उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA का पलड़ा क्यों भारी है?

उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA का पलड़ा क्यों भारी है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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लंबे इंतजार के बाद उपराष्ट्रपति पद के चुनाव होने वाले हैं। इसे लेकर सियासी हलचल तेज गई है। बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। हालांकि पिछली बार के मुकाबले इस बार जीत की चमक फीकी पड़ सकती है। उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में संसद के सभी सदस्य सीक्रेट बैलेट में वोट डालेंगे। लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद इस वोटिंग में हिस्सा लेंगे। वैसे तो सांसद अपनी मर्जी से किसी भी उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं, लेकिन ज्यादातर सदस्य पार्टी के आदेश का पालन करते हुए अपने गुट के उम्मीदवार को ही मत देते हैं।

धनखड़ को मिले थे 75 फीसदी वोट

उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में क्रॉस वोटिंग भी बेहद आम है। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव पिछले चुनाव में बीजेपी का साथ दे चुके हैं। 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने शानदार बहुमत हासिल किया था। अपने गुट के अलावा उन्हें YSR कांग्रेस, बीजेडी का भी समर्थन मिला था। जगदीप धनखड़ को कुल 75 प्रतिशत वोट मिले थे।

जीत के लिए कितने वोट चाहिए?

वर्तमान समय की बात करें तो राज्यसभा में 239 और लोकसभा में 542 सांसद हैं। दोनों को मिलाकर सांसदों की संख्या 781 हो जाती है और उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को जीत के लिए आधे सांसदों यानी 391 वोटों की जरूरत होगी। इन आंकड़ों के अनुसार, NDA उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन की जीत लगभग तय है।

पिछली बार की तरह इस बार भी जगनमोहन रेड्डी की पार्टी YSR कांग्रेस ने सीपी राधाकृष्णन को समर्थन देने की घोषणा की है। YSRCP के पास कुल 11 सांसद (7 लोकसभा और 4 राज्यसभा में) हैं। बीआरएस के पास 4 और बीजेडी के 7 सांसद हैं, लेकिन इन पार्टियों ने अभी तक अपना पक्ष साफ नहीं किया है। आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालिवाल के भी AAP के साथ रिश्ते बेहतर नहीं हैं। ऐसे में स्वाति किसे वोट देंगी, इसपर भी सस्पेंस बना हुआ है। इसके अलावा लोकसभा में 7 निर्दलीय सांसद भी मौजूद हैं।

अगर यह सभी सांसद राधाकृष्णन को वोट देते हैं, तो उन्हें 458 वोट मिलने की उम्मीद है, जो जगदीप धनखड़ की जीत से काफी कम है। तीन साल पहले हुए चुनाव में पूर्व उपराष्ट्रपति ने 528 मतों से जीत हासिल की थी।

क्रॉस-वोटिंग से किसका खेल बिगड़ेगा?

उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के सदस्य गुप्त मतपत्रों के माध्यम से करते हैं। इसके लिए कोई व्हिप जारी करने का प्रावधान भी नहीं है। मतलब, सांसद जहां चाहे, अपनी मर्जी से वोट डाल सकते हैं। लेकिन, आमतौर पर ये सांसद अपनी-अपनी पार्टी लाइन के हिसाब से ही वोटिंग करते आए हैं। लेकिन, ऐसे चुनावों में क्रॉस-वोटिंग की घटनाएं भी सामान्य हैं, इसलिए अंतिम नतीजे के बारे में सटीक अंदाजा लगाना आसान नहीं है। इस बीच गैर-एनडीए और गैर-इंडिया ब्लॉक वाली पार्टियों ने जिस तरह अलग-अलग स्टैंड लिए हैं, उससे दोनों खेमे की धड़कनें बढ़ गई हैं।

10 सांसद किस ओर झुकेंगे, अभी साफ नहीं

इनके अलावा लोकसभा में सात निर्दलीय सांसद हैं, जो किस तरफ का रुख करेंगे यह अभी साफ नहीं है। इसी तरह से आम आदमी पार्टी (AAP) की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल का रुख क्या रहेगा, यह भी देखने की बात है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल के दिल्ली सीएम रहते उनकी जिस तरह से मुख्यमंत्री आवास में कथित पिटाई हुई थी, उससे वह पार्टी से काफी दूर हो चुकी हैं। उनके बीजेपी में जाने की अफवाहें भी कम नहीं उड़ी हैं। ऐसे ही अकाली दल और मिजोरम की जेडपीएम को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है। इनके भी एक-एक सांसद हैं।

जीत के लिए चाहिए 386 एमपी का समर्थन

इस समय लोकसभा में 542 और राज्यसभा में 239 सांसद हैं और सभी वोट (कुल 781) डाल सकते हैं। मतलब, जीत के लिए किसी भी प्रत्याशी को 391 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता है। लेकिन, चुनाव से एक दिन पहले जिस तरह से ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक की बीजेडी (BJD) और तेलंगाना के पूर्व सीएम के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने मतदान से अलग रहने की बात की है तो वोट डालने वाले संभावित सांसदों की संख्या घटकर मात्र 770 रह गई है। मतलब, राधाकृष्णन या सुदर्शन को जीत के लिए सिर्फ 386 सांसदों का समर्थन चाहिए।

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