वर्ष 2025 और 1941 के कैलेंडर में समानता है,कैसे?

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 क्या 2025 दोहराएगा 1941 जैसा इतिहास?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्ष 2025 के छह माह देश के लिए उथल-पुथल भरे रहे हैं। महाकुंभ में भगदड़, कश्मीर में आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर से युद्ध जैसे हालात और अब जून के शुरुआती महीने में अहमदाबाद प्लेन क्रैश की घटना के चलते यह साल देश के लिए ठीक नहीं रहा है। ग्रह गोचर की स्थितियां विकट रही हैं। ज्योतिषीय गणना शुरुआत से यह संकेत देती रही हैं कि यह साल मंगल का होने के चलते और देवगुरु बृहस्पति की अतिचारी चाल से दुनिया में भारी तबाही मचेगी। जलवायु परिवर्तन के संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं।

दरअसल, माना जा रहा है कि साल 2025 का कैलेंडर 1941 के कैलेंडर से मिल रहा है। आश्चर्य तो यह भी है कि सिर्फ कैलेंडर ही नहीं घटनाक्रम भी वैसे ही निर्मित होते जा रहे हैं। साल 1941 के इतिहास पर नजर डालें तो यह दौर वैश्विक उथल-पुथल का था एक आरे दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था तो वहीं दूसरी ओर अकाल, महामारी और आर्थिक संकट पैदा हो रहे थे।

यही वह साल था जब अमेरिका जापान पर परमाणु बम से हमला करने की तैयारी कर रहा था, यानी दशकों पर यह साल इतिहास में दर्ज सबसे काले समय में से एक था। खास बात यह है कि वर्ष 2025 का यह साल इतिहास के उसी कालखंड को दोहरा रहा है। देखा जाए तो सिर्फ कैलेंडर की हर तारीख और हफ्ते ही मैच नहीं कर रहे हैं बल्कि ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और चाल भी लगभग आसपास है।

ग्रह-नक्षत्र का योग

पीछे पलटकर देखें तो 1937 में मार्च में जब शनि मीन राशि में आया था तब द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हो चली थी। चीन ने जापान पर आक्रमण किया और धीरे-धीरे दुनिया में तनाव बढ़ता गया। फिर शनि ने मीन से मेष में प्रवेश किया था तो पर्ल हार्बर पर हमला हुआ था और इसके बाद जापान पर एटम बम गिराए गए थे। इसी दौरान बृहस्पति ग्रह भी अतिचारी गोचर कर रहे थे और कई तरह के अशुभ योग बने हुए थे।
महाभारत काल में यानी 5000 हजार वर्ष पहले गुरु 7 राशियों में 7 वर्ष तक अतिचारी रहे थे, जिसके चलते महायुद्ध हुआ था। वर्तमान में गुरु के अतिचारी, शनि के मीन में गोचर और राहु के कुंभ में गोचर के दौरान देश और दुनिया का संपूर्ण परिदृश्य बदल गया है।

1941: एक ऐतिहासिक रूप से भारी साल

1941 में बहुत कुछ हुआ जिसने दुनिया की दिशा ही बदल दी।

  • 7 दिसंबर को जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला किया, जिससे अमेरिका सीधे द्वितीय विश्व युद्ध में कूद पड़ा।

  • यूरोप पहले से ही युद्ध की आग में जल रहा था और वैश्विक अशांति चरम पर थी।

इसलिए, जब लोग 2025 और 1941 का कैलेंडर मेल खाते हुए देखते हैं, तो स्वाभाविक रूप से डर लगने लगता है कि “क्या फिर कुछ बड़ा होने वाला है?”

सोशल मीडिया पर क्यों हुआ वायरल?

Reddit जैसे प्लेटफॉर्म्स पर, खासकर r/decadeology जैसे थ्रेड्स में, लोग इस संयोग पर उत्साहित होकर चर्चा कर रहे हैं।

  • कुछ इसे “इतिहास की पुनरावृत्ति” मान रहे हैं।

  • तो कुछ इसे वैश्विक बदलाव का संकेत बता रहे हैं।

यह इंसानी स्वभाव है कि जब दुनिया पहले से अस्थिर लगती है, तो हम पैटर्न ढूंढते हैं, भले ही वे सिर्फ संयोग ही क्यों न हों।

सच क्या है? 

एक ही कैलेंडर का दो बार आना किसी भविष्यवाणी या अलौकिक संकेत का हिस्सा नहीं है। यह वैसा ही है जैसे दो ट्रेनें एक स्टेशन पर एक ही समय पर मिल जाएं। मतलब यह नहीं कि वे एक ही दिशा में जा रही हैं। 1941 की घटनाएं वैश्विक राजनीतिक तनाव, तानाशाही और टूटे कूटनीतिक रिश्तों का नतीजा थीं न कि कैलेंडर की तारीखों का।

हम ऐसे दावों पर क्यों यकीन कर लेते हैं?

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जब दुनिया अनिश्चित होती है, तो हमारा दिमाग उसे समझने के लिए कहानी, पैटर्न और संकेत ढूंढता है।

  • यही कारण है कि 2025 = 1941 जैसी थ्योरीज़ वायरल होती हैं।

  • लोगों को डर के साथ-साथ एक सिंपल नैरेटिव मिल जाता है जिसे वे पकड़ सकते हैं।

2012 में ‘माया कैलेंडर’ का डर भी इसी का उदाहरण था।

1941 से क्या सीखना चाहिए?

अगर कुछ सीखना है, तो यह कि

  • अवसर गंवाना, आक्रामक नीतियां और संवादहीनता दुनिया को कहां ले जा सकती है।

  • 2025 में हमारी चुनौतियां अलग हैं क्लाइमेट चेंज, AI की नैतिकता, जियो-पॉलिटिकल तनाव।

  • इनका समाधान कैलेंडर नहीं, हमारे फैसले और एक्शन देंगे।

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