हिन्दी की महती महिमा अद्भुत एवं अपरंपार है

हिन्दी की महती महिमा अद्भुत एवं अपरंपार है

हिन्दी दिवस-पखवाड़ा’ पर विशेष

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✍🏻 धनंजय मिश्र 

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क 

राजभाषा हमारी ‘हिन्दी’ सिर्फ भाषा ही नहीं है! अपितु यह ‘भारत माता’ की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और सबलता का श्रेष्ठ प्रतीक है! भारतीय समस्त भाषाओं की यह ‘आत्म-स्वरूपा’ भी है! अगर इसी सुभाव से देश के समग्र प्रदेशों के ‘जन-मन-गण’ इसे आत्मसात करने लगें! तब ‘हिन्दी’ संपूर्ण भारत को संप्रभुतामय, अखंडतामय, सशक्ततामय, एकजुटतामय, आपसीबंधुत्वमय, भाईचारामय, सौहार्दतामय, एकतामय, राष्ट्रीयतामय, प्रेममय आदि करने में देशीय-क्षेत्रीय विविध अन्य भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान एवं सामर्थ्यवान भी है!

बशर्ते, कोई भी हिन्दुस्तानी ‘हिंदी’ को कदापि व कतई हीनभावना से महसूस नहीं करें ! साथ ही ‘हिन्दी’ के साथ कभी भी ईर्ष्या, द्वेष, प्रतिद्वेष,भेदभाव, हिंसा, प्रति-हिंसा,घात-प्रतिघात हरगिज नहीं करें..! जिससे इसके बहुसंख्यक हिन्दी भाषी लोग देश के किसी भी प्रदेशों में जाकर स्वयं को पूर्ण सुरक्षित,सबल एवं गौरवान्वित महसूस करते रहें..!

सच माना जाए तो ‘हिन्दी’ देश की ‘आत्म-भाषा’ है! इससे अब नफ़रत कतई नहीं की जाए ! बल्कि देश भर में इसका सर्वसम्मति से सहर्ष सम्मान सदैव किया जाए ! हिंदी विशेषकर एवं श्रेयस्कर सशक्त व सुप्रभावी सुभाषा है ! इसकी लेखन क्षमता भी अद्भूत,अद्वितीय,महती, समृद्धशाली,ओजस्वी,बेहद सुंदर एवं बेहतरीन है! दुनिया की सारी भाषाएं ‘दिनचर्या-बोलचाल की जननी’ हैं!

दरअसल, इसीलिए तो विश्व की तमाम भाषाएं ‘जननी-स्वरूपा’ ‘स्त्रीलिंग’ ही हैं। वस्तुत: अब आधुनिक सुसभ्य, सुशिक्षित व जागरूक समाज में’ नारीशक्ति’ और समस्त ‘भाषाओं’ का सदा सादर सम्मान ही होना चाहिए ! कदाचित इन ‘द्वय’ का अपमान नहीं होना चाहिए ! अन्यथा ‌हमरा राष्ट्र व समाज कमजोर होने लगता है !

यद्यपि हिन्दी केवल बोलचाल की ही नहीं,अपितु बहुतेरे कार्यालयीय कार्यों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों में भी अपनी महत्वपूर्ण एवं महती भूमिका निभा रही है ! हिन्दी जिस दिन भारत की जन-जन की और ‘जन-मन-गण’ की भाषा होगी ! उस दिन दुनिया में भी काफी दमदार व जोरदार ‘हिन्दी की हुंकार’ मचेगी ! हिन्दी तुम्हीं हिन्दुस्तान है ! भारत माता की शान है !

दुनिया में तुम्हीं से भारत की मूल पहचान है ! तुम्हीं से दुनिया में भारत महान है ! इस बात का साक्षी यह की, तेरे ही सुभाषी बहुसंख्यक ‘जन-गण’ देश-दुनिया में फैले सिर्फ सच्चे इंसान ही नहीं, बल्कि कर्मठ,काबिल, योग्य योद्धा के समान हैं! जिनसे भारत की आज दुनिया में भी अलग ही शान एवं श्रेयस्कर पहचान है!

अब तो जिस तरह तेजी से ‘जन-मन-गण’ के ‘दिलोदिमाग’ में अपनी सुछवि की अमिट छाप बनाती जा रही है हमारी हिन्दी! उससे अबतक ‘ईर्ष्या व घृणा’ करने वाले लोग भी उसके सहज-सरल स्वभाव से भी बच नहीं पाएंगे! विशेषकर देश के विद्वतजन भी अब हिन्दी से बचकर अपने दिलोदिमाग को कहां चुरा पाएंगे..?

दूजा, यह कि अपने बचाव में अक्सर संविधान की दुहाई देने वाले लोग भी यह अक्सर भूल जाते हैं कि ‘हिंदी’ को ‘राज भाषा’ का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त है ? तब क्यों कोई हिन्दी का अपमान और हिंदी भाषियों के साथ हिंसक घटनाओं को अंजाम दे देता है? क्या अक्सर लोग भूल जाते हैं कि संविधान प्रदत्त इस कानूनी अधिकार के विरूद्ध की गई उनकी हिंसक एवं अपमानजनक वारदातें कठोरतम दंडनीय अपराध हैं! जो उक्त अपराध ‘भाषा’ के नाम पर देश तोड़क है !

सूक्ष्मतापूर्वक एवं गहनता से महसूस किया जाए तो देश में होने वाली ऐसी तमाम निर्लज्जतापूर्ण दु:खद घटनाएं ‘देशद्रोह’ के ही समान हैं ! मगर, विडंबनापूर्ण बात यह है कि महज़ राजनीतिक कारणवश इन हिंसक मामलों पर देश का समूचा सिस्टम महज मूकदर्शक बन जा रहा है! जब कोई परिवार संस्कारविहीन और अनुशासनविहीन होकर ठीक से नहीं चल सकता है ?

तब भला इसके वगैर अथवा कड़ी कार्रवाई और सख्त निगरानी के देश-प्रदेश कैसे चल सकता है ? पर, सबकी अपनी-अपनी राजनीतिक विवशतापूर्ण निहितार्थ-हितार्थ के मसले हैं! पीड़ित-परेशान ‘जनता-जनार्दन’ जाएं भांड़ में..!

खैर,यह तो न्यायालय की जिम्मेदारी है! आज और यह पखवाड़ा तो हमारी बेहद प्यारी व दुलारी ‘हिन्दी’ का ‘पावन-दिवस’ है !

वस्तुत: हमारी ‘राज भाषा हिन्दी’ आज आपको ही मेरा सहर्ष सादर अभिनन्दन है !

आपका परम स्नेही एवं शुभेच्छु- धनंजय मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार, सीवान, बिहार

 

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