एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामले के तीस वर्ष

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामले पर वर्ष 1994 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा निर्णय किया गया जो अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकारों की मनमाना रूप से बर्खास्तगी को प्रतिबंधित करता है। इस निर्णय के 30 वर्ष बाद भी भारत के संवैधानिक ढाँचे को आकार देने में इसकी भूमिका बनी हुई है।

एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामला क्या है?

  • एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1985 में जनता पार्टी ने कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बनाई और मुख्यमंत्री के रूप में रामकृष्ण हेगड़े को चयनित किया। वर्ष 1988 में हेगड़े के स्थान पर एस.आर.बोम्मई ने मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया।
      • सितंबर 1988 में जनता दल के एक विधायक ने विधानसभा के 19 अन्य सदस्यों के साथ पार्टी छोड़ दी और बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।
    • सदस्यों द्वारा दलबदल करने से पार्टी का बहुमत प्रभावित हुआ जिसके कारण अनुच्छेद 356 का उपयोग कर राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। बोम्मई द्वारा बहुमत परीक्षण का अनुरोध किया गया जिसे राज्यपाल ने अस्वीकार कर दिया।
    • बोम्मई ने उच्च न्यायालय का रुख किया जिसमें बोम्मई के विरुद्ध निर्णय सुनाया गया, जिसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस तथ्य पर बल दिया कि अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति द्वारा आपात की उद्घोषणा का सावधानी से प्रयोग किया जाना चाहिये, जैसा कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर और सरकारिया आयोग द्वारा अनुशंसा की गई थी।
    • संसद के दोनों सदनों को अनुच्छेद 356(3) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा आपात की उद्घोषणा का गहन विश्लेषण करना चाहिये।
      • यदि उद्घोषणा दोनों सदनों की मंज़ूरी के बिना जारी की जाती है तो यह दो माह के भीतर समाप्त हो जाती है और राज्य विधानसभा अपना संचालन पुनः प्रारंभ कर सकती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय उद्घोषणा की न्यायिक समीक्षा कर सकती है और इसकी वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर विचार कर सकती है यदि याचिका में तर्कपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं।
    • निर्णय में यह स्पष्ट किया कि किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति पूर्ण/आत्यंतिक नहीं है अपितु सीमाओं के अधीन है।
      • यह माना गया कि हालाँकि अनुच्छेद 356 विधानमंडल के विघटन को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करता है, फिर भी इससे ऐसी शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है।
      • अनुच्छेद 174(2) जो राज्यपाल को विधान सभा को भंग करने की अनुमति देता है तथा अनुच्छेद 356(1)(A), जो राष्ट्रपति को राज्यपाल एवं राज्य सरकार की शक्तियों को प्रदान करने में सक्षम बनाता है,जो विधान मंडल को भंग करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले का महत्त्व:
    • एस.आर. बोम्मई मामला मूल संरचना सिद्धांत के साथ-साथ अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को दर्ज करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों में से एक है।
    • निर्णय द्वारा अनुच्छेद 356 के दायरे तथा सीमाओं पर स्पष्टता प्रदान की और साथ ही केवल असाधारण परिस्थितियों में इसके उपयोग पर ज़ोर दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत सरकारिया आयोग की सिफारिशों के अनुरूप थे।
    • इस मामले ने संघवाद के सिद्धांतों की पुष्टि की, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकारें केंद्र के अधीन नहीं हैं और साथ ही यह सहकारी संघवाद की वकालत भी करती हैं।
    • निर्णय में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति के कार्यों की जाँच करने, संवैधानिक सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने तथा शक्ति के दुरुपयोग को रोकने में न्यायपालिका की भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
    • इसने पुष्टि की कि विधानसभा का पटल सरकार के बहुमत का परीक्षण करने का एकमात्र अधिकार है, न कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक राय का।

नोट:

  • सरकारिया आयोग ने कुछ मामलों में अनुच्छेद 356(1) को लागू करने से पहले राज्य को सूचित करने की अनुशंसा की।
    • इसमें कहा गया है कि समस्या को हल करने के लिये पहले अन्य सभी विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये और साथ ही अनुच्छेद 365 का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब कोई अन्य विकल्प उपलब्ध न हो जो समस्या को हल करने के लिये लागू किया जा सके।
  • सहकारी संघवाद एवं प्रतिस्पर्द्धी संघवाद: 
    • सहकारी संघवाद में केंद्र तथा राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहाँ वे व्यापक सार्वजनिक हित में “सहयोग” प्रदान करते हैं।
      • यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण एवं कार्यान्वयन में राज्यों की भागीदारी को सक्षम करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
      • संघ तथा राज्य संविधान की अनुसूची VII में निर्दिष्ट मामलों पर एक दूसरे के साथ सहयोग करने के लिये संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।
    • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच संबंध लंबवत् एवं राज्य सरकारों के बीच क्षैतिज होता है।
      • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में राज्यों को लाभ के लिये आपस में और केंद्र के साथ भी प्रतिस्पर्द्धा करने की आवश्यकता होती है।
      • राज्य धन और निवेश आकर्षित करने के लिये एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिससे प्रशासन में दक्षता आती है तथा विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि होती है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 क्या है?

