बिहार में कांग्रेस क्यों नहीं छू पाई दहाई का अंक?

बिहार में कांग्रेस क्यों नहीं छू पाई दहाई का अंक?

कांग्रेस ने डुबा दी महागठबंधन की नैया

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना के बीच जैसे-जैसे नतीजे सामने आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे महागठबंधन का बेहद खराब प्रदर्शन दिख रहा है। वह 50 का आंकड़ा भी नहीं छू पा रही है। खुद आरजेडी का प्रदर्शन बेहद खराब दिख रहा है। वहीं, कांग्रेस पर भरोसा करना महागठबंधन की बड़ी गलती दिख रही है। उसे महज 5 सीट मिलती दिख रही है। कांग्रेस को आरजेडी ने 61 सीटें दी थीं, जिसका प्रदर्शन सबसे खराब दिख रहा है।

मौजूदा आंकड़ों को देखें तो कांग्रेस ने हमेशा से महागठबंधन की नैया ही डुबाई है। एक्सपर्ट का कहना है कि बिहार में फिलहाल कांग्रेस का जनाधार तकरीबन खत्म हो चुका है। वह एक तरह महज परजीवी पार्टी बनकर रह गई है। इसके पीछे सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार में कांग्रेस की जमीन तकरीबन सिमट चुकी है। वह मतदाताओं को रिझा नहीं पाई। पिछली बार भी कांग्रेस ने महागठबंधन की नैया डुबा दी थी।

2020 में 70 सीटों में 19 ही जीती थीं

2020 में कांग्रेस के पास 19 सीटें थीं, तब पार्टी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस बार कांग्रेस ने 61 उम्‍मीदवारों को मैदान में उतारा और वह महज 6 सीटों पर ही बढ़त मिलती दिख रही है। ऐसे में पार्टी का स्‍ट्राइक रेट 20% से भी नीचे दिख रहा है। ऐसे में तेजस्वी का कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा करना सही साबित होता नहीं दिख रहा है।

2020 में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 27 फीसदी ही

पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन देखें तो पार्टी का स्ट्राइक रेट बेहद खराब रहा था। 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह केवल 19 सीटें ही जीत पाई। 27% के बेहद कम स्ट्राइक रेट के साथ कांग्रेस का प्रदर्शन महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों की तुलना में सबसे खराब रहा था।

बिहार चुनाव में बेहद आक्रामक दिखे थे राहुल

बिहार चुनाव से पहले राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा के दौरान काफी आक्रामक नजर आए थे। SIR का मुद्दा भी उन दिनों काफी गरम था और राहुल, एनडीए के खिलाफ एक नैरेटिव सेट करने में कुछ हद तक कामयाब दिख भी रहे थे.। हालांकि, वोटर अधिकार यात्रा के दौरान बने माहौल को वो महागठबंधन के पक्ष में बरकरार नहीं रख पाए।

बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना के बीच जैसे-जैसे नतीजे सामने आ रहे हैं, महागठबंधन का प्रदर्शन बेहद खराब दिख रहा है। वह 50 सीटों का आंकड़ा भी नहीं छू पा रहा है, और खुद आरजेडी का प्रदर्शन भी उम्मीद से काफी नीचे है। वहीं, कांग्रेस पर महागठबंधन का अधिक भरोसा करना अब एक बड़ी गलती साबित होती दिख रही है, क्योंकि उसे महज 5 सीटें ही मिलती दिख रही हैं। आरजेडी ने कांग्रेस को 61 सीटें दी थीं, लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन अब तक सबसे खराब नजर आ रहा है।

वर्तमान आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस का प्रदर्शन महागठबंधन के लिए हमेशा एक बड़ी चिंता का विषय रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में कांग्रेस का जनाधार अब लगभग खत्म हो चुका है और वह एक तरह से महज परजीवी पार्टी बनकर रह गई है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस बिहार में अपनी जमीन गंवा चुकी है और वह मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाई है। पिछली बार भी 2020 में कांग्रेस ने महागठबंधन की नैया डुबो दी थी।

राहुल गांधी का आक्रामक रुख भी नहीं पड़ा असर

बिहार चुनाव से पहले राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा के दौरान आक्रामक रुख अपनाया था, और एसआईआर (समान न्याय, समान अधिकार) जैसे मुद्दे को लेकर वह एनडीए के खिलाफ एक नैरेटिव सेट करने में कुछ हद तक कामयाब भी हो रहे थे। हालांकि, राहुल गांधी इस माहौल को महागठबंधन के पक्ष में बनाए रखने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए, और इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा।

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