भारत में जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

भारत में जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI)- 2024 में भारत ने 7वाँ स्थान हासिल किया है जो जलवायु परिवर्तन को कम करने के उद्देश्य से चल रहे वैश्विक प्रयासों में इसकी उल्लेखनीय भूमिका और योगदान को रेखांकित करता है।

CCPI- 2024 से प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं? 

  • परिचय:
    • वर्ष 2005 से प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाला CCPI, देशों के जलवायु संरक्षण प्रदर्शन पर नज़र रखने के लिये एक स्वतंत्र निगरानी उपकरण है। यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीति में पारदर्शिता बढ़ाता है और अलग-अलग देशों के जलवायु संरक्षण प्रयासों और प्रगति की तुलना करने में सक्षम बनाता है।
    • इसे जर्मनवॉच, न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित किया गया है।
    • यह 63 देशों और यूरोपीय संघ के जलवायु शमन प्रयासों को इंगित करता है, जो सामूहिक रूप से वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का 90% से अधिक के लिये जिम्मेदार हैं।
  • प्रदर्शन मेट्रिक्स: CCPI चार प्रमुख श्रेणियों में देशों का मूल्यांकन करता है: ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन (40%)नवीकरणीय ऊर्जा (20%)ऊर्जा उपयोग (20%), और जलवायु नीति (20%)
  • CCPI 2024: किसी भी देश ने सभी सूचकांक श्रेणियों में इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं किया कि समग्र रूप से बहुत ऊँची रेटिंग हासिल कर सके। इसलिये पहले तीन समग्र स्थान खाली रहते हैं।
    • डेनमार्क ने चौथा स्थान हासिल किया, एस्टोनिया पाँचवें स्थान पर रहा और फिलीपींस ने शीर्ष रैंक में छठा स्थान हासिल किया।

  • CCPI 2024 में भारत की रैंकिंग: भारत ने CCPI 2023 में 8वें स्थान से आगे बढ़ते हुए CCPI 2024 में 7वाँ स्थान हासिल किया। दिलचस्प बात यह है कि पहले तीन स्थानों में देशों की अनुपस्थिति के कारण, भारत प्रभावी रूप से वैश्विक जलवायु प्रदर्शन में चौथे स्थान पर है।
    • प्रमुख श्रेणियों में भारत का स्कोर और रैंकिंग:
      • GHG उत्सर्जन और ऊर्जा उपयोग: मूल्यांकन किये गए देशों के बीच भारत GHG उत्सर्जन में 9वें और ऊर्जा उपयोग में 10वें स्थान पर है, जिसका मुख्य कारण इसकी प्रति व्यक्ति न्यून ऊर्जा उपयोग है, जो इसकी जलवायु स्थिति को मज़बूत करने वाला एक कारक है।
        • इसके अलावा, प्रति व्यक्ति GHG श्रेणी में, देश 2°C से नीचे के बेंचमार्क को पूरा करने की राह पर है।
      • जलवायु नीति: भारत ने पिछले आकलन में अपने प्रदर्शन की तुलना में मध्यम प्रगति दिखाते हुए जलवायु नीति में 10वाँ स्थान हासिल किया।
      • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत का प्रदर्शन अधिक मध्यम दर्जे का रहा, जो 37वें स्थान पर रहा और बमुश्किल ‘उच्च’ प्रदर्शन श्रेणी में रहा।
        • यह स्थिति CCPI 2023 में 24वें स्थान से गिरावट को दर्शाती है।
  • वैश्विक संदर्भ तथा तुलनात्मक विश्लेषण:
    • वैश्विक रुझान: CCPI रिपोर्ट ने एक चिंताजनक रुझानों पर प्रकाश डाला है जिसके अनुसार डीकार्बोनाइज़ेशन की तात्कालिकता के बावजूद वर्ष 2022 में GHG के वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि हुई है तथा वायुमंडल में CO2 का स्तर पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 50% अधिक बढ़ गया है।
    • G20-प्रदर्शन: भारत (7वें), जर्मनी (14वें) तथा EU (16वें) स्थान के साथ, केवल तीन G20 देश/क्षेत्र ही CCPI 2024 में उच्च प्रदर्शन करने वालों में से हैं।
      • G20 सदस्य विश्व के 75% से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • विकसित देश: विशेष रूप से यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली इत्यादि सहित कई विकसित देशों ने CCPI 2023 की तुलना में खराब प्रदर्शन दिखाया जो जलवायु परिवर्तन का सामना करने में पर्याप्त प्रगति की कमी को दर्शाता है।

नोट: इस रिपोर्ट में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद, अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तेल, गैस एवं कोयला पर भारत की निर्भरता पर भी ज़ोर दिया गया है। यह निर्भरता शहरों में GHG उत्सर्जन व गंभीर वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदान देती है।

