सा लिया था और इस दौरान वह पहली बार जेल गए थे। जिसके बाद वह 6 बार अंग्रेजों द्वारा जेल भेजे गए। जेल में कामराज ने करीब 3,000 दिन गुजारे थे। उन्होंने जेल में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की और जेल से ही म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चेयरमैन चुने गए। जेल से बाहर आने के 9 महीने बाद ही उन्होंने इस पद से इस्तीपा दे दिया था। कामराज का कहना था कि जिसके साथ आप न्याय नहीं कर सकते हैं, ऐसा कोई भी पद स्वीकार नहीं करना चाहिए।

तमिलनाडु के सीएम

दक्षिण भारत की राजनीति में के. कामराज को शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए भी याद किया जाता है। देश की आजागी के बाद साल 1954 में उन्होंने अनिच्छा होने के बाद भी तमिलनाडु के सीएम पद को स्वीकार किया। लेकिन तमिलनाडु को एक ऐसा नेता मिल गया था, जो राज्य के हित में कई क्रांतिकारी कमद उठा सके। इसके बाद वह लगातार 3 बार प्रदेश के सीएम बने। सीएम पद पर रहते हुए के. कामराज ने राज्य की साक्षरता दर को 7 फीसदी से बढ़ाकर 37 फीसदी तक पहुंचाने का काम किया था।

उन्होंने देश की आजादी के बाद राज्य में जन्मी नई पीढ़ी के लिए बुनियादी संरचना को मजबूत करने का काम किया था। इसके लिए कामराज ने ऐसी व्यवस्था कर दी था कि कोई भी गांव ऐसा न बचे, जहां प्राथमिक स्कूल न हो। उन्होंने निरक्षरता दर को हटाने का प्रण ले रखा था। जिसके चलते 11वीं कक्षा तक शिक्षा फ्री और अनिवार्य़ कर दिया था। के. कामराज ही स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए मिड-डे-मील योजना लेकर आए थे। उनके कार्यकाल के बाद से राज्य के बच्चे तमिल में शिक्षा हासिल कर सके।

दो बार ठुकराया पीएम पद

आजाद भारत के पहले भी के. कामराज की भूमिका किंगमेकर की थी। वहीं कामराज को दो बार देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने यह पद नहीं स्वीकार किया। पं. नेहरू के निधन के साल 1964 में कांग्रेस नेतृत्व के संकट से जूझ रही थी। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष कामराज ने शास्त्री को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाया था। वहीं शास्त्री के निधन के बाद एक बार फिर से पीएम की कुर्सी खाली हो गए। उस दौरान भी उनके पास प्रधानमंत्री बनने का मौका था। लेकिन इस दौरान उन्होंने यह कहते हुए देश का पीएम बनने से इंकार कर दिया कि जिस नेता को ठीक से हिंदी और अंग्रेजी नहीं आती हो, उसे देश का पीएम नहीं बनना चाहिए।

वर्ष 1971 में लोकसभा चुनाव में कामराज की जीत हुए, लेकिन संगठन के अधिकतर नेता हार गए थे। हालांकि इंदिरा गांधी की कांग्रेस को जनादेश मिला था। लेकिन कामराज की राजनीति का सूरज अस्त होने लगा था। 2 अक्टूबर 1975 को गांधीवादी के. कामराज की हार्ट अटैक से मौत हो गई। वहीं साल 1976 में के. कामराज को मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

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