भारत में दुग्ध उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विश्व दुग्ध दिवस, दुग्ध के पोषण संबंधी, आर्थिक और पर्यावरणीय महत्त्व के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में डेयरी उद्योग की भूमिका को उजागर करने हेतु मनाया जाता है।
- वर्ष 2001 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्थापित, विश्व दुग्ध दिवस 2025 का विषय “लेट्स सेलिब्रेट द पॉवर ऑफ डेरी (Let’s Celebrate the Power of Dairy)” है, जो पोषण, ग्रामीण आजीविका, आर्थिक विकास व स्थिरता में डेयरी की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
नोट: भारत में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस (NMD) 26 नवंबर को डॉ. वर्गीस कुरियन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
- श्वेत क्रांति या ऑपरेशन फ्लड के जनक के रूप में विख्यात डॉ. वर्गीज कुरियन ने भारत को डेयरी की कमी वाले देश से विश्व के शीर्ष दुग्ध उत्पादक देश में बदल दिया।
भारत में दुग्ध उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- वैश्विक रैंकिंग: भारत वर्ष 1998 से विश्व का शीर्ष दुग्ध उत्पादक रहा है, जो अब वैश्विक स्तर पर दुग्ध का 25% उत्पादन करता है। वर्ष 2014-15 और वर्ष 2023-24 के बीच, दुग्ध उत्पादन 63.56% बढ़कर 146.3 मिलियन टन से 239.2 मिलियन टन हो गया।
- वर्ष 1950-51 में भारत में प्रतिवर्ष 21 मिलियन टन से भी कम दुग्ध का उत्पादन होता था।
- शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य: बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (BAHS) 2024 के अनुसार, शीर्ष 5 दुग्ध उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश (16.21%), राजस्थान (14.51%), मध्य प्रदेश (8.91%), गुजरात (7.65%), महाराष्ट्र (6.71%) हैं।
- प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता: वर्ष 2023-24 में प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता प्रतिदिन 471 ग्राम से अधिक होगी, जो विश्व औसत 322 ग्राम से काफी अधिक है।
- पशु प्रकार के अनुसार दुग्ध उत्पादन:
भारत में डेयरी उद्योग का महत्त्व क्या है?
- ग्रामीण भारत की रीढ़: डेयरी उद्योग देश की GDP में 6% से अधिक का योगदान देता है और 80 मिलियन से अधिक डेयरी किसानों की आजीविका का समर्थन करता है। कृषि आय का लगभग 12-14% हिस्सा डेयरी से आता है।
- पोषण सुरक्षा: भारत में दुग्ध की खपत 471 ग्राम/दिन है (विश्व औसत 322 ग्राम/दिन के मुकाबले)। यह विशेष रूप से शाकाहारी आहार में प्रोटीन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- डेयरी उत्पाद कैल्शियम, विटामिन B12 एवं उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन प्रदान करते हैं, जो एनीमिया और बौनेपन जैसी कमियों को दूर करते हैं।
- महिला सशक्तीकरण: भारत के डेयरी उद्योग में महिलाओं की मज़बूत भागीदारी देखी जा रही है, सहकारी समितियों में 35% महिलाएँ हैं और 48,000 महिला-नेतृत्व वाली समितियाँ हैं, जो समावेशी विकास तथा ग्रामीण सशक्तीकरण को बढ़ावा दे रही हैं।
- एकीकृत कृषि को समर्थन: भारत की विशाल पशुधन जनसंख्या (लगभग 303.76 मिलियन गौवंश और 74.26 मिलियन बकरियाँ) जैविक खाद प्रदान करके मृदा की उर्वरता बढ़ाती है तथा बायोगैस उत्पादन को सक्षम बनाकर एकीकृत कृषि को सशक्त करती है।
- सतत् विकास और जलवायु अनुकूलन: गौबरधन योजना के तहत गोबर एवं कृषि अपशिष्ट से बायो-CNG और जैविक उर्वरक बनाए जाते हैं, जिससे किसानों की आय बढ़ती है तथा एक अतिरिक्त आय स्रोत बनता है।
- यह रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करता है, उत्पादन लागत घटाता है और अपशिष्ट से संपदा की ओर बढ़ते हुए स्वच्छ ऊर्जा, उत्सर्जन में कमी, ग्रामीण उद्यमिता तथा आर्थिक अनुकूलन को बढ़ावा देता है।
- भावी विकास: श्वेत क्रांति 2.0 का लक्ष्य सहकारी समितियों द्वारा दुग्ध संग्रहण को 660 लाख लीटर से बढ़ाकर 1,000 लाख लीटर प्रतिदिन करना है तथा पाँचवें वर्ष तक प्रतिदिन 100 मिलियन किलोग्राम दुग्ध खरीद का लक्ष्य रखा गया है।
- यह पहल दुग्ध उत्पादन, महिला सशक्तीकरण और कुपोषण से निपटने पर केंद्रित है।
भारत में डेयरी उद्योग की चुनौतियाँ क्या हैं?
