अमेरिका जब-जब भारत से टकराता है मुँह की खाता है,कैसे?

अमेरिका जब-जब भारत से टकराता है मुँह की खाता है,कैसे?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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आपने गौर किया होगा कि अमेरिका इतना कुछ बोल रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी खुद बोल क्यों नहीं रहे हैं। पीएम मोदी अक्सर सार्वजनकि मंचों से अपने विचारों को प्रखर तरीके से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन बात जब अंतरराष्ट्रीय राजनीति की आती है तो वे संयम को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लेते हैं।  डोनाल्ड ट्रंप के बारे में दुनिया ये समझ ही नहीं पा रही है कि इसका करे क्या? ये सवेरे कुछ बोलता है, शाम को कुछ सोचता है औऱ रात को कुछ और ही करता है। इसके सोचने, समझने और कहने व करने में कोई कनेक्शन नहीं है।

1. 1962 के भारत चीन जंग के बाद भारत का अन्न भंडार चिंताजनक था। 1965 में मॉनसून कमजोर रहा। देश में अकाल की नौबत आ गई। इसी दौरान मौके का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने भारत हमला कर दिया। यह वो दौर था जब अमेरिका पीएल-480 स्कीम के तहत हमें गेहूं की सप्लाई करता था। इस लड़ाई के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्रीजी को धमकी दी कि अगर युद्ध नहीं रुका तो अमेरिका का गेहूं भेजना बंद कर दिया जाएगा। जॉनसन की धमकी से बिना डरे भारत के तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि बंद कर दीजिए गेहूं देना. इतना ही नहीं, उन्होंने अमेरिका से गेहूं लेने से भी साफ इनकार कर दिया था। यह दिखाता है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा के लिए कदम उठाए>

2. 1971 का वो साल जब पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे। पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान को भारत के सामने सरेंडर करना पड़ा था। लेकिन पाकिस्तान को हराना और उसके दो टुकड़े करना इतना आसान नहीं था। ये वो दौर था जब अमेरिका और दूसरे बड़े देश खिलाफ में खड़े हो गए थे। ये वो समय था जब पूरी दुनिया में भारत अकेला पड़ गया था। तब रूस ने भारत का साथ दिया और अपनी दोस्ती निभाई।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े मिलिट्री सरेंडर के तहत पाकिस्तान ने भारतीय जवानों के सामने हथियार डाल दिए। अमेरिका इस लड़ाई में पाकिस्तान के साथ था वहीं वो इस लड़ाई में चीन को भी साथ मिलाकर भारत को दबाना चाहता था। उसे डर था कि कहीं ईस्ट पाकिस्तान की आजादी में भारत का हाथ रहा तो भारत बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा। साथ ही एशिया में रूस का प्रभाव भी बढ़ने लगेगा। राष्ट्रपति निक्सन ने चीन को भारत से युद्ध के लिए उकसाया। लेकिन रूस चीन को पहले ही आगाह कर चुका था कि अगर उसने भारत पर आक्रमण किया तो उसे इसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। 9 दिसंबर को अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन ने एयरक्रॉफ्ट कॉरियर यूएसएस इंटरप्राइजेज को बंगाल की खाड़ी में भेज दिया।

उस समय तक अमेरिका को लग रहा था कि चीन भारत पर अटैक करेगा। लेकिन चीन रूस की धमकी की वजह से युद्ध में नहीं कूदा। 10 दिसंबर को ब्रिटेन का एयरक्रॉफ्ट कॉरियर ईगल भी भारत को घेरने के इरादे से चल पड़ा। तब रूस अपने जहाजों के बेड़े के साथ बंगाल की खाड़ी में उतर जाता है और ब्रिटेन के एयरक्रॉफ्ट ईगल का मुकाबला करने के लिए अपनी न्यूक्लिर सबमरीन मिसाइल को भी उतार देता है। रूस की हर मिसाइल के निशाने पर अमेरिकी एयरक्रॉफ्ट था। 1917 का युद्ध भारत के सबसे बड़े विजय की कहानी कहता है।

3. 1974 में भारत ने परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चौंका दिया। भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत को परमाणु सामग्री और ईंधन आपूर्ति पर रोक लगा दी। साथ ही भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये। इससे भारत और अमेरिका के संबंध में काफी कड़वाहट ला दी। भारत ने इन दबावों के सामने झुकने से इनकार किया और स्वदेशी तकनीकी विकास, वैकल्पिक साझेदारियों, और अपनी परमाणु नीति में दृढ़ता के साथ अमेरिका को जवाब दिया।

