समझें हिंदी से बढ़ती संभावनाओं को

समझें हिंदी से बढ़ती संभावनाओं को

विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में प्रमुख स्थान है हिंदी का।

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अतीत में कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा भारत आज स्वाधीनता के अमृत काल में प्रवेश कर चुका है। अमृत काल में बढ़ते कदम एक तरह से पुन: उस स्वर्णिम युग को पा लेने की कोशिश हैं जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘आत्मनिर्भर भारत’ या ‘श्रेष्ठ भारत’ आदि अभिधानों से उद्घोषित करते हैं।

इस संदर्भ में एक हिंदीप्रेमी और शिक्षार्थी होने के नाते मेरे मन में एक प्रश्न बार-बार उठता है कि इस आत्मनिर्भर भारत अथवा न्यू इंडिया के स्वप्न को साकार करने में हिंदी की क्या भूमिका होगी? हिंदी जगत के अकादमिक विमर्शों और बहसों को देखें तो दबी जुबान से ही सही, एक बड़े तबके में इस संदर्भ में निराशा का भाव झलकता है। हालांकि अनेक हिंदीप्रेमियों में कहीं न कहीं आशा की एक क्षीण किरण भी दिखाई पड़ती है। इसलिए हिंदी के उत्थान के लिए उनके समर्पण, उत्साह और प्रयासों में कोई कमी नहीं रहती।

तीन चरणों में विकास

संसार की भाषाओं का इतिहास देखें तो दरअसल किसी भी भाषा की उद्विकासीय यात्रा के कई चरण होते हैं। बाल्यकाल, युवावस्था और फिर प्रौढ़ावस्था, जब वह अपने सारे वैभव के साथ प्रकट होती है और समाज की आर्थिक प्रगति के साथ भी कदमताल करती हुई दिखाई पड़ती है। अपने बाल्यकाल में भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से भाषा अपेक्षाकृत एक छोटे से भूभाग तक सीमित होती है और उसका प्रयोग भी बोलचाल या रोजमर्रा की जिंदगी तक ही सीमित होता है।

पर कुछ भाषाएं धीरे-धीरे अगले चरण युवावस्था में प्रवेश कर साहित्य, आरंभिक शिक्षा की भाषा और साथ ही कुछ मामलों में कामकाज की भाषा बन जाती है। भाषायी उद्विकास का अंतिम चरण है उसकी उच्च शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ रोजगार, बाजार और व्यापार की भाषा, कार्यालयों एवं न्यायालयों की भाषा बनना। इस संदर्भ में पड़ताल करें तो हिंदी ने उद्विकासीय यात्रा के अंतिम चरण की ओर मजबूती से कदम बढ़ा दिए हैं जो प्रकारांतर से आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार करने की दिशा में ठोस कदम है।

संभावनाओं के खुले द्वार

उच्च शिक्षा एक तरह से सभी रोजगारों की जननी है। उच्च शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान मनुष्य के ज्ञान क्षितिज का विस्तार कर उसे नए-नए मार्गों और क्षेत्रों की ओर अग्रसर करने में सहायक होते हैं। यह उच्च शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान संबंधी क्रियाकलाप अगर स्वभाषा में हो तो प्रगति की गति और भी बढ़ जाती है क्योंकि स्वभाषा में संज्ञान और संप्रेषण न केवल शीघ्र और सहज होता है बल्कि मौलिक चिंतन और अनुसंधान भी इसमें बेहतर व ज्यादा हो सकता है।

हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 जिस तरह से सजग है, उसमें हिंदी के लिए संभावनाओं के नए द्वार खुले हैं। विश्वविद्यालयों के परंपरागत विषयों के साथ-साथ इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई भी भारतीय भाषाओं में शुरू हो चुकी है। ऐसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रामाणिक सामग्री के लिए एनईपी में ‘इंडियन इंस्टिट्यूट आफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन’ की स्थापना का प्रावधान है। शिक्षा मंत्रालय ‘स्वयं’ शिक्षा पोर्टल के माध्यम से हिंदी आदि भारतीय भाषाओं में उच्च कोटि के ज्ञान-विज्ञान सामग्री उपलब्ध करने के लिए प्रयासरत है। उदाहरण के लिए ‘स्वयं’ के अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम की प्रामाणिक सामग्री आज हिंदी सहित 11 भारतीय में अनूदित कर उपलब्ध कराई जा रही है।

