लालू यादव का परिवार सर्कुलर रोड वाला आवास क्यों नहीं खाली करता?

लालू यादव का परिवार सर्कुलर रोड वाला आवास क्यों नहीं खाली करता?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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बिहार के इकलौते पूर्व मुख्यमंत्री कपल लालू यादव और राबड़ी देवी को नीतीश कुमार सरकार ने 10, सर्कुलर रोड का बंगला खाली करके 39, हार्डिंग रोड के नए सरकारी आवास में जाने कहा है। राबड़ी देवी को विधान परिषद में विपक्ष की नेता की हैसियत से यह बंगला आवंटित किया गया है,

लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेताओं के बयान से यह स्पष्ट है कि लालू का परिवार 10, सर्कुलर रोड वाला घर खाली नहीं करना चाहता है। लगभग 19 साल से लालू और राबड़ी परिवार के साथ इसी बंगले में रह रहे हैं। भवन निर्माण विभाग ने चुनाव हार चुके बेटे तेज प्रताप यादव को भी घर खाली करने कहा है। कब तक बंगला बदलना या खाली करना है, यह साफ नहीं है।

विपक्षी महागठबंधन के सीएम कैंडिडेट बनकर लगातार दो विधानसभा चुनाव हार चुके लालू के बेटे तेजस्वी यादव के राजनीति में आने के बाद राजद विधानसभा में 25 विधायकों के साथ अपने सबसे निचले स्तर पर है। इससे पहले 2010 के चुनाव में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद 22 सीट ही जीती थी। सरकार से बाहर होने के बाद राजद को फरवरी 2005 के चुनाव में 74, अक्टूबर 2005 में 54, 2010 में 22, 2015 में 80 और 2020 में 75 सीटों पर जीत मिली थी। लोकसभा चुनाव में भी राजद के 4 सांसद ही जीते। कहने का मतलब यह कि लालू, तेजस्वी और राजद पहले से बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि तेजस्वी यादव और राजद की राजनीति आगे रसातल में ना चली जाए, इसके डर से लालू और राबड़ी 39, हार्डिंग रोड वाले बंगले में नहीं जाना चाहते हैं। बिहार की राजनीति में इस बंगले को मनहूस माना जाने लगा है। लालू-राबड़ी की इस आशंका की वजह पहले यहां रहे 5 नेताओं का उसके बाद का राजनीतिक करियर है। नामांकन, शपथ या विभाग संभालने के लिए भी जब राजनेता शुभ मुहुर्त और शकुन-अपशकुन का हिसाब रख रहे हैं, तो जो बंगला खराब भविष्य के लिए बदनाम हो चुका है, वहां ना जाने का खौफ समझा जा सकता है।

सर्कुलर रोड आवास से बड़ा है हार्डिंग रोड बंगला, अपशकुन का डर उससे बड़ा

राबड़ी देवी को हार्डिंग रोड पर जो आवास आवंटित हुआ है, वह उनके मौजूदा सर्कुलर रोड बंगले से काफी बड़ा है। मंत्रियों को आवंटित होने वाले आवास में यह दूसरा सबसे बड़ा बंगला है। इससे बड़ा सिर्फ एक बंगला है, जो ठीक इसके बगल में 40 नंबर है। इस बंगले में बाकी बंगलों से जगह ज्यादा है। सरकार ने हाल में इसे ठीक भी करवाया है। यहां रहे एक नेता ने बताया कि ऊपर-नीचे मिलाकर परिवार के रहने के लिए 6 कमरे हैं। बैठक के लिए छोटे-बड़े हॉल हैं। पुलिस और स्टाफ क्वार्टर के साथ-साथ मवेशियों के लिए भी जगह है। इस बंगले के अंदर एक मजार भी है।

लेकिन, प्रदेश राजद अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल ने कह दिया है कि जो करना है करेंगे, लेकिन 10 नंबर बंगला खाली नहीं करेंगे। मौजूदा बंगले से लालू-राबड़ी के लगाव का पहला कारण तो यह है कि पिछले 19 साल से इसमें रहने के दौरान परिवार की जरूरतों के हिसाब से निर्माण या बदलाव किए गए हैं। हार्डिंग रोड आवास के 6 कमरे लालू परिवार के सदस्यों के जुटने पर कम पड़ सकते हैं। बंगले में रहे नेताओं ने माना है कि जमीन या बाग-बगीचा ज्यादा हो सकता है, लेकिन रहने की व्यवस्था राबड़ी आवास में लालू परिवार के अनुरूप और बेहतर है।

39, हार्डिंग रोड वाले बंगले के मनहूस होने को लेकर नेताओं के बीच एक धारणा बनी है, क्योंकि इसमें रहे पांच मंत्रियों को दोबारा सरकार में मौका नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चंद्रमोहन राय, विनोद नारायण झा और रामसूरत राय, कांग्रेस के मदन मोहन झा और राजद नेता शमीम अहमद को नीतीश कुमार की सरकारों में मंत्री बनने के बाद यही बंगला मिला था।

