नील नायक पंडित राजकुमार शुक्ल को नमन!
पंडित राजकुमार शुक्ल की जयंती पर विशेष
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नील नायक यानी पंडित राजकुमार शुक्ल, एक ऐसा नाम जिन्होंने भारतवर्ष को सत्याग्रह की प्रयोगभूमि दी।एक ऐसा नाम,जिन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी जैसे कम ख्यात नाम को चम्पारन में निलहों के खिलाफ सत्याग्रह का महानायकत्व प्रदान कर स्वतंत्रता आंदोलन में एक नये युग का सूत्रपात किया। जिसके बारे में स्वयं महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में लिखा है,” यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं बल्कि अक्षरशः सत्य है कि मैंने वहाँ (चंपारन में) ईश्वर का, अहिंसा का और सत्य का साक्षात्कार किया।जब मैं इस साक्षात्कार के अपने अधिकार की जांँच करता हूँ, तो मुझे लोगों के प्रति अपने प्रेम के सिवा और कुछ भी नहीं मिलता। इस प्रेम का अर्थ है प्रेम अथवा अहिंसा के प्रति मेरी अविचल श्रद्धा।”
नील नायक यानी एक ऐसा नायक जो अति साधारण है, ग्रामीण परिवेश में निवास करता है,जो अच्छी हिंदी या अँगरेजी नहीं बोल सकता है, जो गाँव-गँवई का संस्कार लिए चलता है, जिसके मन में अँगरेजी दासता के खिलाफ आजादी का दृढ़ संकल्प है, जो हर कदम इस दृष्टि से उठाता है कि चम्पारन को निलही कोठी से मुक्ति कैसे मिले,जो अपनी जमीन बेचकर संघर्ष का पोषण करता है,
जो लखनऊ के अखिल भारतीय काँगरेस अधिवेशन में टूटी-फूटी भाषा में अपनी बात रखकर प्रतिनिधियों को भावविह्वल कर देता है,जो मोहनदास करमचंद गांधी को चम्पारन आकर निलहों के अत्याचार की जाँच के लिए विवश कर देता है, जिसमें एक महानायकत्व होते हुए भी उसे अपने जीवन पर हावी नहीं होने देता,जो अपने बदले दूसरों को मंच प्रदान करता है और स्वयं नेपथ्य में रहकर सारी योजना- संरचना करता है,जिसकी मृत्यु पर बेलवा कोठी का मैनेजर ए.सी.एम्मन(जिससे शुक्ल जी जिंदगी भर लड़ते रहे)न केवल आँसू बहाता है,बल्कि तीन सौ रुपये का आर्थिक मदद भी भेजता है, स्वयं श्राद्ध में उपस्थित होकर श्रद्धांजलि देता है तथा रोते हुए कहता है,”वह चम्पारन का अकेला मर्द था।अब मैं किसके साथ लड़ूँगा।”
नील नायक यानी एक ऐसा नाम,जो चम्पारन सत्याग्रह का नायक होते हुए भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गुमनाम रहा,जो अपनी भीष्म प्रतिज्ञा के बल पर रैय्यतों के लिए अत्यंत कष्टदायक ‘तीनकठिया प्रथा’ के उन्मूलन का साधन बना,जो अपने व्यक्तिगत जीवन के कष्टों को सार्वजनिक जीवन पर हावी नहीं होने दिया,जिसका एकमात्र ध्येय था अँगरेज निलहों के आर्थिक व शारीरिक शोषण से आम जनता की मुक्ति और जिसने इस लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त भी किया।
सच कहा जाय तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वह नायक जिस स्थान के दावेदार है, उसे वह कभी मिला ही नहीं;बल्कि एक तरह से तो उसे भूला ही दिया गया।राय प्रभाकर प्रसाद के शब्दों में,” यदि राजकुमार शुक्ल न होते तो गांधी चंपारन नहीं आ पाते, गांधी शायद महात्मा गांधी नहीं कहला पाते, स्वतंत्रता संग्राम को गांधी का नेतृत्व नहीं मिल पाता और गांधी देशवासियों के राष्ट्रपिता नहीं कहला पाते।”
