भारत में महिला आंदोलन का विकास आर्थिक सशक्तीकरण में एक मील का पत्थर है,कैसे?

भारत में महिला आंदोलन का विकास आर्थिक सशक्तीकरण में एक मील का पत्थर है,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत में लगभग 1.2 करोड़ स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups- SHG) हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाओं के नेतृत्व वाले हैं। भारतीय महिला आंदोलन को इसकी जीवंतता के लिये विश्व स्तर पर मान्यता दी गई है। हालाँकि आंदोलन के विकास पर कम ध्यान दिया गया है। 

भारत में महिला आंदोलन का विकास:

  • विकास: 
    • समय के साथ यह आंदोलन राष्ट्रवादी आंदोलन हेतु एक प्रकाशस्तंभ के रूप में कार्य करने, राज्य द्वारा चलाए जा रहे आर्थिक सशक्तीकरण के लिये मानव अधिकारों पर आधारित एक नागरिक सामाजिक आंदोलन के रूप में विकसित हुआ है।
  • तीन चरण:
    • राष्ट्रवादी आंदोलन (1936-1970)
      • महिलाएँ राष्ट्रवादी आंदोलन का स्तंभ थीं। वर्ष 1936 के अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में महात्मा गांधी द्वारा किया गया स्पष्ट आह्वान राष्ट्रवादी आंदोलन की एक पहचान थी जो महिलाओं को उनके प्रतिनिधित्त्व के रूप में सेवा देने पर निर्भर था।
      • आंदोलन का उद्देश्य महिलाओं को राजनीतिक शक्ति प्रदान करना था। भारतीय महिला आंदोलन के राजनीतिक इतिहास के रूप में  नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन को देखा जा सकता है जब महिला सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया था।
        • इन आंदोलनों ने राजनीति में महिलाओं को नेतृत्त्व प्रदान करने के लिये मंच तैयार किया।
    • अधिकार-आधारित नागरिक समाज आंदोलन (1970-2000 के दशक):
      • इस दौरान महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु महिला समूहों को लामबंद किया गया।
        • इस लामबंदी की सबसे बड़ी सफलता तब देखी गई जब संविधान का 73वाँ संशोधन पारित किया गया, जिसमें पंचायत और स्थानीय निकायों में  महिलाओं के नेतृत्त्व के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित कर दी गईं।
      • चिपको आंदोलन विश्व के प्रथम पारिस्थितिक-नारीवादी आंदोलनों में से एक था, जिसमें महिलाएँ वृक्ष काटे जाने का विरोध करते हेतु वृक्षों पर लिपटकर उनकी रक्षा करती थीं।
        • यह एक अहिंसक आंदोलन था जिसकी शुरुआत वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में हुई थी।
      • इसके अलावा स्व-नियोजित महिला संघ ने महिला श्रमिकों के लिये कानूनी और सामाजिक सुरक्षा में सुधारों की वकालत का नेतृत्त्व करते हुए अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं को एकजुट करना शुरू कर दिया।
    • आर्थिक सशक्तीकरण हेतु राज्य के नेतृत्त्व में आंदोलन (2000-वर्तमान):
      • सरकार ने स्वयं सहायता समूहों के गठन और समर्थन हेतु भारी निवेश किया।
      • स्वयं सहायता समूह मुख्य रूप से बचत और ऋण संस्थानों के रूप में कार्य करते हैं।
      • आंदोलन का उद्देश्य महिलाओं की आय-सृजन गतिविधियों तक पहुँच बढ़ाना था।
      • आंदोलन महिलाओं के मध्य व्यावसायिक कौशल और उद्यमिता की कमी को दूर करना चाहता है।

स्वयं सहायता समूह (SHG):

  • परिचय:
    • स्वयं सहायता समूह उन लोगों का अनौपचारिक संघ है जो अपने आवासीय स्थिति में सुधार के तरीके खोजने के लिये एक साथ आने का विकल्प चुनते हैं।
    • इसे समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के एक स्व-शासित, सहकर्मी-नियंत्रित सूचना समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो सामूहिक रूप से एक सामान्य उद्देश्य को पूरा करने की इच्छा रखते हैं।
  • उद्देश्य:
    • SHG स्वरोज़गार और गरीबी उन्मूलन को प्रोत्साहित करने के लिये “स्वयं सहायता” की धारणा पर निर्भर करता है।
    • रोज़गार और आय सृजन गतिविधियों के क्षेत्र में गरीबों एवं वंचितों की कार्यात्मक क्षमता का निर्माण करना।
    • सामूहिक नेतृत्त्व और आपसी चर्चा के माध्यम से संघर्षों को हल करना।
    • बाज़ार संचालित दरों पर समूह द्वारा निर्धारित शर्तों के साथ संपार्श्विक मुक्त ऋण प्रदान करना।
    • संगठित स्रोतों से ऋण लेने का प्रस्ताव करने वाले सदस्यों के लिये सामूहिक गारंटी प्रणाली के रूप में कार्य करना।

निष्कर्ष:

भारत में महिलाओं का आंदोलन समय के साथ विकसित हुआ है, प्रत्येक चरण में महिलाओं के जीवन के विभिन्न पहलुओं को संबोधित किया गया है। भारत में महिलाओं के आंदोलन का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य के नेतृत्त्व वाला आंदोलन आर्थिक सशक्तीकरण कार्यक्रम बड़े पैमाने पर महिलाओं के जीवन को कितने प्रभावी ढंग से बदल सकता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!