केंद्र की ओर से जनगणना में अभी और होगी देरी,क्यों ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में जनगणना करने की कवायद को 30 सितंबर तक स्थगित कर दिया गया है। अधिकारियों ने बताया कि जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register) को अपडेट करने की प्रक्रिया देश भर में एक अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 तक शुरू होने वाली थी लेकिन कोरोना वायरस (Coronavirus) के कारण इसे टाल दिया गया था।

30 जून तक प्रशासनिक सीमाओं को किया गया सील

इस संबंध में भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय ने सभी राज्यों को भेजे पत्र में बताया कि प्रशासनिक सीमाओं को सील करने की तारीख 30 जून तक बढ़ा दी गई है। मानदंडों के तहत, जिला, उप-जिलों, तहसीलों, तालुकों और पुलिस थानों जैसी प्रशासनिक जगहों पर अलर्ट की वजह से तीन महीने बाद ही जनगणना की जा सकती है। पत्र में यह भी कहा गया कि राज्य सरकारें 30 जून, 2023 तक प्रशासनिक सीमा में किसी भी बदलाव को लागू कर सकती हैं और अधिसूचना के माध्यम से इसकी जानकारी उन्हें दे सकती हैं।

जनगणना का काम रुका हुआ है

बता दें कि कोविड महामारी से पहले 1 जनवरी, 2020 से 31 मार्च, 2021 तक प्रशासनिक सीमाओं पर रोक प्रभावी थी। बाद में जनगणना 2021 को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया था और नई इकाइयां बनाने की अनुमति के लिए राज्यों से कई अनुरोध प्राप्त हुए थे। इसके बाद इसे दो 31 दिसंबर, 2021 और फिर 31 दिसंबर, 2022 तक टाला गया था। जनगणना का काम अभी भी रुका हुआ है और सरकार ने अभी तक नए कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • प्राचीन साहित्य ‘ऋग्वेद’ में 800-600 ई०पू० में जनगणना का उल्लेख किया गया है।
  • कौटिल्य के अर्थशास्त्र (लगभग 321-296 ई०पू०) में कराधान (Taxation) के उद्देश्य से जनगणना को राज्य की नीति (State Policy) में शामिल करने पर बल दिया गया है।
  • मुगल काल में अकबर के शासन के दौरान प्रशासनिक रिपोर्ट “आईन-ए-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योगों और समाज के अन्य पहलुओं से संबंधित विस्तृत आँकड़ों को शामिल किया जाता था।
  • भारत में पहली जनगणना गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासनकाल में वर्ष 1872 में की गई थी। हालाँकि देश की पहली जनगणना प्रक्रिया को गैर-समकालिक (देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग समय पर) रूप से पूर्ण किया गया। वर्ष 1881 में पहली बार पूरे देश में एक साथ जनगणना कराई गई।
  • जनगणना-2021 अब तक की 16वीं (वर्ष 1872 से) और देश की स्वतंत्रता के बाद से 8वीं जनगणना होगी।
  • जनगणना का महत्त्व:

    आँकड़े का व्यापक स्रोत: जनगणना बृहत् स्तर पर आँकड़े (Data) एकत्र करने की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसके तहत देश के जनसांख्यिकीय लाभांश के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाती है। जो देश के नीति निर्माण के साथ कई अन्य उद्देश्यों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

    महत्त्वपूर्ण निर्णयों में सहायक: किसी भी देश के साक्ष्य-आधारित निर्णयों में जनगणना के आँकड़ों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

    • जनगणना के माध्यम से एकत्र किये गए आँकड़ों का प्रयोग शासन, प्रशासन, योजनाओं और नीतियों के निर्माण तथा उनके प्रबंधन के साथ सरकार,स्वयंसेवी संस्थाओं, निजी एवं व्यावसायिक निकायों द्वारा चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के मूल्यांकन आदि में होता है।

    नीति निर्माण: किसी भी देश में जनगणना के माध्यम से सामाजिक तथा प्रशासन के हर पहलू (जिसमें उपभोक्ता से लेकर उत्पादक तक शामिल हैं) के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की जाती है। अतः इसके प्रयोग से नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन की वैज्ञानिक योजना तैयार करने में साम्यता बढ़ाई जा सकती है, जिससे उपलब्ध संसाधनों से ही बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

    • जनसांख्यिकी, अर्थशास्त्र, मानव विज्ञान, और कई अन्य क्षेत्रों के विद्वानों तथा शोधार्थियों के लिये भारत की जनगणना से प्राप्त आँकड़े (Data) का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा हैं।
    • जनगणना से प्राप्त आँकड़े ज़मीनी स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों के लिये उपलब्ध होते हैं, जिससे क्षेत्र विशेष के विकास हेतु आवश्यक निर्णय लिये जा सकते हैं।
    • जनगणना के आँकड़ों के माध्यम से समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को ध्यान में रखते हुए सरकारी कार्यक्रमों के संचालन और उनकी सफलता को सुनिश्चित किया जाता है।
    • निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन में: जनगणना के आँकड़ों के आधार पर ही लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है।
    • अनुदान के निर्धारण में: वित्त आयोग राज्यों के लिये अनुदान का निर्धारण जनसंख्या के आधार पर करता है। ऐसे में जनगणना से प्राप्त जनसंख्या संबंधी ये आँकड़े राज्यों को दिये जाने वाले अनुदान के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

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