भारत में वायु प्रदूषण से उत्पन्न बहुमुखी चुनौतियां क्या है?

भारत में वायु प्रदूषण से उत्पन्न बहुमुखी चुनौतियां क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इस वर्ष 31 अक्तूबर को मनाए गए ‘विश्व शहर दिवस’ (World Cities Day) का मुख्य ध्यान “सभी के लिये सतत् शहरी भविष्य के वित्तपोषण’’ (Financing Sustainable Urban Future for All) पर था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वित्त को दोषपूर्ण शहरीकरण से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने और अंततः वासयोग्य (livable) एवं सुरक्षित शहरों का निर्माण करने के लिये निर्देशित किया जाए। यह देखना चिंताजनक है कि अकेले वायु प्रदूषण ही हमारी जीवन प्रत्याशा को 10% से अधिक कम करने के लिये ज़िम्मेदार है। यह परिदृश्य इस समस्या से निपटने तथा शहरी आबादी के हित को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है।

भारत में वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति:

  • IQAir की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट (World Air Quality Report) के अनुसार, भारत वर्ष 2022 में विश्व का आठवाँ सबसे प्रदूषित देश था और नई दिल्ली लगातार चौथे वर्ष दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी थी।
  • रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत में थे, जहाँ भिवाड़ी और गाजियाबाद इस सूची में शीर्ष पर थे।
  • रिपोर्ट में 131 देशों में 30,000 से अधिक ग्राउंड-बेस्ड मॉनिटरों से PM2.5 वायु गुणवत्ता डेटा का उपयोग किया गया।
    • PM2.5 सूक्ष्म कणिका पदार्थ (particulate matter) को संदर्भित करता है जो श्वसन के माध्यम से शरीर के अंदर प्रवेश कर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं।

भारत में वायु प्रदूषण के परिणाम:

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: वायु प्रदूषण भारत में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है, जहाँ इसके कारण वर्ष 2019 में लगभग 1.67 मिलियन लोगों की मौत हुई। वर्ष 2019 में देश में हुई सभी मौतों में प्रदूषण से संबंधित मौतों की हिस्सेदारी 17.8% थी।
    • प्रदूषण के स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों में श्वसन संक्रमण, फेफड़ों के रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD), ब्रोन्कियल अस्थमा संक्रमण, हृदय गति का रुकना (cardiac arrest) और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएँ आदि शामिल हैं।
    • श्वसन संक्रमण भी भारत में मृत्यु का तीसरा या चौथा सबसे बड़ा कारक है।
    • सूक्ष्म कणिका वायु प्रदूषण (PM2.5) एक औसत भारतीय व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के निर्धारित स्तर के परिप्रेक्ष्य में 5.3 वर्ष तक कम कर देता है।
  • आर्थिक प्रभाव: डालबर्ग एडवाइजर्स (Dalberg Advisors) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत ने वर्ष 2019 में सुरक्षित वायु गुणवत्ता स्तर हासिल कर लिया होता तो इसकी जीडीपी में 95 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 3% की वृद्धि होती।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि प्रदूषण व्यवसायों और कामगारों की उत्पादकता, स्वास्थ्य एवं उपभोक्ता मांग को कम कर देता है।
    • वर्ष 2019 में भारत में प्रदूषण से संबंधित आर्थिक हानि 36.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रही, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद की 1.36% थी।
    • प्रदूषण के कारण आर्थिक हानि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है, जहाँ उत्तर प्रदेश (जीडीपी का 2.2%) और बिहार (जीडीपी का 2%) के लिये यह सर्वाधिक रही।
    • ये हानियाँ भारत की 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा को बाधित कर सकती हैं।
  • असमानता: भारत में निर्धन परिवार दूसरों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण का असमानुपातिक प्रभाव झेल रहे हैं। निम्न-आय समूह—जो वायु प्रदूषण में प्रत्यक्ष रूप से अधिक योगदान नहीं करते क्योंकि वे अधिक उपभोग नहीं करते हैं, अन्य स्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदूषण के असमानुपातिक प्रभाव का सामना कर रहे हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: भारत में प्रदूषण कई रूपों में प्रकट होता है, जिसमें अकुशल हवादार स्टोव का उपयोग करना और घरों के अंदर खाना पकाने के लिये खुली आग का उपयोग करना शामिल है। भारत विश्व का 8वाँ सबसे प्रदूषित देश है और सूक्ष्म कणिका वायु प्रदूषण (PM2.5) भारत में मानव स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़ा खतरा है। दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत में हैं।