कोई भी दोबारा मंत्री नहीं बन सका। चंद्रमोहन राय ने राजनीति छोड़ दी। रामसूरत राय को टिकट ही नहीं मिला। इस बंगले के आखिरी निवासी शमीम अहमद विधायक का चुनाव भी हार गए, वह भी मात्र 1443 वोट के अंतर से। मदन मोहन झा और विनोद नारायण झा ही हैं, जो अब तक सदन में टिके हैं, लेकिन वो भी दोबारा मंत्रालय तक नहीं पहुंच सके। जानते हैं उन पांच नेताओं के बारे में।

चंद्रमोहन राय, बीजेपी

बीजेपी के चंद्रमोहन राय जेपी आंदोलन के जमाने से जनसंघ और फिर भाजपा के नेता हैं। पश्चिम चंपारण की रामनगर सीट से 4 बार और चनपटिया सीट से 1 बार विधायक रहे। दो बार मंत्री रहे। 2005 में स्वास्थ्य मंत्री बने और 2010 में पीएचईडी मंत्री। 2010 में इनको 39 हार्डिंग रोड आवास मिला। 2015 के चुनाव में बीजेपी ने इनका टिकट काटा। चंद्रमोहन राय ने बेटे के लिए टिकट देने कहा, वो भी नहीं मिला। फिर उन्होंने पार्टी और राजनीति से किनारा कर लिया।

मदन मोहन झा, कांग्रेस

बिहार में कांग्रेस के बड़े नेता मदन मोहन झा दरभंगा जिले की मनीगाछी सीट से दो बार विधायक रहे। विधान परिषद में दूसरी पारी खेल रहे हैं। नीतीश की पहली महागठबंधन सरकार में 2015 से 17 तक भूमि सुधार व राजस्व मंत्री रहे। यही बंगला मिला। वो रहने नहीं आए और दफ्तर की तरह इस्तेमाल करते रहे। मदन मोहन झा ने बंगले में बने मजार को ठीक करवाया और रोज अगरबत्ती जलाने की व्यवस्था करवाई।

2022 में दूसरी बार महागठबंधन सरकार बनी, लेकिन मदन मोहन दोबारा मंत्री नहीं बन पाए। कांग्रेस ने इसके बाद उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाया और अब वो शिक्षक सीट से जीतकर एमएलसी हैं। मदन मोहन झा मानते हैं कि पीसीसी चीफ का पद राज्य सरकार में मंत्री से बड़े महत्व का है।

विनोद नारायण झा, बीजेपी

वरिष्ठ भाजपा नेता विनोद नारायण झा मधुबनी की पंडौल और बेनीपट्टी सीट से 4 बार के विधायक हैं। इस बार इनकी सीट से मैथिली ठाकुर का नाम चल रहा था, लेकिन टिकट आखिरकार झा को ही मिला। मैथिली अलीनगर से लड़ीं। दोनों जीते। 2017 में नीतीश के एनडीए में लौटने के बाद जो सरकार बनी थी, उसमें बीजेपी ने विनोद नारायण झा को पीएचईडी मंत्री बनाया था। वो 2020 का चुनाव भी जीते, लेकिन भाजपा ने मंत्री नहीं बनाया। इस बार भी विधानसभा पहुंचे बीजेपी के गिने-चुने पुराने विधायकों में वो शामिल हैं।

रामसूरत राय, बीजेपी

मुजफ्फरनगर जिले की औराई सीट से दो बार के विधायक रामसूरत राय भी मंत्री बनकर हार्डिंग रोड के इस बंगले में गए तो दोबारा मिनिस्टर नहीं बन सके। 2020 के चुनाव के बाद बनी एनडीए सरकार में रामसूरत राय को बीजेपी ने मंत्री बनाया था। कुछ समय कानून और पूरे समय राजस्व मंत्री रहे। नीतीश 2022 में महागठबंधन के साथ चले गए। लेकिन जब 2024 में लौटे तो बीजेपी ने रामसूरत राय को फिर से मौका नहीं दिया। 2025 के चुनाव में उनका टिकट भी काट दिया गया।

शमीम अहमद, आरजेडी

राबड़ी देवी को आवंटित होने से पहले 39 हार्डिंग रोड के आखिरी निवासी राजद के नेता शमीम अहमद थे। पूर्वी चंपारण की नरकटिया सीट से लगातार दो चुनाव जीते शमीम अहमद को लालू यादव और तेजस्वी यादव ने नीतीश की दूसरी महागठबंधन सरकार में 2022 में मंत्री बनाया था। पहले गन्ना विभाग के मंत्री बने और बाद में कानून मंत्री रहे। सरकार जब तक चली, तब तक मंत्री रहे। इस चुनाव में राजद ने फिर से उतारा, लेकिन 1443 वोट के अंतर से चुनाव हार गए।

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