भीड़ प्रबंधन में आम जनता के सहयोग के महत्व को समझना होगा

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प्रयागराज महाकुंभ में तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद मौनी अमावस्या पर हुआ हादसा, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर घट ही गई दुर्घटना, हादसे सदैव भीड़ प्रबंधन पर उठाते रहते हैं सवाल

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

अपने देश में भीड़ प्रबंधन सदैव से एक बड़ी चुनौती रही है। जब कभी मेले लगे या कोई अन्य बड़ा आयोजन हो, हादसा हो ही जाता है। प्रयागराज में चल रहे हालिया महाकुंभ को ही ले तो तमाम शानदार प्रबंधन के बावजूद मौनी अमावस्या को भगदड़ मच ही गई। माघी पूर्णिमा के बाद कई हजार किलोमीटर का महाजाम भी लगा। जब प्रयागराज में भीड़ प्रबंधन की व्यवस्थाओं को सहेजा गया तो हादसा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हो गया। लाखों लोग परेशान हुए, 50 के आस पास लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग घायल भी हुए। ये हादसे उस तकनीकी युग में हुए जब हमारे पास अंतरिक्ष और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल तकनीक की एक विशेष उपलब्धता है। अभी महाकुंभ जारी है।

50 करोड़ लोग महाकुंभ में स्नान पुण्य कर चुके हैं। अभी प्रयागराज में भीड़ कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में यह तथ्य तो पूरी तरह उभर के सामने आ रहा है कि भीड़ प्रबंधन में व्यापक स्तर पर सतत सतर्कता बेहद आवश्यक है। आप केवल प्रयागराज में ही सतर्क नहीं रह सकते अपितु उन छोटे बड़े रेलवे स्टेशनों, दूर दराज के सड़कों, महामार्गों पर भी आपकी सतर्कता उतनी ही गंभीरता की मांग करती दिखाई देती है। साथ ही यह तथ्य भी समझने की आवश्यकता अवश्य महसूस हो रही है कि भीड़ प्रबंधन का सबसे प्रमुख आयाम भीड़ ही होती है जिसके मानसिक, भावनात्मक, संचेतनात्मक आयाम का विश्लेषण एक अनिवार्य तथ्य है शायद जिसको सबसे ज्यादा नजर अंदाज किया जाता रहता है। भीड़ प्रबंधन में आम जनता के सहयोग के महत्व को समझे जाने की आवश्यकता है।

देश में हर बड़े धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजन में हादसे होते रहे हैं। देश में धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की कई पुरानी घटनाएं हुई हैं। 2011 में केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ मचने से 102 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए।2008 में उत्तराखंड के ऋषिकेश में महर्षि महेश योगी के अंतिम संस्कार में भगदड़ मचने से 6 लोगों की मौत हो गई। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 2013 के कुंभ मेला में भगदड़ मचने से 36 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए। 2015 में आंध्र प्रदेश के राजामहेंद्रवरम में गोदावरी पुष्करम के दौरान भगदड़ मचने से 27 लोगों की मौत हो गई।

2016 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में सिम्हास्थ कुंभ मेला में भगदड़ मचने से 7 लोगों की मौत हो गई। प्रयागराज में कुंभ मेला में 2019 में भगदड़ मचने से 5 लोगों की मौत हो गई। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 2020 में काशी विश्वनाथ मंदिर में भगदड़ मचने से 3 लोगों की मौत हो गई। उत्तराखंड के हरिद्वार में 2021 कुंभ मेला में भगदड़ मचने से 2 लोगों की मौत हो गई। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की समस्या एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह दुर्घटना देश में ही नहीं विदेशों में भी घटित होती रहती है। दुनिया के सबसे व्यवस्थित माने जाने वाली जगहों पर भी दुर्घटनाएं होती रही है। मक्का में 1990 में पैदल चलने के लिए बनी एक टनल में भगदड़ में 1,426 लोगों की मौत हो गई थी। साल 1994 में शैतान को पत्थर मारने की रस्म के दौरान भगदड़ में कम से कम 270 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी।

2015 में हज के दौरान जमारात ब्रिज के एंट्रेंस पर भगदड़ मच गई थी। इस हादसे में 2400 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी।2006 में शैतान को पत्थर मारने के दौरान भगदड़ में 346 लोगों की मौत हो गई थी।
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में लोगों का भारी जुटान एक स्वाभाविक तथ्य है। उनकी सुरक्षा भी सरकार के स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी है। निश्चित तौर पर इस तरह के आयोजनों के लिए एक व्यवस्थित रणनीति बनाई जाती है।

