उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के माध्यम से विधिक ढाँचे को सशक्त बनाया गया है,कैसे?

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के माध्यम से विधिक ढाँचे को सशक्त बनाया गया है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

उपभोक्ता संरक्षण आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जिसका उद्देश्य अनुचित व्यापार अभ्यासों के विरुद्ध उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना और निष्पक्ष एवं कुशल विवाद समाधान तंत्र सुनिश्चित करना है।

विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में भारत ने उपभोक्ता संरक्षण के मामले में उल्लेखनीय प्रगति की है जहाँ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 (Consumer Protection Act 2019) के माध्यम से उपभोक्ता अधिकारों के लिये विधिक ढाँचे को सशक्त बनाया गया है।

हालाँकि इन नीतिगत प्रयासों और शिकायत निवारण तंत्रों के बावजूद भारत में उपभोक्ता शिकायतों को दूर करने में लगने वाला कुल समय अभी भी एक प्रमुख चुनौती है, जहाँ लंबित मामलों की एक बड़ी संख्या बनी हुई है।

विवाद निवारण प्रणाली में मामलों के विलंबन या ‘पेंडेंसी’ की यह स्थिति उपभोक्ताओं के लिये मानसिक, वित्तीय एवं भावनात्मक कठिनाइयों का कारण बनती है और इसलिये वर्तमान विवाद समाधान ढाँचे की पुनर्कल्पना या नई अभिकल्पना की आवश्यकता है। लंबित मामलों की समस्या के समाधान के लिये प्रणाली में कार्यविधि संबंधी, उपयुक्त एवं प्रक्रिया ब्रोकर्स की मध्यस्थता को कम करने की भी तत्काल आवश्यकता है।

उपभोक्ता संरक्षण क्यों आवश्यक है?

  • उपभोक्ताओं को सशक्त बनाना:
    • उपभोक्ता संरक्षण उपाय उपभोक्ताओं को उनकी खरीद के बारे में सूचना-संपन्न निर्णय लेने हेतु आवश्यक जानकारी देकर उन्हें सशक्त बनाने में मदद करते हैं। जब उपभोक्ताओं की संरक्षा की जाती है तो वे गुणवत्तापूर्ण उत्पादों एवं सेवाओं की मांग करने के अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं और गुणवत्ताहीन उत्पादों या सेवाओं की प्राप्ति के मामले में मुआवजे की मांग भी कर सकते हैं।
  • धोखाधड़ीपूर्ण गतिविधियों को रोकना:
    • उपभोक्ता संरक्षण कानून झूठे विज्ञापन, भ्रामक लेबलिंग और मूल्य हेरफेर जैसी धोखाधड़ीपूर्ण गतिविधियों को रोकने में मदद करते हैं। इससे न केवल उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्राप्त होती है बल्कि बाजार में उचित प्रतिस्पर्द्धा को भी प्रोत्साहन मिलता है।
  • स्वास्थ्य एवं सुरक्षा जोखिमों को कम करना:
    • उपभोक्ता संरक्षण उपाय उत्पादों एवं सेवाओं के उपयोग से जुड़े स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी जोखिमों को कम करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिये, खाद्य उत्पादों, फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों पर विनियमन यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि वे न्यूनतम सुरक्षा मानकों को पूरा कर रहे हैं।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना:
    • उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने से व्यवसायों के लिये निष्पक्ष रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने हेतु एक समान अवसर का सृजन कर आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे बाज़ार के प्रति उपभोक्ता के भरोसे की वृद्धि हो सकती है, जिससे व्यय, निवेश और रोज़गार सृजन में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा।
  • उपभोक्ता अधिकारों को कायम रखना:
    • उपभोक्ता संरक्षण उपाय उपभोक्ताओं के बुनियादी अधिकारों को बनाए रखने में मदद करते हैं, जैसे कि सूचित किये जाने का अधिकार (Right to be informed)चुनने का अधिकार (Right to choose)सुरक्षा का अधिकार (Right to safety) और सुनवाई का अधिकार (Right to be heard)। ये अधिकार एक निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिये आवश्यक हैं।

