कुंभ मेला क्यों लगता है?

कुंभ मेला क्यों लगता है?

आस्था, संस्कृति और एकता का संगम ‘महाकुंभ मेला 2025’

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17 जुलाई 2027 से 17 अगस्त 2027 कुंभ मेला नाशिक में लगेगा

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कुंभ मेले की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत की बूंदें जिन चार जगहों पर पड़ी थी वहां-वहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार का महाकुंभ खास तौर पर 144 साल बाद आए एक दुर्लभ खगोलीय संयोग के कारण बेहद महत्वपूर्ण है। मुख्य रूप से कुंभ मेले चार प्रकार के होते हैं:- कुंभ मेला, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ.

ऐसा माना जाता है कि कुंभ में शाही स्नान करने से व्यक्ति को इस जन्म के साथ ही पिछले जन्म के पापों से भी छुटकारा मिलता है। साथ ही, पितृ शांति और मोक्ष के लिए महाकुंभ में शाही स्नान करना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।

कहते हैं अमृत की पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी उज्जैन में और चौथी नासिक में जा गिरी। यही वजह है कि इन चारों स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कहते हैं जयंत जब अमृत कलश लेकर उड़ा था तो वह 12 दिनों में स्वर्ग पहुंचा था और शास्त्रों के अनुसार देवताओ का एक दिन पृथ्वी लोक के एक साल के बराबर होता है। इसलिए उस घटना के संदर्भ में कुंभ का आयोजन हर 12 साल के अंतराल में होता है। आपको बता दें कि कुंभ भी 12 होते हैं जिनमें से चार का पृथ्वीलोक पर आयोजन होता है तो बाकी आठ का आयोजन देवलोक में होता है।

महाकुंभ मेला यह आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है और इसे सभी कुंभ मेलों में सबसे पवित्र माना जाता है। आगामी महाकुंभ मेला 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 तक प्रयागराज में होने वाला है। कुंभ मेला हर 3 साल में मनाया जाता है और यह चार स्थानों पर बारी-बारी से आयोजित किया जाता है, जिसमें हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज शामिल हैं। हर एक जगह एक चक्र में कुंभ मेले की मेजबानी करता है और इस दौरान यह ध्यान रखा जाता है कि हर एक जगह पर हर 12 साल में एक बार कुंभ मेले का आयजोन जरूर किया जाए।

महाकुंभ सिर्फ प्रयागराज में ही लगता है। ये मेला 144 वर्षों बाद आयोजित किया जाता है। प्रयागराज में महाकुंभ मेला लग रहा है। प्रत्येक 12 वर्ष में प्रयागराज में पूर्ण कुंभ का आयोजन होता है। यहां आखिरी पूर्ण कुंभ 2013 में लगा था और अब 2025 में ये लगने जा रहा है। अब अगर महाकुंभ की बात करें तो ये 12 पूर्ण कुंभ के बाद लगता है। इस तरह से 144 वर्ष में एक बार महाकुंभ होता है।

कुंभ मेला शाही स्नान तिथियां
13 जनवरी 2025- पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025- मौनी अमावस्या
3 फरवरी 2025- वसंत पंचमी
12 फरवरी 2025- माघी पूर्णिमा
26 फरवरी 2025- महाशिवरात्रि

कुंभ मेले का आयोजन कब, कैसे और कहां होता है?

बृहस्पति के कुंभ राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर हरिद्वार में गंगा-तट पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है.
बृहस्पति के वृषभ राशि में प्रवेश और सूर्य-चंद्रमा के मकर राशि में आने पर प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुंभ मेला लगता है.
बृहस्पति और सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुंभ पर्व का आयोजन किया जाता है.
बृहस्पति के सिंह राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है.

महाकुंभ को सतातन धर्म में सबसे अहम और पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस आयोजन में भाग लेने से पापों से छुटकारा और मोक्ष जैसे कई आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। इस दौरान किया गया पवित्र स्नान विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है। कुंभ मेले का भी अपना अलग आध्यात्मिक महत्व होता है, लेकिन महाकुंभ की तुलना में इसे कम शक्तिशाली माना जाता है। हालांकि, बावजूद इसके लोग यहां पर भी आस्था की डुबकी लगाने आते हैं।

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