भारत में जाति जनगणना कराने में क्या चुनौतियाँ हैं?

भारत में जाति जनगणना कराने में क्या चुनौतियाँ हैं?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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  • मानकीकृत जाति सूची का अभाव: जाति जनगणना के संचालन में एक प्रमुख चुनौती मानकीकृत जाति कोड सूची का अभाव है। कोई एकीकृत OBC सूची मौजूद नहीं है; केंद्र सरकार की OBC सूची (जो केंद्रीय योजनाओं में प्रयुक्त होती है) राज्य-विशिष्ट विस्तृत सूचियों से भिन्न होती है।
    • SECC 2011 की खुले तौर पर रिपोर्टिंग से 46.7 लाख जाति प्रविष्टियाँ और 8 करोड़ से अधिक त्रुटियाँ उत्पन्न हुईं, जो यह दर्शाती हैं कि भारत की हज़ारों जातियों और उपजातियों को एक सुसंगत और विश्वसनीय तरीके से वर्गीकृत करना कठिन है।
  • जातिगत स्व-रिपोर्टिंग और गतिशीलता दावे: व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा के कारण उच्च जाति से संबद्धता का दावा कर सकते हैं, जैसा कि औपनिवेशिक जनगणनाओं में देखा गया था, जहाँ समुदाय क्षत्रिय, राजपूत, ब्राह्मण या वैश्य के रूप में पहचाने जाते थे।
  • स्वतंत्रता के बाद के काल में, कुछ व्यक्ति आरक्षण से लाभ प्राप्त करने के लिये गलत तरीके से निचली जातियों से अपनी पहचान जोड़ सकते हैं (उदाहरण के लिये, कुछ उच्च जातियों द्वारा OBC का दर्जा प्राप्त करने की मांग)।
    • जातिगत पहचान अक्सर परिवर्तनशील होती है तथा स्व-रिपोर्टिंग विभिन्न क्षेत्रों या पीढ़ियों में भिन्न हो सकती है।
  • जातियों का गलत वर्गीकरण: ‘धनक’, ‘धनकिया’, ‘धनुक’ और ‘धनका’ जैसे समान उपनामों के कारण भ्रम की स्थिति अलग-अलग जाति श्रेणियों (SC, ST, आदि) से संबंधित है, जिससे त्रुटियाँ होती हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, राज्यों में अलग-अलग वर्गीकरण से जनगणना और भी जटिल हो जाती है, उदाहरण के लिये, राजस्थान में मीणा समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन मध्य प्रदेश में इसे अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • भारत में जाति की संवेदनशीलता को देखते हुए, गणनाकर्ता प्रत्यक्ष प्रश्नों से बचते हैं और उपनामों पर आधारित धारणाओं पर विश्वास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः गलत प्रविष्टियाँ हो जाती हैं।
  • संस्थागत और प्रशासनिक क्षमता संबंधी बाधाएँ: जनगणना में एक समर्पित सत्यापन और कोडिंग इकाई का अभाव है, जिसके कारण नई जाति जनगणना के आँकड़े SECC 2011 के आँकड़ों की तरह ही अविश्वसनीय हो सकते हैं।

भारत में जाति जनगणना की विश्वसनीयता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • जातियों की सूची बनाना: पहला कदम विभिन्न राज्यों में अलग-अलग वर्गीकरणों को ध्यान में रखते हुए, गणना की जाने वाली जातियों और समुदायों की सूची बनाना है। भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त को इस सूची को अंतिम रूप देने के लिये शिक्षाविदों, जाति समूहों, राजनीतिक दलों एवं जनता से परामर्श करना चाहिये।
    • इसके बिना, वर्ष 2011 की जनगणना में देखी गई विसंगतियों के दोहराए जाने का खतरा है।
  • डेटा सत्यापन और शिकायत निवारण: जाति जनगणना की विश्वसनीयता में सुधार के लिये, आधार को एकीकृत करने से दोहराव को कम करने व सटीक पहचान सत्यापन सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
    • वर्गीकरण त्रुटियों को कम करने के लिये एक बहु-स्तरीय सत्यापन तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये, विवादों और गलत वर्गीकरणों को हल करने के लिये एक पारदर्शी शिकायत निवारण प्रणाली द्वारा पूरक होना चाहिये। इसके अतिरिक्त, समुदाय-स्तरीय निरीक्षण को शामिल करने से स्थानीय सत्यापन सुदृढ़ होगा और गणना प्रक्रिया में जनता का विश्वास बढ़ेगा।
    • सटीक डेटा सॉर्टिंग और विश्लेषण के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का लाभ उठाना।
  • समानता के लिये उप-वर्गीकरण: OBC के उप-वर्गीकरण के लिये न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
    • पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (2024) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप , अनुभवजन्य डेटा और ऐतिहासिक साक्ष्य का उपयोग करके पिछड़ेपन के विभिन्न स्तरों के आधार पर आरक्षण कोटे के भीतर अनुसूचित जातियों और जनजातियों को उप-वर्गीकृत करना।
  • विभिन्न उप-समूहों के बीच आरक्षण लाभ और प्रतिनिधित्व का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना।
  • सामाजिक-आर्थिक एकीकरण: बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) जैसे संकेतकों के साथ जाति संबंधी आँकड़ों को पूरक बनाना ।
    • तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009) ने पाया कि गरीबी रेखा से नीचे (BPL) 29% कार्डधारक गरीब हैं, जबकि गरीबी रेखा से ऊपर (APL) 13% कार्डधारक गरीब हैं। 
      • इसके लिये पुराने गरीबी मानकों को संशोधित करने तथा समावेशन एवं बहिष्करण संबंधी त्रुटियों को दूर करने के लिये प्रभावी सामाजिक-आर्थिक जनगणना आयोजित करने की आवश्यकता है।
  • क्षेत्रीय असमानताओं पर ध्यान केन्द्रित करना: राज्यों को ‘सबके लिये एक ही योजना’ के दृष्टिकोण से परे कल्याणकारी योजनाएँ बनाना।
  • निष्पक्ष उपयोग सुनिश्चित करना और राजनीतिक दुरुपयोग से बचना: जाति जनगणना को समावेशी विकास के साधन के रूप में देखना, न कि वोट बैंक की राजनीति के रूप में। मौजूदा नीतियों को तर्कसंगत बनाने और सबसे वंचितों को लक्षित करने के लिये डेटा का उपयोग करना।

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