यह वह देश तो नहीं,मॉरीशस: एक सामाजिक यात्रा
पुस्तक के लेखक देवेंद्र चौबे सर जेएनयू के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफ़ेसर है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“वह एक अद्भुत समय था,जब अफ्रीकी महाद्वीप के एक टापू पर गिरमिटिया मज़दूरों ने उगाई भविष्य की फसलें। अपने होने और अपनी मातृभाषा के गीत गाये- –
पढिह लिखिह कउनो भाषा
बतियह भोजपुरी में…”
यह यात्रा-वृत्तांत की एक अलग तरह की किताब है। संस्मरण और यात्रा-वृतांत जैसी लेखन-विधाओं से जिस प्रकार दूसरे समाजों की सामाजिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, भाषिक आदि विशेषताओं का उल्लेख किया जाता है; ठीक उसी तरह, डायरी, यात्रा-वृत्तांत लेखन किसी समाज के इन्हीं तत्वों को दर्ज करने में सहायक विधा हो सकती है, यह इस पुस्तक को पढ़कर समझा जा सकता है।
आजादी के बाद, पाश्चात्य सभ्यता, अलग-अलग संस्कृतियों और विचारधाराओं का प्रभाव, प्रौद्योगिकी विकास, आधुनिकीकरण की प्रक्रिया, राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव, भूमंडलीकरण के चलते पूंजीवाद के फैलाव, समाज पर पड़ने वाले आर्थिक दबाव, सांस्कृतिक मूल्यों का हनन,
लोक साहित्य और संस्कृति से नयी पीढ़ी का दुराव, स्त्री-पुरुष के आपसी संबंध के यथार्थ की चुनौतियाँ और समयाभाव के कारण दौड़-भाग की जिंदगी ने मॉरिशसीय जन-जीवन की पद्धति और चिंतनधारा को किस प्रकार गहरे प्रभावित किया है, इसका जायजा आप्रवासी लेखन एवं वहाँ के शहरों और गाँवों की सामाजिक यात्रा करते हुए निम्न तबके के लोगों, किसान, मजदूर, लोक गायकों, समाज वैज्ञानिकों एवं धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के साथ ही, अफ्रीकी गुलामों और भारतीय शर्तबंध मजदूरों के मुक्ति-संघर्ष से संबन्धित अविस्मरणीय तारीखों और जगहों को दर्ज करते हुए लगाया जा सकता हैं।

डायरी, यात्रा-वृत्तांत शैली में लिखित इस किताब में इस बात की तरफ भी संकेत है कि मॉरीशस की आजादी से पहले ब्रिटिश शासन की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ आप्रवासी मजदूरों ने जो मुहिम छेड़ी थी, उसे मॉरिशस पर लिखने वाले अधिकांश लेखकों ने नगण्य मान वहां के धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलनों की भूमिका पर अधिक जोर दिया, जबकि इस पुस्तक में वहाँ के संस्कृतितक पक्ष के साथ ही सामजिक-राजनितिक सन्दर्भों के उस पक्ष पर भी ज़ोर दिया गया हैं जो मॉरीशस को एक अलग देश के रुप में खड़ा करता हैं।
पुस्तक के लेखक प्रो. देवेंद्र चौबे सर देश के नामचिन मानविकी और भाषा विज्ञान के प्रतिष्ठित संस्था जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान केंद्र में आप प्रोफेसर है। आप लोक, इतिहास एवं संस्कृति के दक्ष अध्येता हैं आपकी कई पुस्तकें हम जैसे शोधार्थी को मार्ग प्रदान करती है
हिंदी के चर्चित लेखकों में से एक देवेंद्र चौबे की गहरी दिलचस्पी साहित्य के इतिहास, स्वधीनता आंदोलन, समाजशास्त्र, हाशिये के समाज, दलित साहित्य, सृजनात्मक लेखन और समकालीन साहित्य की सैद्धांतिक प्रक्रियायों को समझने में है।

शिक्षाविद के रूप में आप मॉरीशस, जापान, चीन, श्रीलंका, उज़्बेकिस्तान, नेपाल आदि देशों की यात्रा कर चुके है, आपकी चर्चित पुस्तकें हैं – _पर, ज़रूरी है कविता_ (काव्य), _कुछ समय बाद (_ कहानी -संग्रह), _आधुनिक भारत के इतिहास लेखन के कुछ साहित्यिक स्रोत, आलोचना का जनतंत्र, आधुनिक साहित्य में दलित विमर्श, समकालीन कहानी का समाजशास्त्र, अमृतलाल नागर : शहर की संस्कृति और इतिहास के सवाल, 1857: भारत का पहला मुक्ति संघर्ष, विश्व साहित्य : चुनिंदा रचनाएँ, पंचकोशी मेला, रसखान_ (कॉफ़ी टेबल बुक, सीसीआरटी,संस्कृति मंत्रालय) आदि।