4. 1998 के साल में भारत में पोखरण-II परमाणु परिक्षण का कार्यक्रम चल रहा था। अमेरिकी सैटेलाइट भारत पर नजर रखते थे कि भारत में क्या गतिविधियां चल रही हैं। भारत को लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। पोखरण-II के दौरान अमेरिका ने बहुत कोशिश की कि भारत में चल रही हलचल को वो पता कर ले। भारत ने जिस दिन दुनिया को ये बताया कि उसने परमाणु परीक्षण कर लिया है। इसके साथ भारत उन देशों में शुमार हो गया जिनके पास परमाणु शक्ति हैं। दुनिया के साथ अमेरिका भी हैरान रह गया।

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर दो दो परमाणु बम गिरा चुका अमेरिका भारत के परमाणु शक्ति बनने से नाराज हुआ। उसने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए। ये प्रतिबंध ग्लेन संशोधन के तहत लगाए गए जो 1994 के आर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट का हिस्सा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने इन प्रतिबंधों के सामने झुकने से इनकार किया।

भारत ने स्पष्ट किया कि परमाणु परीक्षण उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक थे। खासकर तब जब भारत के पड़ोसी चीन और पाकिस्तान जैसे देश हों। भारत ने दुनिया के दूसरे देशों से अपने संबंध बेहतर किए। इसका अंजाम था कि कुछ ही महीनों के अंदर अमेरिका ने पल्टी मारी और उसने जितने प्रतिबंध भारत पर लगाए थे। वो सभी हटा लिए। अमेरिका को लगने लगा था कि भारत को अलग-थलग करने की नीति प्रभावी नहीं थी।

5. भारत संग 2005 में हुए परमाणु समझौता को भला कौन भूल सकता है जिसके लिए अमेरिका ने अपने संविधान में संशोधन तक किए थे। जिसके बाद के वर्षों में भारत अमेरिका की प्रथामिकता सूचि में उचित स्थान रखने लगा। परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए बिना ही असैनिक परमाणु समझौता भारत के साथ हुआ था। वरना किसी भी देश को असैनिक परमाणु समझौता साइन करने से पहले परमाणु अप्रसार संधि पर भी हस्ताक्षर करने होते थे।

6. मार्च 2016 में भारत ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन यानी डब्ल्यूटीओ में अमेरिकी एच-1B वीजा नीतियों को चुनौती देकर अपने आईटी प्रोफेशनल्स के हितों की रक्षा की। अमेरिका डब्ल्यूटीओ में ये केस हार जाता है।

7. कोविड 19 के दौर में पूरी दुनिया में वैक्सीन की किल्लत थी। पूरी दुनिया को वैक्सीन सप्लाई करने वाला या जहां से सप्लाई चेन बनी थी वो भारत ही था। कोविड 19 महामारी के दौरान भारत ने अमेरिकी निर्यात प्रतिबंध हटवाए और पूरी दुनिया को वैक्सीन सप्लाई की। ट्रंपप ने अमेरिकी न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज से बातचीत के दौरान कहा- नरेंद्र मोदी ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के मामले में हमारी मदद की है, वह काफी अच्छे हैं।

उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए कहा कि मोदी महान हैं, बहुत अच्छे इंसान हैं। ब्राजीली राष्ट्रपति जेर बोलसोनारो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें इस मदद की तुलना हनुमान द्वारा लाई गई संजीवनी से कर दी थी।

8. 2022 में अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने ईरान और रूस से तेल आयात जारी रखा। भारत ने साफ किया कि देश की एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिए जो सबसे सरल रास्ता है उसे अपनाया जाएगा।

9. रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम की खरीदारी पर अमेरिका की तिरछी नज़रें रही हैं। अमेरिकी कांग्रेस की “कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस” की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि “रूस में बने एस-400 एयर डिफ़ेंस सिस्टम ख़रीदने के भारत के अरबों डॉलर के सौदे के कारण अमेरिका ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवरसरीज़ थ्रू सैंक्शन्स एक्ट’ यानी (CAATSA) के तहत भारत पर पाबंदियां भी लगाने की बात सामने आई।

लेकिन फिर भी भारत ने रूस से एस 400 मिसाइल का सौदा पूरा कियाष काट्सा प्रतिबंधों से भी बचा और रणनीतिक स्वतंत्रता को कायम रखा। अमेरिका कहता रह गया कि एस 400 नहीं खरीदो। लेकिन भारत ने ये डील की और आपने हाल ही में भारत के सुदर्शन चक्र की ताकत देखी।

10. अब ट्रंप ने 25 प्रतिशत के टैरिफ का ऐलान किया है। ये टैरिफ 7 अगस्त से प्रभावी होंगे। इस बार भी भारत अमेरिका की ट्रेड डील की मनमानी शर्तें नहीं मान रहा है। पीएम मोदी का रुख बताता है कि वे ट्रंप के बड़बोलेपन को गंभीरता से लेने की बजाए बड़ा देश बड़ी सोच की नीति पर चल रहे हैं। वैसे भी पीएम मोदी अक्सर अपने शब्दों से ज्यागा अपने काम से जवाब देने के लिए जाने जाते हैं।

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