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भाजपा के मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस में फिर क्यों चले गये? - श्रीनारद मीडिया

भाजपा के मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस में फिर क्यों चले गये?

भाजपा के मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस में फिर क्यों चले गये?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 

 

पश्चिम बंगाल में भाजपा को लगातार झटके पर झटके मिल रहे हैं। पहले विधानसभा चुनावों में पार्टी अपने लक्ष्य 200 सीटों से काफी दूर रह गयी। उसके बाद चुनावी हिंसा में भाजपा के कई कार्यकर्ता मारे गये और अब पार्टी के वह नेता जोकि तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये थे, भगवा दल का साथ छोड़ कर जाने लगे हैं। जिस तरह मुकुल रॉय 2017 में तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले पहले बड़े नेता बने थे उसी तरह मुकुल रॉय भाजपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में वापस लौटने वाले पहले बड़े नेता भी बन गये। हम आपको बता दें कि वर्तमान में मुकुल रॉय भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के साथ ही पार्टी के विधायक भी हैं। भाजपा ने पूर्व राज्यसभा सदस्य मुकुल रॉय और उनके बेटे को विधानसभा चुनाव लड़ाया था, मुकल रॉय तो चुनाव जीत गये लेकिन उनका बेटा शुभ्रांशु चुनाव हार गया था।

ममता ने दिया भाजपा को संदेश

ममता बनर्जी अपनी सभी महत्वपूर्ण घोषणाएं करने के लिए संवाददाता सम्मेलन अपने घर पर ही बुलाती हैं लेकिन मुकुल रॉय की पार्टी में वापसी कराने के लिए वह तृणमूल भवन पहुँचीं ताकि भाजपा को यह संदेश दिया जा सके कि उसे एक बड़ा झटका दिया गया है और यह सिलसिला यहीं खत्म होने वाला नहीं है। विधानसभा चुनावों से पहले गृहमंत्री अमित शाह का दावा सही होता दिख रहा था कि चुनावों तक ममता दीदी अकेली रह जायेंगी लेकिन अब चुनावों बाद ऐसा लग रहा है कि भाजपा में बस पुराने नेता ही बचेंगे क्योंकि जो लोग तृणमूल से आये थे उनमें से अधिकांश ने अपनी मूल पार्टी में वापसी के लिए अर्जी लगा दी है।

तृणमूल कांग्रेस के गुप्त मिशन पर थे मुकुल रॉय!

बात मुकुल रॉय की ही करें तो वह जबसे भाजपा में आये थे तबसे तृणमूल कांग्रेस सरकार के खिलाफ भले उन्होंने काफी कुछ बोला हो लेकिन ममता बनर्जी के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोला था। पंचायत चुनावों में अपनी रणनीति की बदौलत उन्होंने भाजपा का प्रदर्शन सुधारा और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन हासिल किया। भाजपा से सबसे बड़ी गलती यह हुई कि स्थानीय पार्टी नेताओं से ज्यादा मुकुल रॉय की बात सुनी गयी और उन्हें तवज्जो दी गयी जबकि वह भाजपा में आने के बाद से ही एक तरह से तृणमूल कांग्रेस के एजेंट के रूप में ही कार्य कर रहे थे। जरा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से दिया गया ‘खेला होबे’ का नारा याद कीजिये।

भाजपा ने चुनाव प्रचार पूरी तरह भगवामय कर दिया था लेकिन ममता बनर्जी पूरे विश्वास के साथ कह रही थीं कि ‘खेला होबे’। माना जा सकता है कि मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के संपर्क में रहे होंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि तृणमूल कांग्रेस जिन विधायकों के खराब प्रदर्शन या खराब छवि के कारण टिकट काटने वाली थी उनको रणनीति के तहत भाजपा में शामिल करा कर चुनाव लड़ा दिया गया और उन सीटों पर भाजपा की हार हो गयी। चुनाव परिणाम के अगले दिन से ही मुकुल रॉय जिस तरह भाजपा से असंतुष्ट हो गये थे उससे उनकी नीयत पर कई सवाल खड़े होते हैं। खैर यह एक अंदाजा भर है संभव है कारण कुछ और भी रहे हों।

मुकुल रॉय को भाजपा पर गुस्सा क्यों आया ?