- पर्यावरणीय और जलवायु दबाव: हीटवेव के कारण दुग्ध उत्पादन में 10–30% तक की गिरावट आ सकती है, विशेषकर उत्तरी राज्यों में, जो भारत के कुल दुग्ध उत्पादन में 30% योगदान करते हैं। यह स्थिति डेयरी क्षेत्र की उत्पादकता और आय की स्थिरता के लिये एक गंभीर खतरा है।
- उत्पादन लागत में वृद्धि: पिछले 30 वर्षों में उच्च गुणवत्ता वाले पशु आहार की कीमतों में 246% की वृद्धि हुई है, जबकि दुग्ध की कीमतों में केवल 68% की वृद्धि हुई है। इससे किसानों के लाभ का मार्जिन कम हो गया है।
- उत्पादकता की चुनौतियाँ: भारत में डेयरी उत्पादकता कम है; वर्ष 2014 में 50 मिलियन गायों और 40 मिलियन भैंसों से 140 मिलियन टन दुग्ध का उत्पादन हुआ।
- रोग प्रकोप और पशु स्वास्थ्य: लंपी स्किन डिज़ीज़ (2022–23) जैसे हालिया प्रकोपों के कारण दुग्ध उत्पादन में 10% की गिरावट आई, जबकि मैस्टाइटिस से हर वर्ष ₹14,000 करोड़ का नुकसान होता है।
- हीटवेव और आर्द्रता हेमरिज सेप्टीसीमिया (haemorrhagic septicaemia) जैसे रोगों को बढ़ावा देती हैं, जिनके उपचार की लागत किसानों की आय को प्रभावित करती है।
- असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में केवल 28% दुग्ध संगठित क्षेत्र, जिसमें सहकारी समितियाँ शामिल हैं, के माध्यम से प्रसंस्कृत होता है, जबकि 70% से अधिक दुग्ध असंगठित क्षेत्र में ही रहता है।
- इससे गुणवत्ता नियंत्रण में कमी, कोल्ड चेन अवसंरचना की अनुपलब्धता और छोटे उत्पादकों के लिये सीमित बाज़ार तथा ऋण तक पहुँच जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- देशी नस्लों के लिये खतरा: क्रॉसब्रीडिंग (संकर प्रजनन) से उत्पादकता तो बढ़ती है, लेकिन क्रॉसब्रेड पशुओं पर अत्यधिक निर्भरता देशी नस्लों के अस्तित्व के लिये खतरा बन सकती है।
- जहाँ केरल 96% की दर के साथ क्रॉसब्रीड अपनाने में अग्रणी है और राष्ट्रीय औसत 30% है, वहीं देशी नस्लों का संरक्षण जैवविविधता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और सतत् दुग्ध उत्पादन के लिये अत्यंत आवश्यक है।
- विपणन और भ्रामक आख्यान: A2 दुग्ध (A1 दुग्ध के विपरीत) को लेकर चल रहा विपणन प्रचार क्रॉसब्रेड गायों की अनुचित आलोचना कर सकता है, जबकि ये गायें भारत के कुल दुग्ध उत्पादन का 30% योगदान देती हैं—और इस संबंध में वैज्ञानिक प्रमाण भी सीमित हैं।
- A1 और A2 दुग्ध में अंतर बीटा-केसीन प्रोटीन में एक छोटे आनुवंशिक परिवर्तन के कारण होता है।
पशुधन क्षेत्र से संबंधित योजनाएँ:
- पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF)
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
- विश्व के सबसे बड़े डेयरी उत्पादक के रूप में, भारत का दुग्ध क्षेत्र ग्रामीण आजीविका, पोषण सुरक्षा और आर्थिक विकास का प्रमुख आधार है। हालाँकि जलवायु परिवर्तन, कम उत्पादकता तथा रोग प्रकोप जैसी चुनौतियों से निपटने के लिये नवाचारी समाधान आवश्यक हैं। प्रौद्योगिकी ( एआई, सेक्स-सॉर्टेड सीमेन), जलवायु-लचीली नस्लों और संगठित बुनियादी ढाँचे का लाभ उठाकर स्थिरता को बढ़ावा दिया जा सकता है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन जैसी योजनाओं को मज़बूत करने से भारत न केवल अपना वैश्विक डेयरी नेतृत्व बनाए रखेगा, बल्कि जलवायु जोखिम, खाद्य सुरक्षा और किसान आय जैसी चुनौतियों का भी समाधान करेगा।
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