नील नायक यानी एक ऐसा नायक, जिसका जीवन संघर्षों से भरा है। एक बच्ची को जन्म देने के पश्चात् पहली पत्नी शीघ्र स्वर्गवासी हो जाती है। फिर उन्हें परिवार चलाने के लिए विवश होकर दूसरी शादी करनी पड़ती है। बड़ी बच्ची की शादी के कुछ ही वर्षों बाद उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है।फिर उसी दामाद से दूसरी बेटी की शादी भी करनी पड़ती है। बेलवा कोठी के मैनेजर ए.सी.एम्मन के विरोध के कारण कोड़ा की मार खानी पड़ती है। मुरली भरहवा का उनका घर लूट लिया जाता है।
फसलें बर्बाद कर दी जाती हैं। परिवार को सुरक्षित रखने के लिए जिला मुख्यालय में उन्हें किराए का मकान लेना पड़ता है।जमीन बेचकर घर का खर्च चलाता है। दर-दर भटकने के लिए विवश कर दिया जाता है। फिर भी ऐसा नायकत्व,जो न झुकता हैं,न टूटता हैं; बल्कि अपने घोषित लक्ष्य को प्राप्त करने से किंचित मात्र भी विचलित नहीं होता।
नील नायक यानी एक ऐसा नायक,जिन्हें बर्बाद करने के लिए कोठी का मैनेजर सभी हदें पार कर देता है।उन्हें आर्थिक रूप से खस्ताहाल कर देता है।उनके बाड़े की मवेशियाँ बिक जाती हैं,जमीन बिक जाती है,हुक्का-पानी बंद करने की भी कोशिश होती है; फिर भी जीवट ऐसा कि लेशमात्र भी चिन्ता नहीं।अच्छे घर-परिवार का ब्राह्मण कुल में जन्म लिया वह नायक जब ठान लेता है, तो पत्थर पर घास उगा देता है।अपनी आर्थिक बर्बादी को ही हथियार बनाकर निलहों के खिलाफ सफल आंदोलन चलाता है।
वह जेल भले जाता है,पर जुर्माना भरकर दासता को स्वीकृति नहीं देता।साठ बीघा से ज्यादा खेती और दो सौ से अधिक मवेशियों का स्वामी होने के साथ-साथ बेतिया राजदरबार की नौकरी रहने के बावजूद जब आजादी का जुनून सवार होता है, तो नायक सबकुछ छोड़-छाड़कर आजादी का दिवाना बन जाता है।चम्पारन एग्रेगेरियन इन्क्वायरी कमेटी के समझ अपने दिये बयान में अपनी बर्बादी का उल्लेख करते हुए स्वयं शुक्ल जी कहते हैं,” नील कोठियों के जुल्म के कारण मैं तबाह हो गया। 60 भैंस और 300 गायों की जगह अब मेरे पास सिर्फ 8 गाय, 3 भैंस और 6 बैल रह गए हैं।”
नील नायक यानी एक ऐसा नायक जो परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन परंपराओं और रूढ़ियों में अपने आप को बँधने नहीं देता; बल्कि स्वयं नया मार्ग बनाता चलता है।जिसके सभी जाति-पंथों में मित्र हैं।जो व्यक्तिगत रूप से शुचिता का पालन करते हुए भी छुआछूत-भेदभाव का विरोधी है। आज से करीब नब्बे वर्ष पहले जब अग्नि दाह(अन्त्येष्टि) पर एकमात्र बेटों का हक होता था, उस नायक ने अपनी पत्नी को पहले ही सचेत कर दिया था कि मेरा अंतिम संस्कार मेरी छोटी बेटी देवपति ही करेगी।ऐसे नायकों को उनके ऐसे ही क्रांतिकारी निर्णयों के लिए याद किया जाता है।
कृतज्ञतापूर्वक सादर नमन.
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