भारत में उपभोक्ता संरक्षण के मार्ग की बाधाएँ

  • लंबित मामले:
    • राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर लंबित मामलों के साथ भारत में लंबित उपभोक्ता मामलों की संख्या बहुत अधिक है।
    • इसके परिणामस्वरूप लंबी प्रतीक्षा अवधि और विवाद समाधान में देरी की स्थिति बनती है जो उपभोक्ताओं को निराश करती है।
      • दिसंबर 2022 तक की स्थिति के अनुसार, राज्य आयोगों के पास 1,12,000 जबकि ज़िला आयोगों के पास 4,29,000 मामले लंबित पड़े थे।
      • राष्ट्रीय आयोग के पास दर्ज 1,06,088 मामलों के लिये विलंबन दर (pendency rate) 20.5% थी, जबकि 35 राज्यों एवं 637 ज़िला आयोगों के लिये यह दर 22% थी।
  • आधारभूत संरचना की कमी:
    • कई उपभोक्ता मंचों और आयोगों में मामलों की बड़ी संख्या से प्रभावी ढंग से निपटने हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचे और जनशक्ति की कमी है।
    • इससे मामलों के निस्तारण में देरी होती है, जिन्हें अन्यथा त्वरित रूप से सुलझाया जा सकता था।
  • अक्षम शिकायत निवारण तंत्र:
    • यद्यपि कई शिकायत निवारण तंत्र मौजूद हैं, वे प्रायः अक्षमता से ग्रस्त हैं और उपभोक्ता की शिकायतों को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं कर पाते हैं।
    • उपभोक्ता प्रायः इन तंत्रों का उपयोग करना नहीं जानते हैं या उनके बारे में अनभिज्ञ हैं।
      • ‘नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च’ (NCAER) द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि किसी कंपनी के पास शिकायत दर्ज कराने वाले केवल 18% उपभोक्ताओं को संतोषजनक समाधान प्राप्त हुआ, जबकि शेष को या तो कोई जवाब ही नहीं मिला या वे प्राप्त जवाब से संतुष्ट नहीं थे।
  • उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी:
    • भारत में बहुत से उपभोक्ताओं को निवारण की मांग से संबंद्ध अपने अधिकारों एवं कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी नहीं है। इससे उनके लिये उपभोक्ता मंच का दरवाज़ा खटखटाना और न्याय की मांग करना कठिन हो जाता है।
  • व्यवसायों की सीमित भागीदारी:
    • भारत में व्यवसाय क्षेत्र उपभोक्ता-केंद्रित नीतियों को अपनाने और विवाद समाधान तंत्र में भागीदारी के मामले में पर्याप्त सुस्त रहे हैं।
    • यह उपभोक्ता संरक्षण कानूनों की प्रभावशीलता को सीमित करता है और उपभोक्ता शिकायतों के समाधान को धीमा करता है।

संबंधित पहलें

  • एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र (INGRAM) पोर्टल
  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NLSA) की भागीदारी में राष्ट्रीय लोक अदालतों का गठन
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019

आगे की राह 

  • उपभोक्ता जागरूकता:
    • उपभोक्ता जागरूकता उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों एवं ज़िम्मेदारियों के बारे में जानकारी होनी चाहिये और सरकार को उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिये नियमित रूप से जागरूकता अभियान चलाना चाहिये।
  • उत्पाद गुणवत्ता मानक:
    • उपभोक्ताओं को गुणवत्ताहीन और खतरनाक उत्पादों से बचाने के लिये सरकार को उत्पादों एवं सेवाओं के लिये कड़े गुणवत्ता मानकों को स्थापित एवं प्रवर्तित करना चाहिये।
  • निवारण तंत्र:
    • सरकार को उपभोक्ताओं की शिकायतों को त्वरित गति एवं कुशलता से हल करने के लिये प्रभावी निवारण तंत्रों की स्थापना करनी चाहिये।
      • सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) और ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) संस्थानों द्वारा पहले से स्थापित बुनियादी ढाँचे और मंचों का लाभ उठा सकती है तथा उन्हें डिजिटल सार्वजनिक हित के रूप में देख सकती है।
    • तकनीकी-क्षमताओं से संचालित राष्ट्रीय उपभोक्ता लोक अदालत हेल्पलाइन की स्थापना लोक अदालतों की प्रक्रिया के दौरान शिकायतकर्ताओं, कंपनियों, आयोगों, विधिक सेवा प्राधिकरणों, निजी ADR एवं ODR एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के मध्य के प्रयासों को समन्वित करने में मदद कर सकती है।
  • ई-कॉमर्स विनियमन:
    • ई-कॉमर्स के उदय के साथ सरकार ने ऑनलाइन खरीदारी करने वाले उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिये भी विनियमनों की घोषणा की है।
    • ई-कॉमर्स मंचों के लिये उत्पादों, मूल्य निर्धारण और आपूर्ति समय के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करना आवश्यक बनाया जाना चाहिये तथा उनके पास उपभोक्ता शिकायतों से निपटने के लिये एक सुदृढ़ प्रणाली होनी चाहिये।
  • डेटा शासन में सुधार लाना:

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