वह दिन कब आएगा जब भारत पढ़ने आएंगे छात्र?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारतीय उच्च मध्यवर्गीय परिवारों के छात्र बड़ी संख्या में जा रहे हैं। साथ ही, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के किसानों के बच्चे भी जमीन बेचकर विदेश जा रहे हैं। साल 2019 में सात लाख विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए, वहीं हर साल महज 40,000 विदेशी विद्यार्थियों का भारत आना यह बताता है कि विश्व स्तर पर भारतीय उच्च शिक्षा की छवि ठीक नहीं है।

पिछले दिनों रांची में आईआईएम में दोतरफा अंतरराष्ट्रीयकरण विषय पर आयोजित परिचर्चा में विचार-मंथन हुआ था कि भारतीय छात्र विदेश जा तो रहे हैं, पर ऐसा क्या किया जाए कि बाहर से भी छात्र भारत आने लगें? क्या निकट भविष्य में विदेशी छात्र भी बड़ी संख्या में भारत पढ़ने आएंगे? यह बहुत व्यापक विषय है और इसके अनेक पहलू हैं।

वास्तव में, छात्रों को विदेश जाने से नहीं रोका जा सकता। एक समय गांधी, नेहरू, आंबेडकर भी विदेश गए थे, पर वे लौटकर आए और देश की सेवा में खुद को समर्पित कर दिया। आज भी छात्रों को बाहर जाने से रोका नहीं जा सकता, पर स्यापा छोड़कर ऐसे प्रयास तो हो सकते हैं, ताकि कम से कम संख्या में छात्रों को विदेश जाना पड़े, इसके लिए प्राथमिक रूप से शिक्षा बजट बढ़ाने की जरूरत है। शिक्षा के बजट को तीन प्रतिशत से बढ़ाकर तुरंत छह फीसदी करने की जरूरत है। साथ ही, अपने यहां जो स्तरीय उच्च शिक्षण संस्थान हैं, उनको विस्तार व सुधार करने से ज्यादा स्वायत्तता देनी पडे़गी। अच्छे शिक्षकों को राष्ट्र-निर्माता के रूप में अधिक सम्मान देना पडे़गा। ऐसे बहुत से उपाय हैं, जो उच्च शिक्षा में सुधार के लिए किए जा सकते हैं।

जिनके पास पैसा है, वे तो विदेश पढ़ने अवश्य जाएंगे। उनके जाने पर ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए। विदेश में वेतन भी ज्यादा मिलता है, तो भारत से जाने वाले अगर वहां कमाकर एक हिस्सा भारत में भेजें, तो यह भी फायदेमंद है। देश में तीन लाख रुपये कमाने से अच्छा है कि विदेश में रहकर तीन करोड़ रुपये कमाए जाएं और उनमें से एक करोड़ रुपये स्वदेश भेज दिए जाएं, इससे भी राष्ट्रीय आय बढ़ेगी।

भारतीय युवाओं का उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना और वहीं पर बस जाना चिंताजनक है। विदेश जाने वाले योग्यतम लोगों को वापस लाने के प्रयास जरूर करने चाहिए। ऐसा चीन ने किया है। उसने विदेश जाने वाली अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को बेहतर सुविधाएं, आवास, परिवेश व वेतनमान देकर वापस बुला लिया और इसका उसे भरपूर लाभ मिला। चीन आज एआई और आर्थिक विकास के अनेक क्षेत्रों में भारत से कम से कम दस साल आगे है। भारत भी अगर चीन की तर्ज पर अपने लोगों को स्वदेश आमंत्रित कर पाए, तो इसके विकास की रफ्तार दोगुनी हो सकती है। पर जिनकी सालाना तनख्वाह विदेश में करोड़ों में है, क्या उन्हें भारत में रोकने के प्रबंध संभव हैं? चीन ने इस पर समय रहते सोचा और आज वह फायदे में है।

दूसरी ओर, हमें विदेशी छात्रों को अपने यहां आकर्षित करने के लिए ज्यादा प्रयास करना चाहिए। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने एक ‘स्टडी इंडिया पोर्टल’ छह महीने पहले शुरू किया है। इसमें देश के सर्वश्रेष्ठ सौ संस्थानों के पेज बनाए गए हैं, जहां विदेशी छात्र अपनी पसंद के पाठ्यक्रम चुन सकते हैं। आज विदेशी छात्रों को देने के लिए हमारे संस्थानों व सरकार के पास क्या है? क्या यहां के शिक्षकों या प्रोफेसरों को इसकी कोई चिंता है कि छात्र आखिर क्यों विदेश जा रहे हैं? अच्छे प्रोफसर भी तो विदेश में अवसर तलाशते रहते हैं।

