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क्या कहलाएगा पुराना संसद भवन? - श्रीनारद मीडिया

क्या कहलाएगा पुराना संसद भवन?

 क्या कहलाएगा पुराना संसद भवन?

ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा इसे डिजाइन किया गया था

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया कि पुराने संसद भवन का नाम ‘संविधान सदन’ रखा जाना चाहिए।  भारत की संसद की समृद्ध विरासत की स्मृति में सेंट्रल हॉल में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर हम नए संसद भवन में शिफ्ट हो रहे हैं।’

PM मोदी ने कहा, ‘मेरा सुझाव है कि जब हम नई इमारत में जा रहे हैं, तो इस इमारत की महिमा कभी कम नहीं होनी चाहिए। इसे सिर्फ पुरानी संसद नहीं कहा जाना चाहिए। इसका नाम संविधान सदन रखा जा सकता है।’ बता दें कि लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मंगलवार को समारोह के लिए पुराने संसद भवन के ऐतिहासिक सेंट्रल हॉल में एकत्र हुए।

जानकारी के लिए बता दें कि ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा पुरानी संसद भवन को डिजाइन किया गया था। यह इमारत 1927 में बनकर तैयार हुई थी, जो 96 साल पुरानी हो चुकी है। 18 सितंबर को लोकसभा में बोलते हुए, पीएम मोदी ने पुरानी इमारत की ‘हर ईंट’ को श्रद्धांजलि दी और कहा कि सांसद ‘नई आशा और विश्वास’ के साथ नई इमारत में प्रवेश करेंगे।

क्या होगा पुराने संसद का?

सरकारी सूत्रों का कहना है कि इमारत को ध्वस्त नहीं किया जाएगा और संसदीय कार्यक्रमों के लिए इसे ‘रेट्रोफिट’ किया जाएगा। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि पुरानी इमारत के एक हिस्से को संग्रहालय में तब्दील किया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक, ऐतिहासिक संरचना का संरक्षण किया जाएगा, क्योंकि यह देश की पुरातात्विक संपत्ति है।

  1. पीएम ने कहा कि ये भवन और उसमें भी ये सेंट्रल हॉल हमारी भावनाओं से भरा हुआ है, ये हमें भावुक भी करता है और हमें हमारे कर्तव्यों के लिए प्रेरित भी करता है। 1952 के बाद दुनिया के करीब 41 राष्ट्राध्यक्षों ने इस सेंट्रल हॉल में हमारे सभी माननीय सांसदों को संबोधित किया है। हमारे सभी राष्ट्रपति महोदयों के द्वारा 86 बार यहां संबोधन दिया गया है।
  2. पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में ही 1947 में अंग्रेजी हुकुमत ने सत्ता का हस्तांतरण किया। उस ऐतिहासिक लम्हे का गवाह भी ये केंद्रीय कक्ष रहा। इसी हॉल में हमारे राष्ट्रीय गान और तिरंगे को अपनाया गया।
  3. संसद ने बीते वर्षों में ट्रांसजेंडर को न्याय देने वाले कानूनों का भी निर्माण किया। इसके माध्यम से हमने ट्रांसजेंडर को भी सद्भाव और सम्मान के साथ नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बाकी सुविधाएं देने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
  4. इस सदन में अनुच्छेद-370 से मुक्ति पाने, अलगाववाद एवं आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने का महत्वपूर्ण कदम उठाया। इस काम में माननीय सांसदों और संसद की बहुत बड़ी भूमिका है। जम्मू-कश्मीर में इसी सदन में निर्मित संविधान लागू किया गया।
  5. लोकसभा और राज्यसभा में संयुक्त रूप से चार हजार से अधिक कानून पारित किए गए हैं। इसके अलावा दहेज निषेध कानून और आतंकवाद विरोधी कानून जैसे कई महत्वपूर्ण कानून संसद के संयुक्त सत्र के दौरान और इसी सेंट्रल हॉल में ही पारित किये गये हैं।
  6. हमारी इसी संसद में मुस्लिम बहन-बेटियों को न्याय मिला है। शाह बानो केस के कारण गाड़ी उलटी पटरी पर चली गई थी। इसी सदन ने हमारी उस गलती को ठीक किया है। हमने मिलकर तीन तलाक कानून को पारित किया।
  7. हमें ये सुनिश्चित करना है कि संसद का हर कानून, संसद की हर चर्चा, संसद का हर संदेश भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला हो। ऐसा करना हमारा कर्तव्य है, हमारी जिम्मेदारी है। हमारा देश हमसे यही अपेक्षा करता है और हमें इसे पूरा करना सुनिश्चित करना चाहिए।
  8. जैसे छोटे Canvas पर बड़ा चित्र नहीं बन सकता, वैसे हम भी अगर अपने सोचने के Canvas को बड़ा नहीं करेंगे तो भव्य भारत का चित्र अंकित नहीं कर पाएंगे। अमृतकाल के 25 वर्षों में भारत को अब बड़े Canvas पर काम करना ही होगा। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को पूरा करना हमारा दायित्व है। इसमें दल आड़े नहीं आते, सिर्फ दिल चाहिए, देश के लिए चाहिए।
  9. हमारी इसी संसद में मुस्लिम बहन-बेटियों को न्याय की जो प्रतीक्षा थी, शाहबानो केस के कारण गाड़ी उलटी पटरी पर चल गई थी. इसी सदन ने हमने उन गलतियों को ठीक किया और हम सबने मिलकर तीन तलाक कानून पारित किया. संसद ने बीते वर्षों में ट्रांसजेंडर को न्याय देने वाले कानूनों का भी निर्माण किया. इसके माध्यम से हमने ट्रांसजेंडर को भी सद्भाव और सम्मान के साथ नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बाकी सुविधाएं देने की दिशा में कदम बढ़ाया है.
  10. टेक्नोलॉजी की दुनिया में भारत का नौजवान जिस प्रकार आगे बढ़ रहा है, वो पूरे विश्व के लिए आकर्षण और स्वीकृति का केंद्र बन रहा है। अमृतकाल के 25 वर्षों में भारत को अब बड़े कैनवास पर काम करना ही होगा। हमें आत्मनिर्भर भारत बनाने के लक्ष्य को सबसे पहले परिपूर्ण करना चाहिए।

 

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