विदेश तक बढ़ी मांग

हिंदी के राष्ट्रीय फलक पर विस्तार से हिंदीतर राज्यों में भी इसकी मांग बढ़ रही है। जिन राज्यों में राजनीतिक कारणों से हिंदी का गाहे-बगाहे विरोध होता है, वहां के प्राइवेट स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप हिंदी पढ़ने वालों की अच्छी-खासी संख्या है। आर्थिक शक्ति के रूप में भारत के उभरने से विदेश में भी हिंदी की मांग बढ़ी है, जो रोजगार में सहायक हो रही है। पूरी दुनिया में लगभग 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है।

अब तो आनलाइर्न ंहदी ट्यूशन की वेबसाइट चल पड़ी हैं। शिक्षा के अतिरिक्त रोजगार और बाजार-व्यापार की भाषा के रूप में हिंदी तेजी से कदम जमा रही है। इसका एक अच्छा प्रमाण है कि आज दक्षिणी राज्यों के हवाईअड्डों तक में इलेक्ट्रानिक सूचना पट्ट पर अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी सूचनाएं दी जा रही हैं। अनेक ब्रांड भारतीय उत्पादों पर ‘मेड इन इंडिया’ के साथ-साथ ‘भारत में निर्मित’ लिखा जाता है। आज शेयर बाजार जैसे आधुनिक आर्थिक गतिविधियों में हिंदी अपनी पैठ बना रही है।

सूचना का माध्यम बर्नी ंहदी

प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक, मीडिया के क्षेत्र में भी हिंदी तेजी से काबिज हो रही है। भारत में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले प्रथम चार समाचार पत्र हिंदी के हैं। 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्वाधिक संख्या में छपने वाले समाचारपत्र भी हिंदी में ही हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, देश में आज दो तिहाई से अधिक टीवी चैनल भी हिंदी के हैं। साथ ही देश में सबसे अधिक देखे जाने वाले चैनलों में भी हिंदी चैनल सबसे आगे हैं।

कहने की जरूरत नहीं कि हिंदी पत्रकारिता में रोजगार की एक बड़ी संभावना है। इसी तरह आज विज्ञापन के युग में समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन से लेकर इंटरनेट मीडिया तक के विज्ञापनों में हिंदी ने अपनी खासी पैठ बनाई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, टीवी के 90 प्रतिशत विज्ञापनों की भाषा हिंदी है। इसी तरह टेलीविजन के सीरियल में तो हिंदी का अच्छा-खासा वर्चस्व है। इनके लिए भी हिंदी के पटकथा लेखकों की मांग बढ़ी है। इनके अतिरिक्त आज हिंदी में सैकड़ों एप्स और इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म हैं। इनके लिए भी हिंदी विशेषज्ञों की खूब जरूरत पड़ रही है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बना गढ़

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की बढ़ती आक्रामकता और कोविड-19 के दौरान चीन के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार से विकसित देशों का चीन से भरोसा उठ रहा है। तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन से बोरिया-बिस्तर समेटना चाहती हैं। तो वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में ‘इज आफ डूइंग बिजनेस’ के कारण भारत उनके आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गया है, यानी भारत में बड़ी संख्या में इन कंपनियों के प्रवेश की संभावना बढ़ चुकी है।

भारत में अपने कार्य-व्यापार के लिए इन कंपनियों को हिंदी व अन्य भाषाओं में लिखित सामग्री का निर्माण करना होगा। इसके लिए बड़ी संख्या में हिंदी लेखकों और अनुवादकों की आवश्यकता होगी। अमेरिका में 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 2014 तक अधिकांश ट्वीट अंग्रेजी में होते थे, लेकिन धीरे-धीरे अंग्रेजी की तुलना में भारत र्में ंहदी में किए जाने वाले ट्वीट अधिक पसंद और साझा किए जा रहे हैं। स्पष्ट है कि हिंदी यहां भी रोजगार सृजन में योगदान करने की स्थिति में आ रही है।

उपरोक्त चर्चा का अर्थ यह नहीं कि हिंदी ने अपनी आर्थिक मंजिलों को छू लिया है। अभी कई पड़ाव व चुनौतियां हैं, जिनसे पार पाना है। इसके अलावा उच्च न्यायालयों और कारपोरेट जगत में हिंदी को उचित स्थान मिलना अभी शेष है, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि हिंदी का समय आ चुका है। आर्थिक रूप से जिस आत्मनिर्भर भारत की कल्पना कर रहे हैं उसे साकार करने में हिंदी की भी महती भूमिका होगी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!