प्रशासनिक स्तर पर भीड़ प्रबंधन के लिए नीतियों और नियमों का निर्माण किया जाता है। आपातकालीन योजना और सुरक्षा के उपायों की सुव्यवस्थित और सुनियोजित रणनीति बनाई जाती है। संसाधनों का आवंटन कर पुलिस बल, सुरक्षा गार्ड, और अन्य आपातकालीन सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। आयोजन के पूर्व प्रशासनिक स्तर पर योजना के निर्माण, भीड़ के अनुमान, सुरक्षा उपायों पर मंथन, यातायात प्रबंधन योजना आदि पर व्यापक तैयारी की जाती है। आयोजन के दौरान प्रशासनिक स्तर पर भीड़ की पुख्ता निगरानी, सुरक्षा उपायों को क्रियान्वित करने, संचार और यातायात प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हर आयोजन के बाद प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थाओं की समीक्षा भी की जाती रहती है। फिर भी भीड़ प्रबंधन के संदर्भ में सदैव से असफलता ही हाथ आती रही है। भगदड़ जैसे हादसों की शिकार कई अनमोल ज़िंदगियां होती रही है।

आज हम डिजिटल और स्पेस क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी सुविधाएं उपब्ध हैं। भीड़ प्रबंधन के लिए सीसीटीवी कैमरों, ड्रोन, मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। सेंसर, डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स आदि के माध्यम से भीड़ की निगरानी की जा रही है। सेटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा है। फिर भी भगदड़ की दुर्घटनाएं हो ही जा रही है। ऐसे में यह बात सामने आ रही है कि अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के बावजूद भीड़ प्रबंधन अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

भीड़ प्रबंधन के संदर्भ में कई चुनौतियां हैं, जो अकसर समस्याएं उत्पन्न करती रहती है। मसलन कभी कभी भीड़ का अनुमान लगाने में प्रशासनिक स्तर पर विफलता मिलती है। आग, बम, धमाका, अफवाह, गलत सूचना आदि के कारण भी कभी कभी भगदड़ की घटनाएं हो जाया करती है। प्रयागराज में मौनी अमावस्या के दिन संगम नोज के पास लोगों के लेटे रहने की बात सामने आई थी जो एक मानवीय त्रुटि ही कही जाएगी। बैरिकेड्स का टूट जाना सुरक्षा उपायों की कमियों की ओर भी संकेत करता दिखता है। कभी कभी प्राकृतिक आपदाएं मसलन, भूकंप, तूफान, बाढ़ भी भगदड़ का कारण बन जाया करते हैं।

प्रयागराज के महाकुंभ के विशाल आयोजन के संदर्भ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने व्यक्तिगत रुचि लेते हुए प्रशासनिक व्यवस्थाओं को सहेजने का पर्याप्त प्रयास किया। यातायात प्रबंधन, पार्किंग सुविधाओं और आपातकालीन सुविधाओं की पुख्ता व्यवस्थाओं को सहेजा गया। अनुभवी अधिकारियों और कर्मचारियों की पूरी टीम ने मनोयोग से काम किया। सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन, स्पेस तकनीक,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से यातायात व्यवस्था और संचार की व्यवस्थाओं को सहेजा गया। फिर भी भगदड़ मची वह भी सिर्फ प्रयागराज में बल्कि नई दिल्ली में भी। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, और बिहार तक की सड़कों पर महाजाम लग गया। यह तथ्य इस बात की आवश्यकता को रेखांकित करता है कि अब भीड़ प्रबंधन के लिए सिर्फ आयोजन परिक्षेत्र नहीं अपितु आयोजन में शामिल होने वाले लोगों के क्षेत्रों तक को शामिल करना चाहिए। भीड़ प्रबंधन योजना को व्यापक तौर पर तैयार करना होगा। अभी देश के कई नगरों के रेलवे स्टेशन पर प्रयागराज जानेवाले लोगों की भारी भीड़ रह रही है। वहां भी भीड़ प्रबंधन योजना की आवश्यकता है। साथ ही आवश्यकता प्रयागराज जाने वाले सड़क मार्गों पर सुव्यवस्थित और सुनियोजित यातायात प्रबंधन की भी है। उम्मीद है कि आगे जब भी महाकुंभ जैसे आयोजन होंगे तो भीड़ प्रबंधन की व्यापक और समन्वित भीड़ प्रबंधन योजना तैयार होगी जो सिर्फ आयोजन परिक्षेत्र तक सीमित नहीं होगी अपितु उसका दायरा व्यापक और बृहद होगा।

