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रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा के क्या मायने है? - श्रीनारद मीडिया

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा के क्या मायने है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपए में चालान-प्रक्रिया (Rupee Invoicing) के लिये भारत की कोशिशों ने हालिया विदेश व्यापार नीति (Foreign Trade Policy- FTP) 2023 के साथ गति प्राप्त की है, जो भारतीय रुपए में व्यापार की चालान-प्रक्रिया, भुगतान और निपटान का प्रस्ताव करता है।

  • इस कदम से अन्य लाभों के साथ-साथ लेन-देन की लागत कम होने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिलने और ‘हेजिंग’ व्यय के कम होने की उम्मीद है। जबकि रुपया वर्तमान में वैश्विक मुद्रा बाज़ार कारोबार में मात्र 2% की हिस्सेदारी रखता है, यह फ्रेमवर्क रूस, सऊदी अरब, नाइजीरिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे व्यापार भागीदारों के लिये विशेष रूप से लाभप्रद सिद्ध हो सकता है।
  • हालाँकि, इस नीति की प्रभावशीलता अंततः भारत के शुद्ध व्यापार घाटे/अधिशेष और कुल द्विपक्षीय व्यापार की तुलना में रुपए में व्यापार की सीमा जैसे कारकों पर निर्भर करती है।
  • कुल मिलाकर, भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिये सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक और अन्य हितधारकों की ओर से अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में भारतीय रुपए की मांग को बढ़ावा देने के लिये एक ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के क्या लाभ हैं?

  • लेन-देन लागत में कमी होना:
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण मुद्रा रूपांतरण (currency conversion) की आवश्यकता को कम कर सकता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने वाले व्यक्तियों के लिये लेन-देन की लागत कम हो सकती है।
    • यह विदेशी निवेशकों के लिये भारत में व्यापार करने को और अधिक आकर्षक बना सकता है और वैश्विक बाज़ारों में भारत के निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना सकता है।
  • मूल्य पारदर्शिता का वृहत स्तर:
    • जब अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में रुपए का व्यापक रूप से उपयोग होगा तो यह मूल्य पारदर्शिता के वृहत स्तर की ओर ले जा सकता है। यह भारतीय कारोबारों को वैश्विक बाज़ार की स्थितियों को बेहतर ढंग से समझने और तदनुसार अपनी मूल्य निर्धारण रणनीतियों को समायोजित करने में सक्षम बना सकता है।
  • त्वरित निपटान समय:
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिये त्वरित और अधिक कुशल निपटान समय की सुविधा प्रदान कर सकता है। यह सीमा-पार भुगतान से जुड़े समय और लागत को कम करके भारतीय कारोबारों को लाभान्वित कर सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा:
    • अंतर्राष्ट्रीयकृत रुपया भारतीय व्यवसायों के लिये अपने वैश्विक समकक्षों के साथ लेन-देन करना सरल एवं सस्ता बनाकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा दे सकता है। इससे देश के निर्यात और आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है।
  • हेजिंग व्यय में कमी:
    • रुपए की व्यापक स्वीकृति और अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में उपयोग की वृद्धि के साथ मुद्रा उतार-चढ़ाव (currency fluctuations) के विरुद्ध हेजिंग (hedging) की आवश्यकता कम हो सकती है। इससे व्यवसायों और निवेशकों के लिये लागत बचत हो सकती है।
  • RBI द्वारा विदेशी रिज़र्व धारण की लागत का कम होना:
    • अंतर्राष्ट्रीयकृत रुपया भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी रिज़र्व रखने की लागत को कम कर सकता है। जब अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में रुपए का व्यापक प्रचलन और उसकी स्वीकृति होगी तो RBI के लिये अपने कार्यकरण के संचालन हेतु अधिक विदेशी मुद्रा रखने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे लागत में कमी आएगी।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबद्ध चुनौतियाँ

  • पूंजी नियंत्रण (Capital Controls):
    • भारत में अभी भी पूंजी नियंत्रण की स्थिति है जो भारतीय बाज़ारों में निवेश और व्यापार करने की विदेशियों की क्षमता को सीमित करता है। ये नियंत्रण भारतीय रुपए (INR) के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किये जाने को कठिन बनाते हैं।
  • विनिमय दर अस्थिरता (Exchange Rate Volatility):
    • भारतीय रुपए में अस्थिरता का एक इतिहास रहा है, जो इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उपयोग हेतु अनाकर्षक बनाता है। वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में उपयोग की जाने वाली किसी मुद्रा के लिये मुद्रा विनिमय दर स्थिरता (Exchange Rate Stability एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
  • वित्तीय बाज़ार का विकास:
    • मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये बड़े एवं तरल वित्तीय बाज़ारों का विकास एक पूर्वशर्त है। भारतीय वित्तीय बाज़ार अभी भी विकास की प्रक्रिया में है और इसे वैश्विक वित्तीय बाज़ारों के साथ और अधिक एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • विनियामक वातावरण:
    • भारत में विनियामक वातावरण को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में INR के उपयोग हेतु अनुकूल होना चाहिये। इसके लिये सरकार को ऐसी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है जो वित्तीय क्षेत्र के विकास का समर्थन करती हैं, बाज़ार की पारदर्शिता में सुधार लाती हैं और लालफीताशाही को कम करती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयासों का अभाव:
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में रुपए के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये भारत को और अधिक सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। इसमें अपतटीय INR व्यापार केंद्र स्थापित करना, अन्य देशों के साथ करेंसी स्वैप समझौते करना और व्यापार निपटान में रुपए के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है।
  • निम्न मुद्रास्फीति:
    • जब किसी मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण की बात आती है तो मुद्रास्फीति की दर भी एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में सफल रहा है, लेकिन निम्न मुद्रास्फीति दर विदेशी निवेशकों के लिये मुद्रा को कम आकर्षक बना सकती है।
  • भू-राजनीतिक कारक:
    • राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध और प्रतिबंध जैसे भू-राजनीतिक कारक मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। भारत को अन्य देशों के साथ स्थिर संबंध रखने और भू-राजनीतिक संघर्षों में फँसने से बचने की जरूरत है, क्योंकि ये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में INR के उपयोग को प्रभावित कर सकते हैं।

आगे की राह

  • भारतीय रुपए में सीमा-पार व्यापार को प्रोत्साहन देना:
    • सरकार को दूसरे देशों, विशेष रूप से नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ सीमा-पार व्यापार को अन्य मुद्राओं के बजाय भारतीय रुपए में किये जाने को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • इससे इन देशों में भारतीय रुपए की मांग बढ़ेगी, जिससे इसके अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा मिलेगा।
  • वित्तीय बाज़ार विकास को बढ़ावा देना:
    • विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिये भारत अपने वित्तीय बाज़ारों, विशेष रूप से बॉण्ड बाज़ार के विकास को बढ़ावा दे सकता है।
    • इससे भारतीय रुपए-मूल्यवर्ग के बॉण्ड की मांग बढ़ेगी और अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में इसके उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • पूंजी खाता लेन-देन को उदार बनाना:
    • सरकार को विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये पूंजी खाता लेन-देन को और उदार बनाना चाहिये, जिससे अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में भारतीय रुपए की मांग बढ़ेगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में भारतीय रुपए के उपयोग का विस्तार करना:
    • सरकार को द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय समझौतों पर हस्ताक्षर करके अपने व्यापारिक भागीदारों को अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में भारतीय रुपए का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। यह अपने पड़ोसी देशों के साथ एक भारतीय रुपया-आधारित व्यापारिक मंच बनाने की संभावना की भी तलाश कर सकती है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना:

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