महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है,क्यों?

महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है,क्यों?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अधिक उम्र में शादी करने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। 30 वर्ष की आयु के बाद पहली गर्भावस्था, मोटापे से भी स्तन कैंसर का जोखिम बढ़ता है। यह जानकारी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के विज्ञानियों द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आई है।

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इस अध्ययन में भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर के जोखिम के कारणों को विस्तार से बताया गया है। भारत में महिलाएं जिन तीन तरह के कैंसरों से सर्वाधिक पीड़ित हैं उनमें स्तन कैंसर शामिल है। देश में स्तन कैंसर के मामलों की संख्या हर साल लगभग 5.6 प्रतिशत बढ़ने की आशंका है।

31 अध्ययनों की की गई समीक्षा

आईसीएमआर के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इन्फार्मेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर), बेंगलुरु की टीम ने 31 अध्ययनों की समीक्षा की। इनमें 27,925 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। इनमें से 45 प्रतिशत को स्तन कैंसर का पता चला था। कैंसर एपिडेमियोलाजी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला कि प्रजनन समय, हार्मोन, मोटापा और पारिवारिक इतिहास मुख्य रूप से भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर के जोखिम को प्रभावित करते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा, जिन महिलाओं में 50 वर्ष से अधिक आयु के बाद मेनोपाज (रजोनिवृत्ति) होती है उनमें स्तन कैंसर का खतरा अधिक रहता है। अधिक उम्र में शादी करने वाली महिलाओं, 30 वर्ष की आयु के बाद मां बनने वाली महिलाओं को भी स्तन कैंसर का जोखिम रहता है। कई बार गर्भपात कराने वाली और मोटापे का सामना करने वाली महिलाओं को भी स्तन कैंसर होने की अधिक आशंका रहती है। अच्छी नींद न आने, रोशनी वाले कमरे में सोने और अधिक तनाव या टेंशन से भी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

विश्लेषण में क्या पाया गया?

विश्लेषण में पाया गया कि 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं का जोखिम तीन गुना अधिक था। 35-50 वर्ष की आयु की महिलाओं में जोखिम में 1.63 गुना वृद्धि हुई। इससे 30 से 40 की उम्र में महिलाओं के लिए प्रारंभिक स्क्रीनिंग का महत्व उजागर होता है ताकि समय पर पहचान और हस्तक्षेप किया जा सके। उच्च आय वाले देशों में जहां 50 वर्ष की आयु के बाद स्तन कैंसर का खतरा बढ़ता है, भारत में युवा महिलाओं में, आमतौर पर 40 से 50 वर्ष की आयु के बीच, स्तन कैंसर की घटनाएं अपेक्षाकृत अधिक हैं।

इस समीक्षा में भारत में व्यापक, आबादी-आधारित अध्ययन की जरूरत पर भी जोर दिया गया ताकि स्तन कैंसर की रोकथाम और शुरुआती पहचान और इलाज हो सके।

स्तन कैंसर के इलाज में कार्बोप्लाटिन दवा बेहद कारगर हो सकती है। परीक्षण में इसके उत्साहजनक परिणाम दिखे हैं। टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) द्वारा किए गए नए अध्ययन में कहा गया है कि कम लागत वाली कीमोथेरेपी दवा कार्बोप्लाटिन को उपचार में शामिल करने से ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (टीएनबीसी) से पीड़ित मरीजों, विशेष रूप से 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में इलाज और बचने की संभावना में उल्लेखनीय सुधार होता है। टीएनबीसी स्तन कैंसर का गंभीर रूप है।

इस रेंडेमाइज्ड चरण परीक्षण में 2010 से 2020 के बीच मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) में चरण टीएनबीसी वाली 720 महिलाओं पर शोध किया गया। अध्ययन के प्रमुख लेखक, टीएमसी, मुंबई के निदेशक डा. सुदीप गुप्ता ने शुक्रवार को बताया कि सभी रोगियों को सर्जरी से पहले उनके ट्यूमर को कम करने के लिए मानक कीमोथेरेपी दी गई (आठ सप्ताह तक प्रति सप्ताह एक बार पैक्लिटैक्सेल, उसके बाद चार चरणों में हर 21 दिन में डाक्सोरूबिसिन और साइक्लोफास्फेमाइड)।

मरीजों को कार्बोप्लाटिन इंजेक्शन भी दिया गया

अध्ययन के दौरान प्लैटिनम समूह के रोगियों को मानक कीमोथेरेपी के साथ-साथ आठ सप्ताह तक सप्ताह में एक बार कार्बोप्लाटिन इंजेक्शन भी दिया गया। डा. गुप्ता ने कहा, कार्बोप्लाटिन सस्ती कीमोथेरेपी दवा है जिसका इस्तेमाल अक्सर अन्य कैंसर के लिए किया जाता है। कीमोथेरेपी के बाद, सभी मरीजों की सामान्य रूप से सर्जरी और रेडिएशन थेरेपी की गई और फिर समय के साथ उनकी निगरानी की गई।

नहीं हुआ कोई दुष्प्रभाव

उन्होंने कहा कि इलाज में कार्बोप्लाटिन को शामिल करने से कोई बड़ा अतिरिक्त दुष्प्रभाव नहीं हुआ। अध्ययन में यह भी पाया गया कि इस दवा का 50 वर्ष से कम आयु के रोगियों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा, लेकिन अधिक आयु के रोगियों पर इसका कोई विशेष लाभ नहीं हुआ।

उन्होंने कहा, हालांकि दुनियाभर के युवा मरीज इस उपचार से समान रूप से लाभान्वित होंगे, लेकिन यह विशेष रूप से भारत और अन्य देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जहां युवा मरीज अधिक संख्या में हैं।

भारत में हर साल कैंसर के कितने मामले आते हैं?

भारत में हर साल लगभग 1,80,000 नए स्तन कैंसर के मामले सामने आते हैं। इनमें से एक तिहाई (55 हजार से 60 हजार) टीएनबीसी से जुड़े होते हैं, जिनमें जीवित रहने की दर बेहद कम होती है। इन टीएनबीसी मामलों में से लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं 50 वर्ष से कम आयु की होती हैं।

टीएमसी के पूर्व निदेशक और टाटा मेमोरियल हास्पिटल के मानद प्रोफेसर एमेरिटस डा. राजेंद्र ए. बडवे ने कहा, इस अध्ययन की बदौलत हमारे पास साक्ष्य है कि सुलभ, कम लागत वाली दवा उनके इलाज और बचने की संभावनाओं को बेहतर बना सकती है।

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