क्यों बदलते चले गए जगदीप धनखड़?

क्यों बदलते चले गए जगदीप धनखड़?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद से ही जगदीप धनखड़ चर्चाओं में हैं। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि आखिर धनखड़ ने इस्तीफा क्यों दिया। भले ही उन्होंने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य ठीक नहीं होने को वजह बताया हो, लेकिन संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत में अचानक इस्तीफा देना कई सवाल खड़े कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि पिछले साल दिसंबर में हुई एक घटना के बाद धनखड़ के तेवर बदल गए थे। दरअसल, राज्यसभा में 10 दिसंबर, 2024 को कांग्रेस, तूणमूल कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के 60 से ज्यादा सांसदों ने धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि संसद की कार्यवाही के दौरान उनकी निष्पक्षता में कमी है। वह खुलकर सरकार का पक्ष लेते हैं, लेकिन विपक्ष को ज्यादा बोलने का मौका नहीं मिलता।

11 दिसंबर को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए धनखड़ के खिलाफ स्कूल के हेडमास्टर जैसा व्यवहार करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि धनखड़ सरकार को 10 मिनट बोलने के लिए देते हैं तो विपक्ष को सिर्फ पांच मिनट का ही समय दिया जाता है। हालांकि, इस अविश्वास प्रस्ताव में कई तरह की खामियां होने का दावा करते हुए खारिज कर दिया गया था, लेकिन इतिहास में पहली बार राज्यसभा के किसी सभापति के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था।

यह धनखड़ के खिलाफ बड़ा झटका माना गया, क्योंकि राज्यसभा के सभपति से पक्ष और विपक्ष, दोनों के लिए एक जैसे रवैया की अपेक्षा की जाती है। धनखड़ राज्यसभा में अपनी कार्यशैली को लेकर न सिर्फ विपक्षी सांसदों के लगातार निशाने पर रहे, बल्कि सूत्रों के अनुसार, सरकार के भी कई सांसद उनके द्वारा राज्यसभा में विपक्ष के खिलाफ कड़े बर्ताव को लेकर असहज थे। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल होने के समय में भी धनखड़ का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से टकराव होता रहता था। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ खुलेआम निशाना साधने से नहीं चूकते थे। हालांकि, उस समय धनखड़ को इसका फायदा भी मिला और उन्हें 2022 में उपराष्ट्रपति बना दिया गया।

फिर कैसे बदल गए धनखड़

पहली बार किसी राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद जगदीप धनखड़ में बदलाव आने लगा। धीरे-धीरे विपक्ष को लेकर उनका रवैया संसद में बदलता रहा। कई बार राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिाकर्जुन खरगे, जयराम रमेश समेत अन्य सीनियर नेताओं के साथ उनका मजाकिया अंदाज सामने आया, जिससे लगने लगा कि अब धनखड़ विपक्ष के साथ लगातार टकराव के बजाए उनको साथ लेकर संसद चलाने की ओर बढ़ रहे हैं।

कई बार विपक्षी सांसदों को ज्यादा तवज्जो देते हुए दिखाई दिए और खुले मंचों पर सरकार की एक तरह से आलोचना की। हालांकि, इसके बाद भी बीच-बीच में कई बयानों को लेकर वे विपक्ष के निशाने पर बने रहे।

बताया जा रहा है कि पिछले एक महीने से सरकार और धनखड़ के बीच दूरियां बढ़ गई थीं। मॉनसून सत्र शुरू होने से चार पांच दिन पहले सरकार ने धनखड़ को बता दिया था कि वह कैशकांड में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा व राज्यसभा में महाभियोग चलाने के लिए प्रस्ताव ला रही है। इसके लिए राहुल गांधी समेत बड़ी संख्या में लोकसभा के सांसदों के साइन तक करवा लिए गए थे, लेकिन धनखड़ ने आगे बढ़ते हुए राज्यसभा में विपक्षी नेताओं का इसको लेकर दिया गया प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

जस्टिव वर्मा मामले ने बढ़ा दीं और दूरियां

सरकार जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को पहले लोकसभा में पेश करके और फिर राज्यसभा में लाने वाली थी। इससे इसका श्रेय सरकार को मिलता, लेकिन धनखड़ ने विपक्षी सांसदों के प्रस्ताव को स्वीकार करके सरकार को झटका दे दिया। सूत्रों के अनुसार, सोमवार को मॉनसून सत्र के पहले दिन ही धनखड़ की वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से मुलाकात हुई।

इससे पहले वे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिल चुके थे। यही नहीं, जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वांस भारत के दौरे पर आए, तब भी धनखड़ और सरकार में टकराव देखने को मिला। जेडी वांस से धनखड़ बैठक करना चाहते थे। इसके पीछे उनका तर्क था कि वे उपराष्ट्रपति जेडी वांस के समकक्ष हैं, इसलिए उनका हक है। हालांकि, सरकार ने इसे भी मानने से इनकार कर दिया।

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