Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
हमारे पास 2021 की दवा थी, पर हम उसे नजरअंदाज कर दिये,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

हमारे पास 2021 की दवा थी, पर हम उसे नजरअंदाज कर दिये,कैसे?

हमारे पास 2021 की दवा थी, पर हम उसे नजरअंदाज कर दिये,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हाल ही मैं यात्रा के दौरान 10 महीने बाद मेरी मुलाकात अपेक्षाकृत सफल बिजनेसमैन से हुई। मैंने पूछा, ‘कैसे हैं सर?’ रूखी मुस्कान के साथ उनके जवाब ने मुझे चौंकाया। ‘पहली बात, मैं जिंदा हूं, दूसरी, मैं अब भी संपन्न हूं और 2020 के बाद यह मेरी पहली यात्रा है।’ मैंने बस यह कहा, ‘चूंकि अब आप सक्रिय हो गए हैं, तो देखें चीजें कैसे बदलेंगी।’ उन्होंने कहा, ‘उम्मीद है ऐसा हो।’

शोधकर्ता कहते हैं कि अगर आप महामारी के कारण भ्रमित, चौकन्ने, अनमने, आनंद सीमित करने वाले, व्याकुल, पस्त मूड वाले हैं और लगता है कि रचनात्मक विचार कम हो रहे हैं, तो इसका संबंध शरीर की निष्क्रियता से हो सकता है। वे कहते हैं कि शरीर की सक्रियता का दिमाग की गतिविधियों और सोच पर सीधा असर होता है। ये रहे आधुनिक समस्याओं को सुलझाने वाले प्राचीन आइडिया।

तनाव घटाने के लिए कोर (कमर, पेट की मांसपेशियां) की मजबूती और अच्छा पॉश्चर: मां और शिक्षकों ने कितना बार हमसे ‘सीधे खड़े रहने’ कहा होगा। अब विज्ञान कहता है कि वे सही थे। वर्षों के मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि सीधे खड़े रहने का संबंध अच्छा महसूस करने से है। झुककर खड़े होने से दिमाग को संकेत जाता है कि हम थके-हारे हैं।

समस्या सुलझाने के लिए दौड़ना: जब पढ़ने में मेरा मन नहीं लगता था तो मां कहती थी, ‘दौड़कर कुछ (सामान) लेकर आओ’। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि दौड़ने से मूड अच्छा होता है और दुनिया देखने का नजरिया बदलता है। पैरों पर, बाइक, कायक या रोलर स्केट्स पर आगे बढ़ने से हम भविष्य देखने प्रेरित होते हैं, जो कोरोना के बाद और भी महत्वपूर्ण हो गया है।

अकेलापन दूर करने के लिए डांस: कभी सोचा है कि हर मां बच्ची को डांस क्लास क्यों भेजना चाहता थी? विज्ञान अब कहता है कि ताल के अनुसरण से बेहतर महसूस होता है क्योंकि दिमाग अनुमान लगाकर काम करता है कि अब क्या होने वाला है, चूंकि इससे आनंद की भावना संबंधी डोपामाइन रसायन पर असर होता है। साथ ही मजबूत संबंध बनाने की क्षमता बढ़ती है, जो हर लड़की को मातृत्व की उम्र में जरूरी होती है।
जलन-सूजन कम करने के लिए स्ट्रेचिंग : आपको बोरियत भरी पीटी क्लास याद हैं जिनमें ‘सावधान-‌विश्राम’ कहते थे? अब विज्ञान कहता है कि तनाव दिमाग पर असर डालकर इंफ्लेमेशन (जलन-सूजन) बढ़ाता है। लेकिन योग करने वालों में कम इंफ्लेमेशन दिखता हैै। सुरक्षित याददाश्त के लिए वजन उठाना: ‘मेरा बेटा पहलवान है, कुछ भी उठा लेगा।’ मां की तारीफों में यह जरूर होता था। अब विज्ञान कहता है कि जब हम हडि्डयों पर वजन उठाकर चलते हैं, तो उनके सेल ओस्टियोकैल्सिन हार्मोन रिलीज करते हैं, जो खून से दिमाग में पहुंचता है ।

आइडिया और रचनात्मकता के लिए वॉकिंग : मेरे पिता बचपन में कहते थे, ‘रिक्शा क्यों बेटा, चलो पैदल चलते हुए हवा खाएं’ तो मैं सोचता था कि वे कंजूस हैं। लेकिन आज ब्रेन स्टिमुलेशन अध्ययन बताते हैं कि चलने से सोचने में मदद मिलती है। खासतौर पर धीमी गति से (हवा खाते हुए) चलना, ताकि दिमाग भी चहल-पहल कर सके।

फंडा यह है कि हमारे माता-पिता और शिक्षक कितने वैज्ञानिक थे। वे अपने कार्यों के पीछे का विज्ञान नहीं बता पाते थे और हम युवा दुर्भाग्य से उन्हें नजरअंदाज कर देते थे।

ये भी पढ़े….

Leave a Reply

error: Content is protected !!