सामयिक परिवेश द्वारा आयोजित तीन दिवसीय साहित्य संगीत एवं नाट्य समागम 10 वां आदि शक्ति प्रेमनाथ खन्ना स्मृति समारोह  सम्पन्न

सामयिक परिवेश द्वारा आयोजित तीन दिवसीय साहित्य संगीत एवं नाट्य समागम 10 वां आदि शक्ति प्रेमनाथ खन्ना स्मृति समारोह  सम्पन्न
श्रीनारद मीडिया, पटना (बिहार):
कविगोष्ठी एवं अवलोकन के मंचन के साथ साहित्य संगीत एवं नाट्य समागम सम्पन्न कला संस्कृति एवं युवा विभाग,बिहार सरकार के सौजन्य से सामयिक परिवेश द्वारा आयोजित तीन दिवसीय साहित्य संगीत एवं नाट्य समागम 10 वां आदि शक्ति प्रेमनाथ खन्ना स्मृति समारोह कविगोष्ठी एवं नाटक अवलोकन के मंचन के साथ सम्पन्न हो गया|इस अवसर पर ममता मेहरोत्रा सम्पादित पुस्तक भारत एक खोज का विमोचन हुआ।
ममता मेहरोत्रा की इस कहानी अवलोकन का नाट्य रूपांतरण मणिकांत चौधरी किया| रंग गुरूकुल के कलाकारों ने राजवीर गुंजन ने निर्देशन में इसे मंचित किया| प्रथम सत्र में लिट्रा पब्लिक स्कूल, पाटलीपुत्रा के बच्चों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए| दूसरे सत्र में काव्य पाठ  का आयोजन हुआ|
संध्या सत्र में ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग एंड पारामेडिकल साइंस कॉलेज के छात्रों ने विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किए और नाटक अवलोकन का मंचन हुआ।मंच पर रंगोली पांडे, मणिकांत चौधरी, रेणु जी, विष्णु देव कुमार, राहुल पाठक, सौरभ सिंह, अनामिका, गौतम निराला एवं मनोज मयंक ने अभिनय किया| मंच परे कहानीकार – ममता मेहरोत्रा, नाट्यरूपांतरण- मणिकांत चौधरी, मेक अप – अंजू और मयंक, लाइट:- विनय कुमार, प्रोडक्शन कंट्रोलर- दीपक कुमार, सेट  – सुनील कुमार शर्मा, मीडिया – रुपेश कुमार सिन्हा, कॉस्ट्यूम एवं प्रोडक्शन मैनेजर:- अनुपमा, म्यूजिक, डिज़ाइन एंड डायरेक्शन- राजवीर गुंजन ने किया|  प्रेमचंद रंगशाला में आयोजित
कवि सम्मेलन का उद्घाटन ममता मेहरोत्रा, भगवती प्रसाद द्विवेदी,प्रेम किरण, ईश्वर चंद्र जायसवाल उत्तर प्रदेश, डॉ.कुमार विरल, डॉ. देव द्रव अकेला रहे।कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन कवयित्री सविता राज ने किया।उद्घाटन के बाद कवि सम्मेलन का आरंभ हुआ।कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. मीना कुमारी परिहार के गणेश वंदना से किया गया।ममता मेहरोत्रा ने “दुनिया वाले क्या समझेंगे वाह के पीछे के ग़म को,किस किस दुख से गुजरी ममता अपने शेर सुनाने को” सुनाकर वाहवाही बटोरी।सविता राज ने “होठों पर मुस्कान दिखानी पड़ती है, पीर हृदय की रोज़ छुपानी पड़ती है”सुनाकर तालियां बटोरी।
ईश्वर चंद्र जायसवाल ने “नाग देव को  पूजिये, लेकर  उनका नाम,नागेश्वर की ले दया, कर ईश्वर शुभ काम” ने खूब वाहवाही बटोरी।अंजनी कुमार पाठक ने “रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे,पेड़ों पर हरियाली आये” सुनाकर दर्शकों का मन मोह लिया।, डॉ कुमारी अन्नू ने “पता नहीं कब किस पनघट पर भेंट किसी से हो जाए” सुनाकर तालियां बटोरी। डॉ. कुमार विरल ने “मिट्टी की गंध लिए,पुरवाई छंद लिए, अकुलाए शब्दों के पांव,   दौड़ रहे नगर डगर गाँव” सुनाकर माहौल को खुशनुमा बना दिया।सुधांशु राज ने “सिक्का उछाल और देख ,
तेरी मेरी कितनी औकात बची है ?” को बहुत पसंद किय गया। अंशु कुमार ने “के आंखों को अंगार करो,
हृदय को हथियार करो,
लड़ना हो जो गिद्धों से तो पंजों को तैयार करो।” सुनाकर वाहवाही बटोरी। काव्यपाठ करने वालों में ईश्वर चंद्र जायसवाल,भगवती प्रसाद द्विवेदी,प्रेम किरण, सौरभ प्रभात डॉ. सुनील कुमार उपाध्याय,डॉ. कुमार विरल, अनुभव कुमार,डॉ. मीना कुमार परिहार, मीरा श्रीवास्तव, डॉ. प्रतिभा रानी, शिवेंद्र मालवीय,विद्यापति चौधरी,सिद्धेश्वर, डॉ. विजय गुंजन, मुकुंद, राजप्रिया रानी, मुकुंद, गोपाल फ़लक,गोपाल फ़लक आशा रघुदेव, कृष्णनंदन कनक, डॉ. बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता मुख्य रहे।कार्यक्रम का आभार ज्ञापन अंजनी कुमार पाठक ने किया।
अवलोकन  की कहानी एक ऐसी लड़की पे आधारित है जो एक मध्ये वर्गीय परिवार में जन्मी है और पड़ाई में काफ़ी आगे है और अपने माता पिता की लाडली है , लड़की जो की उसका नाम मधु है वो जब कॉलेज जाना शुरू करती है तो वहाँ वो एक लड़के से प्यार कर बैठती है और प्यार इतना आगे बड़ जाता है की वो अपनी सिमाओ को भी भूल जाती है और एक दिन वो ग़लत कदम उठा लेती है।
प्यार करना बुरी बात नहीं लेकिन प्यार में अंधा हो जाना और किसी पे अपने से ज़्यादा विश्वास करना ये ग़लत है जो उसके और उसके परिवार के लिए काफ़ी मुश्किल पैदा कर देती है।एक बड़े बाप के बेटे के प्यार में पड़कर एक मिडल क्लास में रहने वाली लड़की कैसे अपने आपको उस जगह तक ले जाती है जहाँ से वापस आना बड़ा ही मुश्किल हो जाती है । जब उसे अपने गलती का एहसास होता है तब तक बहुत देर हो जाती है और समाज में उसके पिता कहीं मुँह देखाने लायक नहीं रहते । परिवार की शर्मिंदगी और प्यार से मिला धोखा को मधु सह नहीं पाती और एक ऐसा कदम उठा लेती है जिससे उसकी ज़िंदगी ख़त्म हो जाती है पर उसके इस कदम से समाज पे एक सवाल छोड़ जाती है कि समाज के कुछ ऐसे सभ्रांत लोग जो अपने आप को समाज के अच्छे ठेकदार तो कहलाते है लेकिन वही ठेकेदार चुप हो के तमाशबीन बन जाते है ।

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