पीपल की छांव में कोई गौतम नहीं है-डॉ समी बहुआरवी

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श्रीनारद मीडिया, सीवान,बिहार (बिहार):

सीवान जिला के बड़हरिया प्रखंड के बहुआरा बाजार पर मशहूर शायर डॉ समी बहुआरवी की ओर से शायर एहसान बहुआरवी मरहूम की याद में काव्य संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता शायर एहसान बहुआरवी के दोस्त और साहित्यकार शफि इमाम ने की। जबकि काव्य संगोष्ठी का संचालन शायर डॉ समी बहुआरवी ने किया।

इस मौके पर साहित्यकार शफी इमाम ने एहसान बहुआरवी की साहित्यिक यात्रा के सुनहरे पलों को याद करते हुए कहा कि एहसान साहब की स्टुडेंट लाइफ से शेरो-शायरी में दिलचस्पी थी। भले उन्होंने मुम्बई रहकर मैथ के टीचर के रुप में अपनी जिंदगी गुजारी हो। लेकिन ताउम्र उनका अदब से रिश्ता रहा है।उन्होंने कहा कि उनके दो काव्य संग्रह” मिट्टी की महक” और ” यादों के साये” प्रकाशित हुए हैं। हालांकि जब एहसान साहब गांव होते थे तो यारों के साथ उनके कलामों की महफिल सजती रहती थी,जो उनकी यादों को और तरोताज़ा कर देती हैं।

डॉ समी बहुआरवी ने उनके कुछ कलाम सुनाकर उनको याद किया। अन्य लोगों ने भी उनकी शायरी हवाले से ढेर सारी बातें कहीं।उसके बाद उनकी याद में डॉ समी बहुआरवी ने अपने कुछ यूं पेश किया-“मेरे गांव की सूनी पगडंडियों पर बहुत दिनों से पायल की छमछम नहीं है, सरे रहगुज़र मुंतज़िर वो पीपल मेरी छांव में कोई गौतम नहीं है”। इस अवसर पर शायर रजी अहमद फैजी ने पढ़ा “करने दे अनथक परिश्रम अपने हिस्से का मुझे,मुख दिया है तो अन्न भी देगा मेरा अन्नदाता।” सुप्रसिद्ध मेराजुद्दीन तिश्ना ने अपना कलाम कुछ यूं पेश किया- “न मुझसे कि क्या-क्या चुराकर लाया हूं, जो भी लाया हूं अच्छा चुराकर लाया हूं।

वह जिस ट्रेन ने पहुंचा दिया था जेल मुझे,उसी ट्रेन का पंखा चुराकर लाया हूं।” शायर एहसानुल्लाह एहसान ने अपना यह कलाम पेश कर वाहवाहियां लूटीं- “मैं पत्थर हूं कि हीरा कौन जाने किसीने आजतक परखा नहीं है।न इतराओ जमाने के खुदाओ बुलंदी पर को ठहरा नहीं है।” शायर नूर सुल्तानी ने अपनी बात यूं पेश की-“तेरी-मेरी जिंदगी का यही किस्सा रहा , जिस तरह जुगनू को जलता रहा बुझता रहा।” हास्य कवि हरेंद्र शर्मा मुंहफट ने भोजपुरी में अपनी रचना को यूं परोसा -तू खोबसत रह,हम सहत रहीं, तू पटना रह आ हम घरहीं रहीं।

इस मौके पर मो इमामुद्दीन, मकसूद आलम, इशराक अहमद, मास्टर मिसबाहुल हक, हासिम अली अर्शी, मास्टर मसलेहुद्दीन, अली असगर खान, इजहार अली, मो सालिक, अब्दुल्लाह वगैरह मौजूद थे।

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