महाकुंभ का आयोजन सदैव स्मृतियों में बना रहेगा

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महाकुंभ 2025 से भारत एक सॉफ्ट पावर बन गया है

✍️  राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


महाकुंभ 66 करोड़ व्यक्तियों की स्मृतियों में जीवन पर्यंत बना रहेगा। यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों को भी एक प्रेरणा देता रहेगा। सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा आयोजन अब 2169 ईस्वी में होगा, जिसका काल, समय एवं परिस्थिति को प्रतीक्षा रहेगी।

महाकुंभ में प्रयागराज के संगम पर अपने श्रद्धालुओं को भीड़ कहना अपने सनातन के प्रति अविश्वास होगा। विश्व के 80 से अधिक देशों से आए भक्तों ने आस्था की डुबकी लगाकर अपने को धन्य किया है। – – -144 वर्ष बाद इस महाकुंभ का 45 दिनों तक आयोजन किया गया, 12 कुंभ आयोजित होने के बाद 144 वें वर्ष में महाकुंभ लगता है यानी 2025 से पहले 1882 में महाकुंभ लगा था और अब 2169 ईस्वी में महाकुंभ लगेगा।

कुंभ का मतलब कलश होता है। समुद्र मंथन के बाद अमृत की पहली बुंदे प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी उज्जैन और चौथी नासिक में छलक पड़ी थी इसलिए यहां कुंभ लगता है। हमारे सनातन संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि कुंभ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, पापों से छुटकारा मिलता है, मनुष्य पुण्य का भागी बनता है। क्योंकि इस धरती पर प्रत्येक मनुष्य को पाप और पुण्य की अच्छी समझ है।

कुंभ क्यों एवं कैसे होता है?


बृहस्पति के कुंभ राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर हरिद्वार में पवन गंगा नदी के तट पर कुंभ का आयोजन होता है।
बृहस्पति के वृषभ राशि में प्रवेश और सूर्य-चंद्रमा के मकर राशि में आने पर प्रयागराज के त्रिवेणी संगम तट पर कुंभ मेला का आयोजन होता है।
बृहस्पति और सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश होने पर नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ मेले का आयोजन होता है, और
बृहस्पति के सिंह राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर कुंभ पर्व का आयोजन होता रहता है।

इस कुंभ में सरकार ने 7000 करोड रुपए खर्च किए। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के रूप में महाकुंभ स्थल का निर्माण किया गया। जिले के चार तहसीलों के 67 गांव को इसमें जोड़ा गया था। 50000 पुलिसकर्मी, 15000 से अधिक सफाई कर्मी अर्हनिश कार्य करते रहे। 4000 हेक्टेयर क्षेत्र में कुंभ मेला का आयोजन हुआ। इसे 25 सेक्टर(जनवृत) में बांटा गया था। 12 किलोमीटर लंबे सड़क का निर्माण किया गया। 44 घाटों का निर्माण हुआ था। संगम क्षेत्र को आपस में जोड़ने के लिए 30 पीपा पूलों का निर्माण किया गया था। पूरे मेले क्षेत्र में 450 से अधिक अस्थाई सड़कें बनाई गई थी। डेढ़ लाख शौचालय का निर्माण किया गया था। मेला क्षेत्र में 55 पुलिस स्टेशन बनाए गए थे। निगरानी के लिए 3000 से अधिक कैमरे लगाए गए थे। प्रत्येक दिन एक करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम क्षेत्र में डुबकी लगाई।

भक्तों के लिए 100 विस्तारों वाला चिकित्सालय एवं 125 एंबुलेंस की व्यवस्था की गई थी। मेला के अधिकारियों ने पिछले कई महीनो से आईआईटी गुवाहाटी के साथ मिलकर इस आयोजन हेतु कार्य किया था। मेला में 13 अखाड़े आए जो शैव, वैष्णो और उदासीन में बंटे हुए थे। मेले में भंडारों का आयोजन किया गया।

महाकुंभ‌ का नकारात्मक पक्ष


महाकुंभ‌ नकारात्मक पक्ष के लिए भी याद करना‌‌चाहिए।
पहला -ऑटो एवं मोटरसाइकिल वालों ने अतिरिक्त पैसा वसूल किया,

दूसरा- वीआईपी संस्कृति से कुंभ अछूता नहीं रहा,
तीसरा- महाकुंभ के भगदड़ एवं वाहन दुर्घटना में मारे गए जनता को श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए और
चौथा- राजनीतिक कारणों से एक विशेष वर्ग का मत प्राप्त करने के लिए कुंभ को ढकोसला, ढ़ोग, गलत आंकड़ों का जाल बताया जाता रहा।

महाकुंभ पर इस बार 144 वर्ष बाद अद्भुत सहयोग बना रहा‌ यानी सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति और शनि की स्थिति एकदम शुभ बन रही थी। इसके साथ ही पूर्णिमा, रवि योग और भद्रावास का भी दुर्लभ सहयोग बना रहा। यही संयोजन समुद्र मंथन के समय भी बना था।

कुंभ‌ का वर्णन मेगस्थनीज के इंडिका में मिलता है, साथ ही ह्यवेन सान की पुस्तक ‘यू की’ में भी‌ कुंभ का वर्णन है। राजा हर्षवर्धन के समय भी कुंभ का आयोजन हुआ था, ऐसा विवरण इतिहास के पुस्तकों में हमें मिलता है।

बहरहाल कुंभ का आयोजन एक भावुकता का विषय है। जिन्होंने इस पवित्र कुंभ में पधार कर संगम तट पर डुबकी लगाई है उनके लिए यह निश्चित तौर पर भावना का विषय है, जिसकी व्याख्या करना शब्दातित है।

महाकुंभ का आयोजन एवं कुंभ में स्नान करना दुर्लभ संयोग रहा। जिसने भी इस आयोजन को अंतिम रूप दिया, जितने लोग इस कार्य में लग रहे वे धन्यवाद बधाई के पात्र हैं। ईश्वर उनके जीवन में सदैव आनंद का कुंभ भरता रहे।

 

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