आज करते है जेएनयू के डिजाइन पर चर्चा!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यह बात समझ से परे है कि जब किसी यूनिवर्सिटी की चर्चा होती है तो बात उसके नामवर अध्यापकों और सफल विद्यार्थियों से आगे क्यों नहीं बढ़ती? यही जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के साथ भी हुआ। किसी ने कभी सी.के.कुकरेजा को जानने की कोशिश ही नहीं की। उन्होंने ही इसका डिजाइन तैयार किया था। कितने लोगों ने कुकरेजा साहब का नाम सुना है? जेएनयू कैंपस में कदम रखते ही आपको समझ आ जाएगा कि यह कोई सामान्य शिक्षण संस्थान नहीं है।

जेएनयू में चारों तरफ हरियाली और पहाड़ियों के बीच-बीच में क्लास रूम, लाइब्रेयरी, हॉस्टल, प्रशासनिक ब्लॉक, फैकल्टी के फ्लैट, जिम आदि की इमारतें हैं। ये सभी कमोबेश मिलती-जुलती हैं। इनमें ईंटों को सीमेंट के लेप से छिपाया नहीं गया है।

जेएनयू के लिये भूमि मुनिरका तथा वसंत गांवों की अधिग्रहित की गई थी। पर यहाँ पर खेती नहीं होती थी। इधर खेती करनी कठिन भी थी क्योंकि इन इलाकों में पानी का संकट शुरू से ही रहा है। यह संकट आज भी बरकरार है। चूँकि ये सारा क्षेत्र पहाड़ी है, इसलिये इधर भूजल भी बहुत नीचे ही उपलब्ध हो पाता है। अतः यहाँ की भूमि खेती के लिये कभी भी मुफीद नहीं थी।

बहरहाल जेएनयू कैंपस के डिजाइन की जिम्मेदारी मिली प्रख्यात आर्किटेक्ट सी.पी.कुकरेजा को। इससे पहले सरकार ने देश-दुनिया के प्रमुख आर्किटेक्ट बिरादरी को आमंत्रित किया था कि वे जेएनयू के प्रोजेक्ट को ले सकते हैं। बहुत से दिग्गजों ने जेएनयू का काम लेने के लिये दावा पेश किया। सरकार ने उनके पहले किये गए कामों को देखा था। चूँकि जेएनयू के रूप में देश की एक श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी के कैंपस का निर्माण होना था, इसलिये चोटी के आर्किटेक्ट इस प्रोजेक्ट को लेने के प्रति उत्साह दिखा रहे थे। जाहिर है, सबकी चाहत थी कि जेएनयू का काम मिलने से उनके प्रोफाइल में चार चांद लग जाएंगे।

खैर, जेएनयू के डिजाइन तैयार करने की जिम्मेदारी सी.के.कुकरेजा को मिली। उनके सामने एक चुनौती यह भी थी कि उन्हें कैंपस चट्टानों से भरी पड़ी पहाड़ियों वाले क्षेत्र में खड़ा करना था। इसके अलावा आज जिधर आप जेएनयू को देख रहे हैं, वह पूरी तरह से जंगली इलाका था। जाहिर है, इस तरह के जगह पर अलग-अलग तरह की इमारतों के डिजाइन बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं था। अलग-अलग इमारतों में क्लास रूम, हॉस्टल, जिम आदि शामिल थे। लेकिन, इस कठिन चुनौती का अपने कड़े परिश्रम और अनुभव से कुकरेजा जी ने सामना कर लिया।

उन्होंने लगभग एक हजार एकड़ में फैले जेएनयू कैंपस का डिजाइन तैयार करते वक्त यहाँ पर पहले से मौजूद पेड़-पौधों और चट्टानों को लगभग ना के बराबर नुकसान पहुँचाया। उन्हें काटा नहीं। जेएनयू कैंपस में छह अकादमिक ब्लॉक, दस मंजिला लाइब्रेयरी, कांफ्रेंस, लेक्चर और थिएटर कॉम्पलेक्स, प्रशासनिक केन्द्र, छात्रावास और 150 से ज्यादा फैक्ल्टी के फ्लैट हैं। उन्होंने इन सबके डिजाइन बनाए।