  • अनुच्छेद 356 की पृष्ठभूमि:
    • संविधान सभा में प्रारंभिक चर्चा में इस बात पर विचार किया गया कि क्या भारत को संघीय या एकात्मक सरकार प्रणाली अपनानी चाहिये।
      • विचार के दो मत उभरे, जिनमें संघवाद के समर्थक विकेंद्रीकृत शक्तियों के लिये तर्क दे रहे थे और अन्य अधिक केंद्रीकृत एकात्मक राज्य का समर्थन कर रहे थे।
    • डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट किया कि भारत संघीय और एकात्मक दोनों सिद्धांतों के तहत कार्य करता है, सामान्य परिस्थितियों में संघवाद प्रचलित होता है तथा आपात स्थिति के दौरान एकात्मक नियंत्रण होता है।
      • दुरुपयोग के खिलाफ चेतावनियों के बावजूद, परवर्ती सरकारों ने राजनीतिक कारणों से अनुच्छेद 356 को बार-बार लागू किया, जिसके परिणामस्वरूप इसे 132 बार लागू किया गया।
  • अनुच्छेद 356: 
    • भारत के संविधान का अनुच्छेद 356 भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 93 पर आधारित है।
    • अनुच्छेद 356 के अनुसार, संवैधानिक प्रशासन की विफलता के आधार पर भारत के किसी भी राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
    • राष्ट्रपति शासन दो स्थितियों में लगाया जा सकता है: जब राष्ट्रपति को राज्य के राज्यपाल से एक रिपोर्ट प्राप्त होती है या अन्यथा वह आश्वस्त होता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं कर पाती है (अनुच्छेद 356) तथा जब कोई राज्य केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है (अनुच्छेद 365)।
    • राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य सरकार निलंबित हो जाती है और केंद्र सरकार सीधे राज्यपाल के माध्यम से राज्य का प्रशासन चलाती है।
    • राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये संसदीय अनुमोदन आवश्यक है और इसे दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत से अनुमोदित किया जाना चाहिये।
    • प्रारंभ में, राष्ट्रपति शासन छह महीने के लिये लागू होता है और इसे हर छह महीने में संसदीय मंज़ूरी के साथ तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
    • संविधान में 44वें संशोधन (1978) ने राष्ट्रपति शासन को एक वर्ष से अधिक बढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे केवल राष्ट्रीय आपातकाल के मामले में विस्तार की अनुमति मिलती है या यदि निर्वाचन आयोग राज्य विधानसभा चुनाव आयोजित करने में कठिनाइयों के कारण आवश्यकता को प्रामाणित करता है।
  • केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग (1988) की रिपोर्ट के आधार पर, बोम्मई मामले, 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने उन स्थितियों को सूचीबद्ध किया जहाँ अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति का प्रयोग उचित या अनुचित हो सकता है।
  अनुच्छेद 356 का उचित उपयोग अनुच्छेद 356 का अनुचित उपयोग
त्रिशंकु विधानसभा:  चुनाव के बाद किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता। वैकल्पिक मंत्रालय गठन की खोज किये बिना मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र दे दिया।
बहुमत दल ने मंत्रालय बनाने से इनकार कर दिया, और बहुमत वाला कोई गठबंधन मंत्रालय उपलब्ध नहीं है। राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण की अनुमति दिये बिना राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
विधानसभा में हार के बाद मंत्रिमंडल ने त्याग-पत्र दे देता है और कोई भी पार्टी बहुमत के साथ नया मंत्रालय नहीं बना सकती है। लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी की बड़ी हार हुई है।
संविधान का आंतरिक तोड़फोड़ या जानबूझकर उल्लंघन। आंतरिक अशांति तोड़फोड़ या विघटन की श्रेणी में नहीं आती।
राज्य सरकार केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देश की अवहेलना करती है। उचित चेतावनी के बिना कुप्रशासन या भ्रष्टाचार के आरोप।
शारीरिक विच्छेद, राज्य सुरक्षा को खतरे में डालना। अंतर्पक्षीय मुद्दों या अप्रासंगिक उद्देश्यों के लिये दुरुपयोग।
आपातकालीन स्थिति को छोड़कर राज्य सरकार को पूर्व चेतावनी नहीं दी जाती है।

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