एक पहलू यह भी है कि भारत में भी जो विश्वस्तरीय संस्थान हैं, उनमें प्रवेश के लिए पर्याप्त सीटें नहीं हैं। ऐसे संस्थान सभी को तो प्रवेश नहीं दे सकते। विगत वर्षों में कुछ अच्छे निजी संस्थान भी विकसित हुए हैं, जिनका वार्षिक शुल्क पचास लाख रुपये तक है और वे विश्वस्तरीय शिक्षा दे रहे हैं। फिर भी लोग विदेश जाते हैं, क्योंकि वहां उनका वैश्विक नेटवर्क बनता है और आसानी से रोजगार भी मिल जाता है। विदेश जाने की अनेक वजहें हैं, मगर हमें अपना ध्यान इस बात पर लगाना चाहिए कि विदेश जाने वाले हमारे छात्र लौटकर आएं और विदेशी छात्रों का पढ़ने के लिए भारत आने का सिलसिला बढ़े।

जिस प्रकार अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश अपने यहां काम करने के लिए विदेशी छात्रों को 2-3 साल का वीजा प्रस्तावित करते हैं, ठीक उसी तरह भारत भी कर सकता है। इससे दुनिया में अनेक देशों के युवा भारत की ओर आकर्षित होंगे। एक समय बड़ी संख्या में अफ्रीका व एशियाई देशों के छात्रों की पहली पसंद भारत ही था। भारत को इन देशों के छात्रों को लुभाने के लिए प्रचार करना चाहिए। ठीक उसी तरह, जैसे भारत में दूसरे विकसित देशों के संस्थान करते हैं।

शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण ढंग से होना चाहिए। हमारी सरकारों, दूतावासों, विश्वविद्यालयों और श्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों के बीच समन्वय बढ़ना चाहिए। विदेश से छात्रों के आने से देश को अर्थिक लाभ भी होगा। अनेक देशों की सरकारें अपने शिक्षण संस्थानों के साथ मिलकर दूसरे देशों में आक्रामक ढंग से खूब प्रचार-प्रसार और व्यापार कर रही हैं। भारत में भी मेट्रो शहरों के आस-पास नॉलेज विलेज विकसित करने चाहिए। हमारे सामने दो तरह के मॉडल हैं, जिन पर विचार किया जा सकता है।

जैसे दुबई में ‘नॉलेज विलेज’ है, 15 साल पहले मैं वहां गया था। ध्यान रहे, दुबई से सीखकर ही गुजरात की गिफ्ट सिटी में राज्य सरकार ने बड़े-बड़े भवन बना दिए और विदेशी शिक्षा संस्थानों को आमंत्रित किया। वहां शिक्षण संस्थानों को भूमि खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।

उधर, दुबई के नॉलेज विलेज में दुनिया के बीस-पच्चीस विदेशी विश्वविद्यालय सेवाएं दे रहे हैं। हम भी ऐसा कर सकते हैं। संस्थानों को अधिकतम स्वायत्तता देनी पडे़गी और पाबंद भी करना होगा कि शिक्षा शुल्क से आया अतिरिक्त पैसा भारत में ही शिक्षा में लगेगा।
सिंगापुर का भी एक मॉडल है।

उसने अपने यहां ऐसे विशिष्ट वैश्विक शिक्षण संस्थानों को भी आमंत्रित किया, जो कहीं जाना पसंद नहीं करते थे। संस्थानों की स्थापना को इतना आसान बना दिया कि अच्छे संस्थान आए और सिंगापुर के आकर्षण की वजह बन गए। भारत के पास जगह की कोई कमी नहीं है, हम अगर ठान लें, तो आसानी से कई स्मार्ट नॉलेज सिटी विकसित कर सकते हैं, जहां विकसित देशों की तुलना में शिक्षा भी किफायती हो सकती है और भारत विकसित देशों से प्रतिस्पद्र्धा भी कर सकता है।

 

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