आप सन 1969 में स्थापित जेएनयू कैंपस की लगभग सभी इमारतों में एक तरह की समानता पाएँगे। इधर ईंटों पर सीमेंट का लेप नहीं है। सबका रंग भी मिलता-जुलता है। सब इमारतों में एक तरह की गरिमा है। इस कैंपस के निर्माण में बहुत अधिक खर्चा नहीं किया गया था। दरअसल जब जेएनयू कैंपस का निर्माण चल रहा था, तब भारत आज के भारत से बहुत अलग था। तब देश निर्धन था, आज की तरह आर्थिक महाशक्ति नहीं था। सरकारों के पास भी संसाधनों का अभाव रहता था।

जेएनयू को देश के पहले ग्रीन कैंपस के रूप में भी देखा जा सकता है। मतलब जब ग्रीन आर्किटेक्चर या ग्रीन डिजाइन का विचार चर्चित नहीं हुआ था, तब जेएनयू ग्रीन कैंपस के रूप में स्थापित हुआ। क्या होती है ग्रीन बिल्डिंग? दरअसल ग्रीन बिल्डिंग वह बिल्डिंग होती जिसके निर्माण करने में ज्यादातर किसी पुरानी बिल्डिंग वेस्ट मटेरियल का उपयोग होता है। ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण इस प्रकार से होता है कि बिल्डिंग को हवा, पानी, प्रकाश वगैरह मिलता रहे। सामान्य बिल्डिंग के निर्माण में ज्यादातर सीमेंटयुक्त पदार्थों  का उपयोग होता है जो कि ग्रीन हाउस गैस उत्पन्न करने के लिये जिम्मेदार होता है।

खैर, कुकरेजा जी ने कक्षाओं से लेकर प्रशासनिक ब्लॉक वगैरह में सूर्य की रोशनी के आने के लिये स्पेस निकाला। खिड़कियों के लिये ठीक-ठीक स्पेस दिया। इसके पीछे विचार ये था कि सामान्य कमरों से लेकर कक्षाओं में बाहर से हवा और रोशनी आती रहे। उस जमाने में बिजली संकट दिल्ली में भी बना रहता था। जेएनयू में हजारों छात्र-छात्राएँ कैंपस में ही स्थित बह्मपुत्र, गंगा, पेरियार, गोदावरी, झेलम, नर्मदा, कावेरी वगैरह छात्रावासों में रहकर अपना अधययन करते हैं।

कुकरेजा जी ने इन छात्रावासों के कमरों को बहुत छोटा नहीं रखा। मतलब ये कि विद्यार्थियों को किसी तरह की घुटन महसूस ना हो अपने कमरों में। कायदे से एक कमरे में दो विद्यार्थी रह सकते हैं। इसी तरह की सोच के साथ उन्होंने कैंपस की अन्य इमारतों के भी डिजाइन तैयार किये।

आपको वास्तव में जेएनयू जैसा कैंपस का डिजाइन शायद अन्य कहीं और मिले। देखिए कि जो आर्किटेक्ट लगातार कुछ नया या हटकर काम करने के बारे में नहीं सोचता उसे इस पेशे में आना ही नहीं चाहिए। अपने लंबे करियर में सीपी कुकरेजा ने आवासीय, कमर्शियल इमारतों के साथ होटलों, अस्पतालों का वगैरह के भी डिजाइन तैयार किये। दिल्ली के अपोलो अस्पताल, ग्रेटर नोएडा की शिव नाडार यूनिवर्सिटी, कनॉट प्लेस की शायद सबसे ऊंची अंबादीप बिल्डिंग, सिक्किम विधान सभा समेत दर्जनों इमारतों के डिजाइन तैयार किये। पर उन्हें जेएनयू के डिजाइन ने ही महान वास्तुकारों की पंगत में जगह दिला दी थी।

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