एग्जिट पोल क्या होता है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार चुनाव के एग्जिट पोल में एनडीए की बड़ी बढ़त के संकेत मिले हैं। 16 एजेंसियों के पोल ऑफ पोल्स में एनडीए को 154 सीटें मिलने का अनुमान है। महागठबंधन 83 सीटों पर सिमटता दिख रहा है, जबकि अन्य के खाते में 5 सीटें जा सकती हैं।
पहली बार चुनाव में उतरी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बेअसर नजर आ रही है। उसे 3-5 सीटें मिलने का अनुमान है। पिछले चुनाव में एनडीए को 125, महागठबंधन को 110 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं। यानी इस बार एनडीए को करीब 29 सीटों का फायदा, जबकि महागठबंधन को 28 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है।
राज्य में 243 सीटों पर 2 फेज में चुनाव हुआ। पहले फेज में 121 सीटों पर 65% वोटिंग हुई है। वहीं दूसरी फेज में रिकॉर्ड 68.5% मतदान हुआ है। रिजल्ट 14 नवंबर को आएगा।
पिछले 3 विधानसभा चुनावों (2010, 2015, 2020) के एग्जिट पोल्स के रुझान बताते हैं कि सर्वे एजेंसियां वोटर्स का मूड ठीक से पकड़ नहीं पाईं। 2015 में ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने NDA यानी भाजपा+ को बढ़त दी थी, जबकि नतीजों में महागठबंधन (RJD-JDU-कांग्रेस) ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया।
वहीं, 2020 में तस्वीर उलटी रही। इस बार कई एजेंसियों ने महागठबंधन की जीत का अनुमान लगाया, लेकिन परिणामों में NDA ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई। यानी ज्यादातर पोल्स फिर गलत साबित हुए।
सर्वे में एनडीए को 145-160 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं, महागठबंधन को 73-91 और अन्य को 5-10 सीटें मिलने का अनुमान है।इस पोल के मुताबिक, बीजेपी को 72-82 सीटें, जेडीयू को 59-68 सीटें, एलजेपी को 4-5 सीटें और हम को 5-5 सीटें मिल सकती हैं।
महागठबंधन में आरजेडी को 51-63, कांग्रेस को 12-15, सीपीआईएमल को 6-9, वीआईपी को 0, सीपीआई को 2, सीपीएम को 1 आईआईपी को 0-1 सीटें मिलने का अनुमान है.
एग्जिट पोल क्या होता है
चुनाव के दौरान जनता का मूड जानने के लिए दो तरह के सर्वे किए जाते हैं। वोटिंग से पहले के सर्वे को ओपिनियन पोल कहते हैं। वोटिंग के दौरान होने वाले सर्वे को एग्जिट पोल कहा जाता है। आम तौर पर एग्जिट पोल के नतीजे आखिरी फेज की वोटिंग खत्म होने के एक घंटे बाद जारी किए जाते हैं।
एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के वॉलंटियर वोटिंग के दिन वोटिंग बूथ पर मौजूद होते हैं। ये वॉलंटियर वोट देकर लौट रहे लोगों से चुनाव से जुड़े सवाल पूछते हैं। वोटर्स के जवाब के आधार पर रिपोर्ट बनाई जाती है जिससे पता चले कि वोटर्स का रुझान किस तरफ ज्यादा है। इसी आधार पर चुनाव के नतीजों का अनुमान लगाया जाता है।
बिहार में कभी सटीक नहीं रहे एग्जिट पोल्स, 4 वजह
बिहार में एग्जिट-पोल्स पूरी तरह भरोसेमंद कभी नहीं रहे। सीटों को लेकर हर बार इनका गणित बिगड़ा है। हालांकि कुछ एग्जिट पोल में वोट प्रतिशत अनुमान करीब रहा है, लेकिन कितनी सीटें किस गठबंधन को मिलेंगी, ये बताने में नाकाम रहे।
- माइग्रेंट वोटर्स: बिहार से बाहर काम करने वाले लाखों प्रवासी वोट देने के बाद लौटने की जल्दबाजी में होते हैं। ऐसे में उन्हें एक्जिट पोल सैंपल में शामिल करना मुश्किल होता है।
- जाति-आधारित वोटिंग पैटर्न: बिहार में जातीय समीकरण जटिल है, और एक्जिट पोलर्स अक्सर छोटे सैंपल साइज के कारण निचली जातियों के शिफ्ट को मिस कर देते हैं।
- साइलेंट वोटर्स: बिहार में बड़ा वर्ग साइलेंट वोटर है। यह चुनाव से जुड़े सर्वे करने वालों के सामने अपनी राजनीतिक पसंद या मतदान के इरादे को नहीं बताता है।
- महिला वोटर्स: बिहार में महिलाओं का वोटर टर्नआउट पुरुषों से अधिक (2020 में महिलाओं का टर्नआउट 59.69% जबकि पुरुषों का 54.45% था) रहा है। महिलाएं पुरुषों और युवाओं के मुकाबले अपना ओपिनियन खुलकर शेयर नहीं करती हैं। इससे सर्वे के अनुमान बिगड़ जाते हैं।
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नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं। जनता दल यूनाइटेड (JDU) के अध्यक्ष हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव में NDA ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है। नीतीश 2005 से अब तक 9 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह देश के सबसे लंबे समय तक सीएम रहने वाले नेता हैं। बिहार की राजनीति में सबसे अनुभवी चेहरा हैं।
नीतीश कुर्मी समुदाय (अन्य पिछड़ा वर्ग) से आते हैं। नीतीश को आगे रखकर NDA ने OBC + सवर्ण + महिला वोटर का संतुलन बनाना चाहा। नीतीश को CM चेहरा बनाकर BJP ने यह संदेश दिया कि अब NDA में टूट की कोई संभावना नहीं है।
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