विश्व के सबसे बड़ा केसरिया स्तूप स्तूप का भ्रमण  

विश्व के सबसे बड़ा केसरिया स्तूप स्तूप का भ्रमण
इसके भूगर्भ में बड़ी सभ्यता मिलने की संभावना ।

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

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शोधार्थी डा कृष्ण कुमार सिंह रविवार को केसरिया स्तूप के भ्रमण करने एक टीम के साथ गए थे ।
जहां केसरिया स्तूप के इतिहास के जानकार व स्तूप के केयर टेकर शैलेन्द्र यादव को प्राचीन कुसीनारा का एक अध्ययन पुस्तक भेंट किया ।
डा सिंह ने बताया कि केसरिया का प्राचीन नाम केसपुत था तथा वर्तमान में देउरा ( देवताओं का स्थल )है ।
पहले इसे राजा बेन का गढ़ कहा जाता था ।जो सतयुग के राजा अंग के पुत्र थे ।राजा बेन की माता सुनिथा थी ।
राजा बेन के पुत्र पृथु इनके पुत्र उत्तानपाद जो महान तपस्वी बालक ध्रुव के पिता थे ।

 

उन्होंने बताया कि बौद्ध साहित्य के जातक में पृथु को ही मक्खा देव कहा गया है जो पूर्वजन्म के बुद्ध थे ।यह भी कहा जाता है कि योगी आलारकलाम जो बुद्ध के प्रथम गुरु थे जिन्होंने उन्हें केसरिया वस्त्र धारण कराया उनकी आश्रम यही थी तथा इस आश्रम में बुद्ध 19 महीने योग साधना की थी ।वर्तमान में आलार कलाम का आश्रम बखरा होकर वैशाली जाने के क्रम में मुख्य मार्ग से 2 किलोमीटर अंदर – उत्तर की ओर है और ग्राम का नाम लक्ष्मी पुर आरार ।

यहाँ के ग्रामीण इतिहास के जानकार बताते है कि यह स्थल कोलिये गणराज्य की सीमा था जिसको गंडक (अनोमा) नदी विभाजित करती थी ।इस स्थल से दक्षिण व पश्चिम मल्ल गणराज्य था ।

यह भी कहा जाता है कि भगवान बुद्ध वैशाली से कुसीनारा जाने के क्रम में इसी स्थल पर लिच्छिवियों को अपना भिक्षा पात्र दिए है ।

वैशाली के लिच्छवियों की जज्बे को सलाम करना चाहिए, जिन्होंने गौतमबुद्ध के भिच्छा- पात्र को सुरक्षित रखने के लिए अबतक प्राप्त बौद्ध स्तूपों मे सबसे बडा (परिधि लगभग 1400 मीटर) और ऊंचाई (लगभग 150फीट) केसरिया स्तूप ,इस स्तूप का लगभग * 35 से 40 फीट 1934 के भूकम्प से टूट गया ,वही ईंट का टुकड़ा एवं मिट्टी इसको चारो तरफ से ढंक लिया ।वर्तमान में इसकी ऊँचाई 107 फीट है ।

कहते है कि भगवान बुद्ध निर्वाण के लिए वैशाली से कुसीनारा के लिए निकल चुके थे। सूचना पाकर लिच्छवि-गण बडे समूहों मे बुद्ध को घेर लिए। लिच्छवि-गण उन्हें वैशाली छोड़ कर कुशीनारा जाने देना नही चाहते थे। काफी मान-मनौव्वल और अंततः निशानी के तौर पर बुद्ध अपनी भिच्छा-पात्र देकर कुशीनारा जाने के लिए लिच्छवि-गणों को राजी कर सके. उसी भिच्छा-पात्र के सम्मान मे लिच्छवियों ने केसरिया स्तूप बनाया।। * पर डब्लू होय लिखते है कि बुद्ध के वैशाली से कुसी नारा के अंतिम यात्रा में लिच्छवीगणों को बुद्ध ने मांझी में भिक्षा पात्र दिए थे क्योंकि मांझी का पूर्व में नाम मांग या मांझा था जिसका अर्थ होता है मिडिल आईने अकबरी में इसे मंगेहि कहा गया है ।शायद यह लिच्छिवियों व मल्लो का मध्य या सीमा रेखा रहा होगा ।

 

केसरिया भगवान बुद्ध का पंसदीदा जगह थी। केसरिया से वे महत्वपूर्ण देसना कर चुके थे।। * अद्भुत विरासत रही होगी वैशाली के लिच्छवि-गणों की। कहते है कि उनके रथों से रथ टकराने की हिम्मत पाटलीपुत्र के राजाओं मे भी नहीं होती थी। जीतने के बाद भी अजातशत्रु, नंदवंश और मौर्य वंश के राजा लिच्छवि-गणों को झुका नही सके। लिच्छवी श्रद्धानवत होकर झुके तो केवल गौतमबुद्ध और महावीर के सामने।

 

* कंपनी राज के सर्वेयर कर्नल मैकेंज़ी ने 1814 मे और Archeological survey of India के पहले अधिकारी रहे सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1861-62 मे केसरिया स्तूप साईट का पता लगाया था, लेकिन खुदाई नही करा सके। Archeological survey of india Bihar-Orissa के निदेशक के.के.मुहम्मद साहब के नेतृत्व मे 1998 मे केसरिया स्तूप की खुदाई हुई।। * चीनी यात्री फाहियान (05 वी शदी) और ह्वेनसांग (07वी सदी) ने केसरिया स्तूप के संबंध मे संक्षिप्त विवरण छोड गए है। *

गुप्तकाल के ईंट इस स्तूप में अधिक लगे है ।इसमें लगभग 15 करोड़ ईंट लगे है । गुप्तकाल के कुमार गुप्त का गढ़ यहाँ है जो कोहड़ गढ़ के नाम से जाना जाता है ।इस स्तूप से 2 किलोमीटर पूरब एक तलाब है जो गंगया के नाम से जाना जाता है इसी तलाब में राजा बेन की पत्नी कमलावती कमल के पत्ता पर बैठकर स्नान करती थी ।इस स्तूप के 4 से 5 किलोमीटर के रेंज के अंदर निश्चित ही कोई बड़ी राज्य व सभ्यता रही होगी । आज भी स्तूप से बुद्धा मोनास्ट्री तक अंतर प्राचीन सड़क दृष्टिगोचर होता है ।

स्तूप की खुदाई में बुद्ध की भू-स्पर्श मुद्रा मे खंडित मूर्ति मिली है। स्थानीय लोग केसरिया स्तूप को देवाला यानि भगवान का घर कहते है। बिहार मे 1934 मे आए विनाशकारी भूकम्प ने केसरिया स्तूप को काफी नुकसान पहुंचाया। * पर्यटन के आकषर्ण को बढ़ाने के लिए सरकार अब पहल आरम्भ कर दी है ।

आज यूनेस्को की टीम भी आई थी जो इसके विकास में उत्खनन कराने की जायजा ली ।इसके
. आसपास बहुत सारी ऐतिहासिक धरोहरें विखरी पडी है, जो उस युग के जीवन और परम्पराओं पर प्रकाश डालेंगे… इस मौके पर समाजसेवी नीतीश कुमार सिंह ,हरिकांत सिंह ,गुड्डू कुमार ,शानू सिंह ,सूरज कुमार सिंह आदि थे ।

 

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