पहाड़ों पर ही बादल फटने की अधिक घटनाएं क्यों होती है?

पहाड़ों पर ही बादल फटने की अधिक घटनाएं क्यों होती है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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पहाड़ों पर लगातार हो रही बारिश और भूस्खलन की चिंताओं के बीच बादल फटने की भी कई घटनाएं हो चुकी हैं। बादल फटना ऐसी आपदा है, जिसमें सब कुछ केवल सेकेंडों या मिनटों में मिट्टी में मिल जाता है। अचानक आया पानी का सैलाब अपने रास्ते में आने वाली हर एक चीज को बहा ले जाता है। लेकिन आपके मन में भी सवाल आता होगा कि आखिर बादल फटते क्यों हैं? क्या ये घटनाएं प्राकृतिक आपदा हैं या इंसानों से इसका कोई संबंध भी है? क्या इसे रोका जा सकता है और बादल फटने की घटना आखिर कहते किसे हैं? आज आपको इनके जवाब देने की कोशिश करते हैं।

बादल फटने का क्या मतलब हुआ?

कई बार लोग बादल फटने की घटना को गलत समझ लेते हैं। लोगों को लगता है कि बादल फटना मतलब जैसे पानी से भरी प्लास्टिक की थैली का फटना। लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। दरअसल बादल फटने की घटना तब मानी जाती है, जब किसी इलाके में कई महीनों की बारिश सिर्फ कुछ मिनटों में हो जाती है।

इसे मापने के लिए एक पैमाना सेट किया गया है। माना जाता है कि अगर किसी इलाके में एक घंटे में 100 मिलीमीटर या उससे अधिक बारिश हो जाए, तो इसे बादल फटने कहते हैं। इससे एक छोटे से क्षेत्र में इतना अधिक पानी बरस जाता है कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है।

क्यों फटते हैं बादल?

जब नमी और गर्म हवा पहाड़ से टकराकर ऊपर उठती है और ठंडी हवा से टकराती है, तो इससे बादल बनते हैं। लेकिन कई बार ये बादल अपने अंदर समाहित पानी की बूंदों को संभाल नहीं पाते हैं और अस्थिर हो जाते हैं। इसके बाद जबरदस्त बारिश होती है और इसे बादल फटना कहते हैं।

जानकार बताते हैं कि क्लाइमेट क्राइसिस इसे और बिगाड़ रहा है, क्योंकि गर्म होती हवा ज्यादा नमी पकड़ती है। बढ़ रही मानवीय गतिविधियों के कारण 10-15 साल में होने वाली घटनाएं अब हर साल सुनाई पड़ती हैं।

पहाड़ों पर ही ज्यादा घटनाएं क्यों?

आपने बादल फटने की घटनाएं पहाड़ी इलाकों में ज्यादा देखने को मिलती हैं। दरअसल मैदानी इलाकों के मुकाबले पहाड़ की जमीन ढलावदार और संकरी होती है। ऐसे में बारिश के पानी को रिसने का समय नहीं मिलता और वह तेजी से घाटियों की ओर बहता है।

पहाड़ों की ढीली मिट्टी और भूस्खलन के कारण यह फ्लैश फ्लड में तब्दील हो जाते हैं और पानी को खतरनाक बना देते हैं। भारत में फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम 0-6 घंटे पहले तक अलर्ट दे देता है, लेकिन प्रशासन के सामने कई और चुनौतियां भी होती हैं। इस कारण इससे निपटने में अक्सर मुश्किल आती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाओं में एक दशक के भीतर तेजी से बढ़ोतरी हुई है. एक अनुमान के मुताबिक, अब उत्‍तराखंड और हिमाचल के पहाड़ों में डेढ़ गुना से ज्‍यादा बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं. बादल फटने की ज्‍यादातर घटनाएं मॉनसून की बारिश के दौरान ही होती हैं. जानते हैं कि ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी क्‍यों हो रही है? साथ ही जानते हैं कि बादल कैसे, कब और क्‍यों फटता है? विज्ञान के मुताबिक, मौसम फटने की घटना क्‍या है? बादल फटना कितना ज्‍यादा खतरनाक साबित हो सकता है? साथ ही जानते हैं कि इससे बचने के लिए क्‍या करना चाहिए?

बादल का फटना या क्लाउडबर्स्ट का मतलब, बहुत कम समय में एक सीमित दायरे में अचानक बहुत भारी बारिश होना है. हालांकि, बादल फटने की सभी घटनाओं के लिए कोई एक परिभाषा नहीं है. फिर भी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक, अगर किसी एक क्षेत्र में 20-30 वर्ग किमी दायरे में एक घंटे में 100 मिलीमीटर बारिश होती है तो उसे बादल का फटना कहा जाता है. आम बोलचाल की भाषा में कहें तो किसी एक जगह पर एक साथ अचानक बहुत बारिश होना बादल फटना कहा जाता है.

कब होती है बादल फटने की घटना

तापमान बढ़ने से भारी मात्रा में नमी वाले बादल एक जगह इकट्ठा होने पर पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं. इससे बूंदों का भार इतना ज्यादा हो जाता है कि बादल का घनत्व बढ़ जाता है. इससे एक सीमित दायरे में अचानक तेज बारिश होने लगती है. इसे ही बादल फटना कहा जाता है.
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में क्षेत्रीय जलचक्र में बदलाव भी बादल फटने का बड़ा कारण है. इसीलिए यहां बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर तेजी से बरसना शुरू कर देते हैं. दूसरे शब्‍दों में समझें तो मानसून की गर्म हवाओं के ठंडी हवाओं के संपर्क में आने पर बड़े आकार के बादल बनते हैं. हिमाचल और उत्‍तराखंड में ऐसा पर्वतीय कारकों के कारण भी होता है. इसलिए हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं ज्‍यादा हो रही हैं.

किस ऊंचाई पर फटते हैं बादल

विज्ञान के मुताबिक समझें तो बादल तब फटता है, जब नमी के साथ चलने वाली हवा एक पहाड़ी इलाके तक जाती है, जिससे बादलों का ऊर्ध्वाधर स्तंभ बनता है. इसे क्यूमुलोनिम्बस के बादलों के तौर पर भी पहचाना जाता है.
इस तरह के बादल भारी बारिश, गड़गड़ाहट और बिजली गिरने का कारण भी बनते हैं. बादलों की इस ऊपर की ओर गति को ‘ऑरोग्राफिक लिफ्ट’ भी कहा जाता है. इन अस्थिर बादलों के कारण एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश होती है. इसके बाद ये बादल पहाड़ियों के बीच मौजूद दरारों और घाटियों में बंद हो जाते हैं. बादल फटने के लिए आवश्यक ऊर्जा वायु की उर्ध्व गति से आती है. क्लाउडबर्स्ट ज्यादातर समुद्र तल से 1,000 मीटर से लेकर 2,500 मीटर की ऊंचाई तक होता है.

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