भीड़ प्रबंधन में भीड़ तथ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। भीड़ से तात्पर्य लोगों से हैं। भीड़ प्रबंधन में आम जनता की सहभागिता को सुनिश्चित करने के प्रयास करना बेहद आवश्यक है। भीड़ के साथ अगर समन्वय को प्राप्त कर लिया जाय तो भीड़ प्रबंधन में बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। इसके लिए आवश्यक होगा कि आयोजन से कई माह पूर्व से मीडिया, सोशल मीडिया के माध्यम से तथा अन्य तरीकों से आम जनता के साथ संवाद कायम किया जाए और उन्हें जागरूक किया जाय। आम जनता को भीड़ प्रबंधन में सहयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए उन्हें यातायात नियमों के पालन के लिए प्रेरित किया जाय।

एक ऐसी संचार व्यवस्था का संधारण किया जाए जिसके तहत आम जनता से सहज संवाद कायम हो सके। इसके लिए ऐसे आयोजनों में आने वाले श्रद्धालुओं के ऑनलाइन पंजीयन की व्यवस्था को बनाया जा सकता है। उन सभी के मोबाइल नंबर को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से एक समवेत सूत्र में पिरोया जा सकता है। आम जनता को भीड़ प्रबंधन के कई आयामों मसलन आपातकालीन प्रतिक्रिया, अफवाह से सचेत रहने, यातायात नियमों के पालन, प्राथमिक चिकित्सा के संदर्भ में ऑनलाइन प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है।

आम जनता भीड़ प्रबंधन में सामुदायिक पुलिसिंग, सुरक्षा के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता भी निभा सकती है, जिससे पुलिस बल पर आवश्यक बोझ को कम किया जा सकता है। आम जनता को स्वैच्छिक सेवा के लिए भी प्रोत्साहित किया जा सकता है। आम जनता को अपने आस पास के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेवारी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। कुछ ऐसी व्यवस्थाएं संजोई जानी चाहिए जिससे पुलिस और प्रशासन के अधिकारी आम जनता के प्रति सहयोगात्मक दृष्टिकोण रखें और आम जनता के सहयोग के महत्व को भी समझे। भीड़ प्रबंधन के संदर्भ में आम जनता के साथ नियमित अभ्यास का संचालन भी महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करा जाएगा। बात हमेशा भीड़ प्रबंधन की होती है लेकिन आम जनता के साथ सहज संवाद नहीं होने से समस्या की जटिलता बढ़ती जाती है। भीड़ प्रबंधन का सर्वप्रमुख आयाम भीड़ ही है। इसलिए इस तथ्य पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। वह भीड़ आयोजन स्थल पर मौजूद हो या आयोजन स्थल पर आने के लिए सुदूर क्षेत्र में मौजूद हो।

साथ ही आम जनता को भी स्वयं की सुरक्षा के संदर्भ में सतर्क होने की आवश्यकता भी है। उन्हें अपने भावनात्मक आवेगों पर भी नियन्त्रण रखना चाहिए। आज के मोबाइल क्रांति के दौर में रिल्स आदि भावनात्मक आवेगों को भरपूर ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। समय समय पर प्रशासन, रेलवे, यातायात पुलिस द्वारा जारी दिशा निर्देशों के पालन और एडवाइजरी पर ध्यान देने का प्रयास भी हम सभी को करना चाहिए। हर स्तर पर यह समझना आवश्यक है कि भीड़ प्रबंधन सिर्फ प्रशासन की जिम्मेवारी नहीं अपितु आम जनता की भी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी है।

धार्मिक सांस्कृतिक आयोजनों का होना एक स्वाभाविक तथ्य है। लेकिन तमाम आधुनिक तकनीक की उपलब्धता के बावजूद भी निरंतर भगदड़ जैसी घटनाएं हो रही है। ऐसे में भीड़ प्रबंधन पर बार बार सवाल उठना लाजिमी है। लेकिन भीड़ प्रबंधन के संदर्भ में व्यापक संदर्भ और आम जनता की भूमिका के महत्व को भी समझना होगा। यदि प्रशासन, आम जनता, सामुदायिक सहभागिता के समन्वित सहयोग से भीड़ प्रबंधन के संदर्भ में बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है।

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