चुनाव आयोग ने SIR के मामले में सुप्रीम कोर्ट से क्या कहा?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के बाद चुनाव आयोग ने अंतिम लिस्ट जारी कर दी थी। SIR का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा हुआ है। फाइनल लिस्ट जारी करने के बाद चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भी इसकी जानकारी दे दी है। आयोग ने कहा है कि जो अंतिम मतदाता सूची जारी की गई है, उसमें कई नाम जोड़े गए हैं।
चुनाव आयोग ने कहा का कि फाइनल लिस्ट में जोड़े गए नामों में नए वोटर और कुछ पुराने वोटर शामिल हैं। आयोग ने SIR को लेकर राजनीतिक दलों के आरोपों पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा किया। इलेक्शन कमीशन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि किसी भी प्रभावित या डिलीट नाम वाले वोटर ने अब तक कोर्ट का रुख नहीं किया।
कोर्ट ने मांगी मतदाताओं की जानकारी
आयोग ने कहा कि केवल दिल्ली में बैठे नेता और एनजीओ ही मुद्दा उठा रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि आयोग गुरुवार तक बाहर रखे गए मतदाताओं की जानकारी प्रस्तुत करेगा और इसी दिन एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आगे की सुनवाई होगी।
पीठ ने कहा कि अंतिम सूची में मतदाताओं की संख्या से ऐसा प्रतीत होता है कि ड्राफ्ट रोल के मुकाबले संख्या में वृद्धि हुई है। इसलिए किसी भी भ्रम से बचने के लिए अतिरिक्त मतदाताओं की पहचान का खुलासा किया जाना चाहिए। अब शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई को गुरुवार के लिए लिस्ट कर दिया है।
बता दें कि 30 सितंबर को एसआईआर से पहले बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7.89 करोड़ थी, लेकिन अंतिम मतदाता सूची में यह घटकर 7.42 करोड़ हो गई। चुनाव आयोग ने 6 अक्तूबर को बिहार में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की है। बिहार की 243 सीटों पर 6 और 11 नवंबर को मतदान होंगे, जबकि वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी।
कोर्ट ने चुनाव आयोग से उन 3.66 लाख वोटों की भी जानकारी देने को कहा है जिनके नाम फाइनल वोटर लिस्ट में काटे गए हैं. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं, लेकिन उन्हें इसकी कोई सूचना नहीं दी गई. सिंघवी ने आरोप लगाया कि 3.66 लाख से अधिक लोगों के नाम बिना नोटिस हटाए गए, किसी को कारण नहीं बताया गया. उन्होंने कहा कि अपील का प्रावधान तो है, पर जब लोगों को जानकारी ही नहीं है, तो अपील का सवाल ही नहीं उठता.
वहीं, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि अब तक 47 लाख नाम हटाए जा चुके हैं. उन्होंने कहा कि 2003 और 2016 के आयोग के निर्देश बताते हैं कि फर्जी मतदाताओं को हटाने की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए, लेकिन इस बार पारदर्शिता का पूर्ण अभाव है. भूषण ने कहा कि 65 लाख मतदाताओं की जानकारी अदालत के आदेश के बाद ही दी गई, जबकि आयोग को यह डेटा वेबसाइट पर अपलोड करना चाहिए था.
निर्वाचन आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि जिन लोगों के नाम हटाए गए, उन्हें सूचना दी गई थी, और ड्राफ्ट तथा फाइनल सूची दोनों राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराई गई हैं. अदालत ने सवाल किया कि 3.70 लाख नामों में से कितनों से शिकायतें मिलीं, और उन पर क्या कार्रवाई हुई. इस पर आयोग की ओर से कहा गया कि कोई औपचारिक शिकायत नहीं आई है.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यदि कोई यह सूची दे सके कि किन लोगों को आदेश की जानकारी नहीं मिली, तो अदालत उन्हें सूचित करने का निर्देश दे सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि हर व्यक्ति को अपील का अधिकार है और यदि लोग आगे आते हैं, तो अदालत उनकी बात सुनेगी. सवाल यह है कि हम किसके लिए ऐसा कर रहे हैं, लोग आगे क्यों नहीं आ रहे हैं.
कोर्ट ने आयोग से कहा कि ड्राफ्ट और फाइनल लिस्ट के डेटा की तुलना कर रिपोर्ट गुरुवार तक दाखिल की जाए. प्रशांत भूषण ने कहा कि आयोग बटन दबाकर यह डेटा तुरंत दे सकता है, लेकिन पारदर्शिता की कमी के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा. अदालत ने कहा कि यह पूरी कवायद चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए की जानी चाहिए.
अब सुनवाई 9 अक्टूबर, गुरुवार को होगी, जब याचिकाकर्ता नई दलीलों के साथ हलफनामे दाखिल करेंगे और निर्वाचन आयोग उस पर जवाब देगा.