दुनिया अब अमेरिका पर निर्भर नहीं- पीएम मोदी

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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दक्षिण अफ्रीका ने जिस स्पष्टता से यह कह दिया कि वह अपने राष्ट्रपति के सम्मान में किसी जूनियर अमेरिकी अधिकारी को बैटन नहीं सौंप सकता, वह अमेरिकी कूटनीति के लिए एक सीधा और तीखा संदेश था। और जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने कहा कि “दुनिया अमेरिका के बिना भी आगे बढ़ सकती है”, तो यह वह वाक्य था जिसे दस वर्ष पहले सोचना भी कठिन था। परंतु इस पूरे परिदृश्य से यदि किसी की भूमिका सबसे अधिक उभरी तो वह थी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की।

जहाँ अमेरिका गायब था, वहाँ भारत सक्रिय था। जहाँ पश्चिमी देश मौन थे, वहाँ भारत ने ग्लोबल साउथ की आवाज उठाई। जहाँ G20 नेतृत्व की विफलता दिख रही थी, वहाँ मोदी ने IBSA और G20 के बीच पुल का काम किया। IBSA बैठक में प्रधानमंत्री का यह कहना कि UNSC सुधार अपरिहार्य है,

आतंकवाद पर डबल स्टैंडर्ड बर्दाश्त नहीं, ग्लोबल साउथ को सामूहिक आवाज़ चाहिए, केवल भारतीय रुख नहीं था; यह आज की वैश्विक वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करता था। यह बात दुनिया देख रही है कि भारत केवल मुद्दों पर बात नहीं करता, भारत समाधान लेकर आता है।

अमेरिका की अनुपस्थिति ने ज्यों ही एक रिक्तता पैदा की, मोदी की लगातार द्विपक्षीय बैठकें इस बात का स्पष्ट प्रमाण बन गईं कि दुनिया भारत को स्थिर नेतृत्व के रूप में देखती है। जापान की नई प्रधानमंत्री साने ताकाइची से मुलाकात केवल औपचारिकता नहीं थी; यह भारत–जापान Special Strategic Partnership को नई ऊर्जा देने का क्षण था। AI, सेमीकंडक्टर, रक्षा और इंडो-पैसिफिक, इन सभी महत्वपूर्ण आयामों में दोनों देशों का सहयोग एशिया के लिए निर्णायक होगा।

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के साथ हुई बातचीत में ‘India–Italy Initiative to Counter Terror Financing’ का अपनाया जाना यह दर्शाता है कि भारत अब वैश्विक आतंकवाद-रोधी ढांचे का नेता बन चुका है। वहीं काफी तनावपूर्ण पृष्ठभूमि के बावजूद कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के साथ बातचीत का सकारात्मक और उत्पादक होना भारत की कूटनीतिक परिपक्वता का प्रमाण है। CEPA वार्ता का फिर शुरू होना दोनों देशों के संबंधों में नया आत्मविश्वास दर्शाता है।

इसके अलावा, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रामाफोसा के साथ बैठक में दोनों नेताओं ने यह पुनः स्थापित किया कि भारत और दक्षिण अफ्रीका केवल साझेदार नहीं, बल्कि उभरते वैश्विक दक्षिण के नेतृत्वकर्ता हैं। AI, टेक्नोलॉजी और भविष्य की अर्थव्यवस्था का वैश्विक एजेंडा भारत तय कर रहा है।

साथ ही G20 के तकनीकी सत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह मानव–केंद्रित AI का विज़न रखा, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत केवल अपनी तकनीकी ताकत नहीं दिखा रहा, बल्कि यह बता रहा है कि आने वाली दुनिया कैसी होनी चाहिए। भारत द्वारा 2026 में आयोजित होने वाला AI Impact Summit अब वैश्विक एजेंडा–सेटिंग आयोजन बन गया है। यह वही स्थान है जहाँ अमेरिका की जगह अब भारत नई दिशा तय कर रहा है।

बहरहाल, दक्षिण अफ्रीका में हुआ G20 शिखर सम्मेलन एक असहज वास्तविकता लेकर आया, अमेरिका का नेतृत्व डगमगा रहा है। परंतु इसके साथ-साथ इसने एक नई आशा भी जगाई कि भारत विश्व मंच पर एक स्थिर, विश्वसनीय, संतुलित और दूरदर्शी शक्ति के रूप में उभर चुका है।

प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति ने साबित कर दिया कि भारत अब केवल वैश्विक राजनीति में सहभागी नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक शक्ति है। अमेरिका की अनुपस्थिति ने जो खालीपन छोड़ा, भारत ने उसी खालीपन को नेतृत्व से भर दिया। आज दुनिया भारत को सुनती भी है, भारत के साथ चलती भी है और भारत पर विश्वास भी करती है। यह केवल एक शिखर सम्मेलन की कहानी नहीं, यह 21वीं सदी में भारत के उदय की कहानी है।

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