हम दाढ़ी बाबा के लिए क्या कर सकते है?

दाढ़ी बाबा का डीएवी और डीएवी के दाढ़ी बाबा।

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

डीवीएन अपने दाढ़ी बाबा को भूल मत देना।

दाढ़ी बाबा पर शोध प्रबंध कब आएगा?

✍️ राजेश पाण्डेय

जन्मजयन्ती पर विशेष-  जन्म 03 जनवरी 1884 , गमन- 27 अप्रैल 1968 

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जीव मात्र के कल्यान में साधक बनकर मनुष्य अपने जीवन को सफल कर सकता है। यह तभी संभव है जब उसके हृदय में प्रत्येक जीव के प्रति एकात्मकता का भाव जागृत हो। भारत की संस्कृति में आस्था, आदर्श, दिव्यता और दर्शन का पुट हो। यह नर को नारायण से, लोक को आत्मा से, वर्तमान को अतीत से एवं स्व को संस्कार से जोड़ता है। यहां के कण-कण में वीरता, उदारता, सत्यनिष्ठाता, निर्भीकता, धैर्यता, दार्शनिक दृष्टि इत्यादि गुण युगों-युगों से उसे प्रोत्साहित करते आ रहे है।

दाढ़ी बाबा परिवर्तन और आधुनिकता के सदैव पक्षधर रहे। उनका मानना था कि धर्म कोई भी हो, पर उसका सार संक्षेप मानव कल्याण ही है। समाज काल तथा स्थिति के अनुसार परिवर्तनशील है। वह अपने समय के परिवर्तनों को समाहित कर लेता है, यह इसका युग धर्म है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था “जिस क्षण मुझे ज्ञात हुआ कि प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का वास है, तभी से सब प्राणी मुझे जीवंत ईश्वर प्रतीत होने लगे, मैं उनका पूजन बन गया। अर्थात जैसा मैं हूं वैसे ही सभी मनुष्य हैं की भावना से विधाता का सृष्टि प्रयोजन सिद्ध करता है।”

जिस जन जागरण के प्रकाश को विशाल एवं भव्य रूप से रविंद्र नाथ टैगोर ने शांति निकेतन में, मदन मोहन मालवीय ने काशी में प्रज्वलित रखा इस मसाल को सीवान में दाढ़ी बाबा ने लग्न के साथ प्रज्वलित किया। क्योंकि स्वेच्छा से स्वीकार किए गए कष्ट या पीड़ा को ही ‘तप’ कहते है।

सीवान की पवित्र रत्नगर्भा वसुंधरा ने अनेका-अनेक ऐसे मनीषियों को आर्विभूत किया, जिन्होंने अनमोल रत्न के रूप में सारे विश्व में प्रख्यात हुए। मानव मानव जीवन को विकसित करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है। बच्चों की शिक्षा कब से हो, इसका उत्तर यह है कि बच्चों के जन्म के 20 वर्ष पहले से, क्योंकि माताएं राम लक्ष्मण पैदा करना चाहती हैं तो पहले उन्हें कौशल्या और सुमित्रा बनना होगा?

शिक्षा व साधन है जिसकी सहायता से शारीरिक सुख की प्राप्ति के साथ-साथ आनंद भी प्राप्त होता है। स्वतंत्र विचार, तर्क एवं निर्णय की शक्ति प्राप्त होती है एवं शुद्ध प्रवृत्तियों का भी विकास होता है। ज्ञान का प्रकाश और असीम शक्तियां जो हमारे भीतर है उसका विकास करने में यह शिक्षा हमें समर्थवान बनती है। शिक्षा राष्ट्र और जाति के पुनरुत्थान और पुनर्जागरण के लिए आवश्यक है।

आर्य समाज का मत है कि नर ही नारायण है अर्थात मनुष्य भगवान है और इसका मंदिर, पाठशाला व महाविद्यालय है, जिसमें स्त्री व पुरुष को समान रूप से शिक्षा ग्रहण करने, ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए। व्यक्ति विशिष्ट स्थलों पर जाने से कहीं अधिक ज्ञान प्राप्त करके अपने स्वदेश, स्वराज, स्वभाषा, स्व संस्कृति, स्व ज्ञान के प्रति जागरूक होगा। आर्य समाज का प्रमुख सिद्धांत पुनरुत्थानवादी है, जिसका उद्देश्य शिक्षा का प्रचार और समाज का सुधार प्रमुख है। जिस पर पूरे जीवन भर दाढ़ी बाबा चलते रहे और समाज के प्रेरणा स्रोत बने रहे, क्योंकि महापुरुषों के न रहने से समाज निर्बल हो जाता है।