भारत में जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • जल की कमी: वर्षा के बदलते पैटर्न तथा पिघलते ग्लेशियरों से भारत की जल सुरक्षा को खतरा है। नीति आयोग के अनुसार, सबसे सटीक अनुमान से संकेत मिलता है कि वर्ष 2030 तक भारत की जल की मांग इसकी आपूर्ति से दो गुना अधिक हो जाएगी।
  • कृषि सुभेद्यता: जलवायु परिवर्तन फसल पैटर्न को प्रभावित करता है, जिससे पैदावार कम होती है तथा खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। ताप में बढ़ोतरी तथा बाढ़ व सूखे जैसी खराब मौसम की घटनाओं से कृषि बाधित होती है।
    • वर्ष 2019 के एक अध्ययन के अनुसार खराब मौसम की घटनाओं के कारण भारत की वार्षिक फसल का नुकसान भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.25% है।
  • समुद्र का बढ़ता स्तर: मुंबई तथा कोलकाता जैसे प्रमुख शहरों सहित तटीय क्षेत्रों को समुद्र के बढ़ते स्तर के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यह बुनियादी ढाँचे, आवास एवं लाखों लोगों की आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
    • ऐसा अनुमान है कि समुद्र के बढ़ते स्तर के परिणामस्वरुप होने वाले कटाव के कारण भारत में वर्ष 2050 तक लगभग 1,500 वर्ग किलोमीटर की भूमि का ह्रास हो सकता है।
  • वायु प्रदूषण: भारत, मुख्य रूप से वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण तथा फसल अवशेष जलाने के कारण चिंताजनक वायु गुणवत्ता की समस्याओं का सामना कर रहा है तथा जलवायु में हो रहे परिवर्तन इस समस्या को और बढ़ा रहें है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ रहा है।
    • वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की औसत PM2.5 सांद्रता 53.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg/m3) थी। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित वार्षिक दिशानिर्देश स्तर 5 μg/m3 से 10 गुना से अधिक है।
  • शहरी ताप द्वीप प्रभाव: इसके कारण शहरों में ताप बढ़ता है, जिससे लू की आवृत्ति तथा तीव्रता में वृद्धि होती है। इससे विशेषकर घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में रहने वाली सुभेद्य आबादी के बीच गर्मी से संबंधित व्याधियों एवं मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
    • वर्ष 2021 में, नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई शहर गर्मी के जोखिम के लिये शीर्ष 10 शहरों में थे।

जलवायु परिवर्तन शमन के लिये भारत सरकार की पहल क्या हैं?

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)
    • राष्ट्रीय सौर मिशन
    • उन्नत ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
    • सतत् आवास पर राष्ट्रीय मिशन
    • राष्ट्रीय जल मिशन
    • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय मिशन
    • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन
    • सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन
    • जलवायु परिवर्तन के लिये रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
    • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC)
    • जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (SAPCC)
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC)
  • पंचामृत लक्ष्य

आगे की राह

  • जलवायु-लचीला फसल किस्म: जलवायु पैटर्न में बदलाव के बावजूद खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, चरम मौसम की स्थिति का सामना करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित या चुनिंदा रूप से नस्ल की गई जलवायु-लचीली फसल किस्मों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
  • शहरी क्षेत्रों में ऊर्ध्वाधर वन: शहरी ताप द्वीप प्रभाव को कम करते हुए हरित आवरण और जैव विविधता को बढ़ाने के लिए शहरी स्थानों के भीतर ऊर्ध्वाधर वनों का निर्माण करना। इन संरचनाओं में इमारत के बाहरी हिस्से में कई स्तरों की वनस्पति शामिल है, जो पारिस्थितिक लाभ प्रदान करती है और वायु गुणवत्ता में सुधार करती है।
  • फ्लोटिंग सोलर फार्म: नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए झीलों और जलाशयों जैसे जल निकायों पर तैरते सौर फार्म बनाना। यह अभिनव दृष्टिकोण भूमि उपयोग को अनुकूलित करता है, पानी की सतहों से वाष्पीकरण को कम करता है और स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करता है।
  • समुदाय-आधारित जलवायु बीमा:  समुदाय-संचालित जलवायु बीमा योजनाओं को लागू करना जिसमें स्थानीय समुदायों को जोखिम-साझाकरण और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में शामिल किया जाए। इससे कमजोर आबादी को जलवायु संबंधी आपदाओं से उबरने में मदद मिलती है।
  • कार्बन क्रेडिट के लिये ब्लॉकचेन: पारदर्शी और कुशल कार्बन क्रेडिट सिस्टम बनाने हेतु ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करना। यह कार्बन क्रेडिट की सटीक ट्रैकिंग और व्यापार को सक्षम करेगा, व्यवसायों और व्यक्तियों को उत्सर्जन कटौती परियोजनाओं में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
  • कार्बन कैप्चर के लिये समुद्री शैवाल की खेती: कार्बन पृथक्करण की एक विधि के रूप में सीवीड की खेती को प्रोत्साहित करना।  समुद्री शैवाल वृद्धि के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करते हुए विभिन्न उद्देश्यों हेतु काटा जा सकता है।
  • जलवायु-स्मार्ट परिवहन को प्रोत्साहित करना: जलवायु-स्मार्ट परिवहन को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन-आधारित कार्यक्रमों को लागू करना, जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहनों, साइकिलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर या कारपूलिंग पहल के लिये कर लाभ या सब्सिडी की पेशकश करना।
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