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बाघ की गुफाएँ,स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन - श्रीनारद मीडिया

बाघ की गुफाएँ,स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन

बाघ की गुफाएँ,स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क 

बाघ की गुफ़ाएं मध्य प्रदेश में इन्दौर के पास धार में स्थित हैं। वाघ की गुफ़ाएं प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन हैं। वाघ की गुफ़ाएं इंदौर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 90 मील की दूरी पर, बाधिनी नामक छोटी सी नदी के बायें तट पर और विन्ध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित हैं। बाघ-कुक्षी मार्ग से थोड़ा हटकर बाघ की गुफ़ाएं बाघ ग्राम से पाँच मील दूर हैं। यह स्थल उस विशाल प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जो उत्तर से अजन्ता होकर सुदूर दक्षिण तक जाता है।

ईसापूर्व तीसरी शताब्दी और ईस्वी सन् की 7वीं शताब्दी के मध्य, जब भारत के पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म अपनी ख्याति की पराकाष्ठा पर था। इसी समय चीन के बौद्ध धर्म के महान् विद्वान् यात्री हुएनसांग, फ़ाह्यान और सुआनताई मध्य और पश्चिमी भारत आये थे.इसमें कुल 9 गुफ़ाएँ हैं, जिनमें से 1,7,8 और 9वीं गुफा नष्टप्राय है तथा गुफा संख्या 2 ‘पाण्डव गुफ़ा’ के नाम से प्रचलित है जबकि तीसरी गुफा ‘हाथीखाना’ और चौथी रंगमहल के नाम से जानी जाती है। इन गुफा का निर्माण सम्भवतः 5वी-6वीं शताब्दी ई. में हुआ होगा।

लगभग 1600 वर्ष पूर्व बाघ की गुफ़ाएं भगवान बुद्ध की दिव्यवार्ता प्रतिपादित करने हेतु निर्मित एवं चित्रित की गयी थीं। धार्मिक सौरभ, सौंदर्यानुभूति का स्पन्दन, सरिता की सुगम स्थिति और उसके लयपूर्ण प्रवाह से प्रभावित भिक्षुओं का जीवन अत्यन्त सहजता से एक आदर्श ढांचे में ढलता रहा तथा निष्ठावान उपासकों को अभूतपूर्व परिपक्वता प्राप्त होती रही। विहारों को नैतिक उन्नति एवं निर्देशन के उद्देश्य की पूर्ति करने वाले भित्ति-चित्र पर्याप्त समय से सुसज्जित करते रहे हैं।

विहारों में चित्र अलंकरण का वर्णन मूल सरवास्तिवादिन सम्प्रदाय के विनय में पाया जाता है। बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि चित्रकला का पूर्ण प्रचार बुद्ध जीवनकाल में ही हो चुका था। भित्तिचित्रों में फूल, पक्षी व पशुओं का चित्रण महत्त्वपूर्ण है। कमल पुष्प मूर्ति तथा चित्रकला दोनों में ही लोकप्रिय है, जो पवित्रता के अतिरिक्त यह शुद्धता व सद्गुंण का प्रतीक है। बाघ की गुफ़ाओं में बुद्ध, बोघिसत्व चित्रों के अतिरिक्त राजदरबार, संगीत दृश्य, पुष्पमाला दृश्य आदि का चित्रण महत्त्वपूर्ण है।

बाघ की कला में अजन्ता के समान केवल धार्मिक विषय ही नहीं हैं, यहाँ पर मानवोचित भावों के चित्रण में वेगपूर्ण प्रवाह भी है। यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य ने चित्रकला में जो योगदान दिया है, यहाँ पर चित्रित विराट दृश्य उसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। नदी, पहाड़, जंगल आदि के असीमित भू-दृश्य बड़े मनोहर हैं। चाहें लता वल्लरी हो अथवा घोड़े व हाथी, राजा हो या संन्यासी, नृत्य-संगीत हो या युद्ध क्षेत्र, करुण रस हो या श्रृंगार सभी में कलाकार की सहज कुशलता का परिचय मिलता है।

प्रागैतिहासिक काल में ही बाघ एवं अजंता की चित्रकारी की परम्परा प्रारंभ हो चुकी थी। यह परम्परा उस मानवीय अनुभूति को दर्शाती है, जो जीवन व धर्म पर केन्द्रित थी। भोपाल की श्यामला पहाड़ी पर बने नवनिर्मित राज्य पुरातत्त्व संग्रहालय की बाघ पेंटिग्स वीथी और गूजरी महल संग्रहालय ग्वालियर में मध्य प्रदेश के धार ज़िले की सुप्रसिद्ध बाघ गुफ़ाओं के कई महत्त्वपूर्ण भित्तिचित्रों की अनुकृतियाँ है जो दर्शको और कलाप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

बाघ गुफ़ा के चित्र 1907-1908 से पुन: संसार के सामने आए हैं। विंध्य पर्वत का यह अंश मालवा क्षेत्र में धार ज़िले की कुक्षी तहसील के अंतर्गत है। नर्मदा की एक छोटी सी करद नदी जिसका नाम बाघनी या बाघ है उसी के कारण यहाँ की गुफ़ाओं का नाम और पास के गाँव का नाम बाघ पड़ा है। यहाँ कुल 9 गुफ़ाएं हैं। ये 9 गुफ़ाएं आपस में मिली हुई नहीं है। इनमें चौथी एवं पाँचवी गुफ़ाओं से मिला 65 मीटर लम्बा बरामदा (कॉरीडोर) है। जिसकी छत 20 भारी खम्बों पर छत आवृत थी!!

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