सीवान के रत्न में दाढ़ी बाबा का स्मरण होते ही श्री रामचंद्र के कुलगुरु वशिष्ठ, श्री कृष्णा-बलराम के गुरु संदीपनी, पांडवों-कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य,देवताओं के गुरु बृहस्पति एवं अनेक महर्षियों के नाम सहसा संस्मरण हो जाते हैं। यह हम सभी के लिए परितोष का विषय है की महान अन्वेषक एवं शारदा पुत्र डॉ. प्रभु नारायण विद्यार्थी ने राख की परतों को हटाकर दाढ़ी बाबा के गौरवमय स्वर्णिम इतिहास की दमकते पृष्ठों को हमारे समक्ष रखने का स्तुत्य प्रयास किया है। जिनके अथक प्रयास से बाबा के अवतरण दिवस के शताब्दी वर्ष 1984 पर एक ग्रंथ दाढ़ी बाबा स्मृति- ग्रन्थ (स्वर्गीय वैधनाथ प्रसाद की पुण्य स्मृति में )के रूप में प्रकाशित होकर सामने आया।

कहना ना होगा की दाढ़ी बाबा नहीं होते तो आज के सीवान की जो स्थिति है उसे आने में एक शताब्दी तो और अवश्य लग जाता। क्योंकि गाँधी जी तरह सादगी एवं स्वच्छता, टैगोर की तरह बुद्धिमत्ता, स्वामी दयानंद सरस्वती की तरह विचारों की प्रखरता और मालवीय जी की तरह शिक्षा के प्रसार का पुट था। जिस जन जागरण के प्रकाश को विशाल एवं भव्य रूप में रविंद्र नाथ ठाकुर ने शांति निकेतन में, मदन मोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रज्वलित रखा,उसी प्रकार सीवान में दाढ़ी बाबा ने लगन के साथ प्रकाशमान रखा, क्योंकि सुरक्षा से स्वीकार किए गए कष्ट या पीड़ा को ही ‘तप’ कहते हैं।

दाढ़ी बाबा यह बतलाना चाहते थे कि जीवन को बनाने के लिए धार्मिक विचार और भावना मूल में रहे तो अच्छा है क्योंकि धर्म में एक विश्वास देता है, इसमें दृढ़ संकल्प शक्ति एवं जिज्ञासा की भावना निहित है जो जीवन को आगे बढ़ाने में समर्थ है। परंतु दाढ़ी बाबा धर्म के ढकोसला में विश्वास नहीं करते थे। वे भगवान की स्मृति, संध्या पूजन और संकल्प को महान मानते थे।

दाढ़ी बाबा का जीवन ही इतिहास है और सीवान का इतिहास हमेशा ही उनके बिना अपूर्ण रहेगा। विद्वान तो हमेशा जन्म लेते रहते हैं परंतु महान संत कई युगों के बाद पश्चात पृथ्वी पर कदम रखते हैं। दाढ़ी बाबा एक सच्चे कर्मयोगी एवं मनीषी सी महापुरुष थे। उनका वे स्वाध्याय, अध्यवसाय,त्याग और सेवा को ही चतुर्वर्ग समझकर शास्त्र और समाज की उन्नति में उत्साह और स्फूर्ति के साथ अपने तन, मन, धन को न्योछावर कर दिया। कहने का तात्पर्य यह है कि सीवान की सामाजिक,नैतिक,शैक्षणिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों की प्रतिक्रिया ही दाढी बाबा के अवतरण से साकार हुई।

यक्ष प्रश्न यह है कि दाढ़ी बाबा के नाम से किसी सड़क का नामकरण क्यों नहीं हुआ?
दाढ़ी बाबा के नाम से उनके बाद किसी और संस्था का नामकरण क्यों नहीं किया गया?
दाढ़ी बाबा का डीएवी और डीएवी के दाढ़ी बाबा इस अवधारणा को लेकर महाविद्यालय से जुड़े छात्र और अध्यापक क्यों नहीं आगे आए?

दाढी बाबा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के समक्ष था,परन्तु वे कौन से कारण थे कि उन्हें और उनकी संस्था को वह स्थान नहीं मिला जिसके वे योग्य थे।

क्या यह माना जाए की 1970 से लेकर सन 2000 तक 30 वर्षों में डीएवी संस्थाओं की जो उन्नति होनी चाहिए, वह सरकारी कारण उसकी लालफीता शाही, नेक नियति एवं शिक्षकों का व्यक्तित्व और छात्रों का शिक्षा के प्रति उदासीन रवैया प्रमुख कारण रहा?

21वीं सदी में यह मान लिया गया कि छोटे शहरों में शिक्षा पंगु हो गई है। संस्थान सफेद हाथी की तरह खड़े हैं। शिक्षा के मंदिर से मां सरस्वती, विद्या की देवी रूठ कर चली गई है। अब यह संस्थाएं केवल प्रमाण पत्र देने का कार्य कर रही है। जिन्हें एकाग्रचित होकर शिक्षा लेना है वे बनारस, प्रयाग दिल्ली, पटना की ओर प्रस्थान कर गए और ऐसे पलायन करने वालों की दो-तीन पीढियां ने दाढ़ी बाबा के डीएवी और डीएवी के दाढ़ी बाबा को भुला दिया!

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!