“उल्लेखनीय है कि गुणवत्ताहीन हवा अब केवल सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों तक ही सीमित नहीं रह गई है, जहाँ तापमान व्युत्क्रमण (inversion of temperature) और मंद पवन गति को खराब वायु गुणवत्ता के लिये कारक माना जाता था। भारत के तटीय शहरों में भी स्थिति बदतर होती जा रही है।”

भारत में वायु प्रदूषण के पीछे के प्राथमिक कारण:

  • अत्यधिक मोटरचालित परिवहन: मोटरचालित परिवहन—जैसे कार एवं वाणिज्यिक वाहन, शहरी प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता है। अनुमान है कि शहरी प्रदूषण में वाहन उत्सर्जन का योगदान 60% तक है।
    • भारत का ऑटोमोबाइल बाज़ार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य का हो गया है और 8.1% की वृद्धि दर्ज करते हुए यह वर्ष 2027 तक लगभग 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
  • सड़क विस्तार और यातायात भीड़: बढ़ती यातायात भीड़ की अनदेखी करते हुए अधिक वाहनों को समायोजित करने के लिये सड़कों के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने से प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। ट्रैफिक जाम और अकुशल सड़क योजना जैसे कारक प्रदूषण में योगदान करते हैं।
  • निर्माण गतिविधियाँ: कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के लगभग 10% भाग लिये निर्माण गतिविधियाँ ज़िम्मेदार हैं। निर्माण उत्सर्जन पर निगरानी और नियंत्रण की कमी के साथ-साथ मानक संचालन प्रक्रियाओं का अपर्याप्त कार्यान्वयन प्रदूषण में योगदान देता है।
  • धान पुआल या पराली का दहन: यद्यपि यह प्रदूषण का प्राथमिक स्रोत नहीं है, लेकिन विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब में पराली दहन से उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में धुंध (smog – smoke plus fog) और कणिका प्रदूषण बढ़ जाता है।
  • अपर्याप्त हरित स्थान: शहरों के हरित क्षेत्र, जल निकाय, शहरी वन, समुदाय प्रबंधित सार्वजनिक शहरी क्षेत्रों (Urban Commons) में हरित आवरण और शहरी कृषि— इन सभी में कमी दर्ज की गई है, जबकि ‘ग्रे’ अवसंरचना का तेज़ी से विस्तार हुआ है।
    • ‘ग्रे’ अवसंरचना (Gray infrastructure) से तात्पर्य बाँध, समुद्री तटबंध (seawalls), सड़क, पाइप या जल उपचार संयंत्रों जैसी संरचनाओं से है।
  • सार्वजनिक भागीदारी का अभाव: शहरी विकास से संबंधित निर्णयों में शहर के निवासियों की प्रायः न्यूनतम भागीदारी होती है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी नीतियाँ और परियोजनाएँ क्रियान्वित होती हैं जो आबादी की भलाई या पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर विचार नहीं करती हैं।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये कौन-से किये जाने वाले उपाय:

  • शहर निर्माण की वैकल्पिक रणनीति: शहर निर्माण की एक वैकल्पिक रणनीति की अनिवार्य आवश्यकता है, जहाँ अधिक सार्वजनिक परिवहन पर ध्यान केंद्रित किया जाए और बाइसकिल ऑफिसर के पद की स्थापना के साथ सुरक्षित पैदल पथ एवं बाइसकिल लेन का निर्माण किया जाए।
    • सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना: कस्बों और शहरों के लिये सार्वजानिक बसों में निवेश करने के साथ बेहतर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की आवश्यकता है। अनुमान है कि शहरी परिवहन की मांगों को पूरा करने के लिये शहरों में मौजूदा बस बेड़े में लगभग 10 लाख अतिरिक्त बसों का योग करने की आवश्यकता होगी।
      • जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन जैसी अन्य ठोस पहलों को क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
  • निजी वाहनों पर नियंत्रण: शहरों में निजी मोटरचालित वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करने के लिये कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है। चरम ट्रैफिक (peak hours) के दौरान निजी कार मालिकों पर ‘कंजेशन टैक्स’ (congestion tax) अधिरोपित करने पर भी विचार किया जा सकता है। इसी तरह, विषम-सम (odd-even) नंबर प्लेट फॉर्मूले को अपनाना भी एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप हो सकता है।
    • कुछ शहरों में कुछ निर्धारित दिवस को ‘नो-कार डे’ मनाया जाता है। सत्ता में बैठे लोगों और प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा इसे व्यवहार में लाया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, परिवहन के वैकल्पिक साधनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये प्रतिवर्ष 22 सितंबर को विश्व कार मुक्त दिवस (World Car Free Day) मनाया जाता है।
  • औद्योगिक प्रदूषण की शून्य स्वीकृति: औद्योगिक प्रदूषण की शून्य स्वीकृति (Zero Acceptance) होनी चाहिये और वास्तविक समय निगरानी को यथार्थ में साकार किया जाना चाहिये। वैधानिक निकायों की कार्रवाई की प्रतीक्षा करने के बजाय निवासियों द्वारा सड़क की निगरानी की जानी चाहिये, जिसे शहरी स्थानीय निकाय द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • अर्बन कॉमन्स का संरक्षण: समुदाय प्रबंधित सार्वजनिक शहरी क्षेत्र या अर्बन कॉमन्स (Urban Commons)—जिसमे तालाब, जल निकाय, शहरी वन, पार्क, खेल के मैदान आदि शामिल हैं, एक अन्य प्रमुख क्षेत्र है जिन्हें निजी लाभ के लिये सार्वजनिक या निजी निकायों द्वारा अधिग्रहित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये। शहरी समुदायों द्वारा इनकी रक्षा, पोषण और विस्तार किया जाना चाहिये।
  • शहरी नियोजन में पारिस्थितिक ज्ञान को शामिल करना: शहरी नियोजन में पारिस्थितिक सिद्धांतों को शामिल करना—जिसका इयान मैकहार्ग (Ian McHarg) द्वारा प्रस्तावित ‘प्रकृति के साथ अभिकल्पना’ (Designing with Nature) में पक्षसमर्थन किया गया है, अधिक संवहनीय एवं पर्यावरण के अनुकूल शहर के निर्माण में मदद कर सकता है। इसमें शहर के भीतर प्राकृतिक पर्यावरण, खुली जगहों (open spaces) और वनीकरण पर विचार करना शामिल है।
  • सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा देना: वायु प्रदूषण के स्रोतों एवं प्रभावों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये और शहर के निवासियों के दैनिक जीवन में प्रदूषण दिशानिर्देश एवं मानक संचालन प्रक्रियाओं को एकीकृत किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

भारत को सभी के लिये स्वच्छ, स्वस्थ एवं अधिक संवहनीय भविष्य सुनिश्चित करने के लिये बेहतर सार्वजनिक परिवहन, कठोर औद्योगिक उत्सर्जन नियंत्रण, सतत् शहरी योजना और सार्वजनिक जागरूकता जैसे उपायों के माध्यम से वायु प्रदूषण को तत्काल संबोधित करना चाहिये। भारत इस तरह की कार्रवाई की महती आवश्यकता महसूस कर रहा है।

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