इस तरह की बातें कही जा रही हैं कि मुकुल रॉय को उम्मीद थी कि यदि भाजपा की सरकार बनेगी तो उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। सरकार नहीं बनी तो मुकुल रॉय को लगा कि उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया जायेगा। लेकिन भाजपा ने यह पद नंदीग्राम विधानसभा सीट पर ममता बनर्जी को हराने वाले शुभेंदु अधिकारी को दे दिया। अब यह बात मुकुल रॉय को कहां पचने वाली थी। उन्हें लगा कि अभी कल जिस नेता को मैं तृणमूल से तोड़कर भाजपा में लाया आज उसे ही मेरा बॉस बना दिया गया।

मुकुल रॉय इससे नाराज हो गये और भाजपा की बैठकों और कार्यक्रमों से खुद को दूर कर लिया। पार्टी में वह अकेले पड़ते चले जा रहे थे क्योंकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष से उनकी पहले ही नहीं बनती थी। पार्टी के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय को वह अपना गुरु मानते थे लेकिन अब भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय को बंगाल से दूर कर दिया है तो मुकुल रॉय को तृणमूल कांग्रेस में जाना ही उचित लगा। अभिषेक बनर्जी जिस तरह मुकुल रॉय की बीमार पत्नी को देखने अस्पताल आये और उनके बेटे के लगातार संपर्क में रहे उसने दोनों परिवारों के बीच की कथित दूरी को खत्म कर दिया।

भाजपा ने भी मनाने का प्रयास नहीं किया

भाजपा विधानसभा चुनावों में मुकुल रॉय की ताकत देख चुकी थी और जब यह लगा कि जो व्यक्ति अपने बेटे को भी जिता नहीं पाया अब तक वह सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें ही कर रहा था, तो पार्टी ने उनको उनके हाल पर छोड़ दिया और मनाने के ज्यादा प्रयास नहीं किये। बताया जा रहा है कि पिछले सप्ताह मुकुल रॉय ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से फोन पर चार बार बात की। भाजपा के पास जब इस तरह की खबरें आईं कि मुकुल रॉय चुनाव से पहले ही तृणमूल कांग्रेस में लौटना चाहते थे तो पार्टी आश्चर्यचकित रह गयी और उन्हें मनाने का प्रयास नहीं किया। शिष्टाचार के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरूर मुकुल रॉय को फोन कर उनकी पत्नी का हाल जाना।

कौन हैं मुकुल रॉय ?

हम आपको याद दिला दें कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में तृणमूल कांग्रेस ने पूर्व रेल मंत्री मुकुल रॉय को छह साल के लिए बाहर कर दिया था। तृणमूल कांग्रेस में मुकुल रॉय का कद कभी ममता बनर्जी के बाद दूसरे नंबर का हुआ करता था। यदि ममता बनर्जी से किसी की बात नहीं हो पाये तो मुकुल रॉय तक यदि अपनी बात पहुँचा दी तो इसका मतलब यह था कि ममता बनर्जी तक बात पहुँच जायेगी। अब ममता बनर्जी ने जिस तरह मुकुल रॉय की पार्टी में वापसी के बाद उनका पुराना रुतबा बहाल करने की बात कही है

वह दर्शाता है कि मुकुल रॉय भाजपा में रहते हुए भी तृणमूल सुप्रीमो के संपर्क में बने हुए थे। देखा जाये तो मुकुल रॉय के राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत भी ममता बनर्जी के साथ ही हुई थी। ममता बनर्जी और मुकुल रॉय यूथ कांग्रेस में साथ ही काम करते थे। मुकुल रॉय 1998 से ही बंगाल की राजनीति में हैं और तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्य होने के साथ ही वह कई अहम जिम्मेदारियों को संभाल चुके हैं। मुकुल रॉय का नाम नारदा स्टिंग केस में भी आया था लेकिन अब तक उनके खिलाफ शिकंजा नहीं कसा गया था।

बहरहाल, जिस तरह से अभिषेक बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद से भाजपा में तोड़फोड़ शुरू कर दी है और टीएमसी को अन्य राज्यों में मजबूत करने का काम आगे बढ़ाने का काम शुरू किया है, देखना होगा कि उसके क्या परिणाम तृणमूल कांग्रेस को मिलते हैं। मुकुल रॉय की तृणमूल में वापसी अभिषेक बनर्जी से ही कराकर ममता बनर्जी ने अपने उत्तराधिकारी के बारे में भी पार्टीजनों को एक बार फिर स्पष्ट संकेत दे दिया है। जहाँ तक मुकुल रॉय की बात है तो वह कृष्णानगर उत्तर विधानसभा सीट से त्यागपत्र देंगे और वहां से तृणमूल उम्मीदवार के रूप में उनके बेटे शुभ्रांशु चुनाव लड़ेंगे जबकि मुकुल तृणमूल कांग्रेस की ओर से राज्यसभा में भेजे जा सकते हैं।

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