अग्निहोत्र से हुआ कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग के द्वितीय दिवस का शुभारंभ
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
विद्या भारती बिहार क्षेत्र स्तरीय पूर्णकालिक कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग–2025 के द्वितीय दिवस की शुरुआत भारतीय वैदिक परंपरा के अनुसार अग्निहोत्र से हुई।
कार्यक्रम का नेतृत्व विद्या भारती बिहार की क्षेत्रीय शिशु वाटिका योजना प्रमुख श्रीमती मंजू श्रीवास्तव ने किया।
महावीरी सरस्वती विद्या मंदिर विजयहाता सिवान में चल रहे विद्या भारती बिहार क्षेत्र स्तरीय पूर्णकालिक कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग के द्वितीय दिवस की शुरुआत
अग्निहोत्र कार्यक्रम से हुआ।इस में क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री ख्यालीराम जी, उत्तर बिहार, झारखंड और दक्षिण बिहार , तीनों प्रांतों के प्रदेश सचिव रामलाल सिंह, प्रदीप कुमार कुशवाहा, नकुल कुमार शर्मा, झारखंड प्रांत के प्रदेश मंत्री डॉ. ब्रजेश कुमार सहित अभ्यास वर्ग में सम्मिलित सभी पूर्णकालिक कार्यकर्ता एवं प्रवासी कार्यकर्ता सहभागी बने।
बताते चलें कि अग्निहोत्र एक प्राचीन वैदिक यज्ञ प्रक्रिया है, जो न केवल आध्यात्मिक उन्नयन का मार्ग प्रशस्त करती है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती है। भारतीय संस्कृति में इसे प्रतिदिन करने की परंपरा है, जिससे वातावरण की शुद्धि तथा एक अदृश्य सुरक्षाकवच का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से आपातकालीन परिस्थितियों में भी उपयोगी मानी गई है।
यह यज्ञ प्रातः सूर्योदय और सायंकाल सूर्यास्त के समय देशी गाय के गोबर से बने उपलों, घी और चावल के माध्यम से वेद मंत्रों के साथ आहुति अर्पण कर संपन्न किया जाता है। यह न केवल मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।
श्रीमती मंजू श्रीवास्तव ने बताया कि वैज्ञानिक शोधों ने भी सिद्ध किया है कि अग्निहोत्र से वातावरण में उपस्थित विषाणुओं और रोगजनकों की संख्या में भारी कमी आती है। इसके प्रभाव से वनस्पतियों की वृद्धि, कृषि उत्पादकता और पौष्टिकता बढ़ती है। साथ ही, बालकों में अच्छे संस्कार, एकाग्रता और संयम विकसित होते हैं, जबकि वयस्कों को मानसिक बल, आत्मविश्वास और कार्यकुशलता प्राप्त होती है।
उन्होंने यह भी कहा कि आगामी वैश्विक संकटों और संभावित अणुयुद्धों की स्थिति में अग्निहोत्र किरणोत्सर्ग से सुरक्षा प्रदान करने की सामर्थ्य रखता है। इसलिए यह यज्ञ न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक क्रिया है, बल्कि एक व्यावहारिक, सार्वकालिक और वैज्ञानिक समाधान भी है, जो आधुनिक जीवन की जटिलताओं का उत्तर भारतीय वैदिक परंपरा में देता है।
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