भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बहुभाषावाद क्यों महत्त्वपूर्ण है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बहुभाष्यता या बहुभाषावाद (Multilingualism) एक से अधिक भाषाओं को बोलने, समझने, पढ़ने और लिख सकने की क्षमता है। यह व्यक्तिगत या सामाजिक क्षमता हो सकती है, जो इस बात पर निर्भर करती है कि कोई व्यक्ति या समुदाय एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग करता है या नहीं। बहुभाषावाद को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि योगात्मक या घटावशील (additive or subtractive), संतुलित या प्रभुत्वशाली (balanced or dominant), अनुक्रमिक या युगपत (sequential or simultaneous)—जो इस बात पर निर्भर करता है कि भाषाओं को कैसे ग्रहण, उपयोग करने के साथ महत्त्व दिया जाता है।

भाषा संचार, अधिगम (लर्निंग) और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली साधन है। यह मानव विकास और पहचान (identity) का एक प्रमुख पहलू भी है। हालाँकि, भारत जैसे विविध और बहुभाषी देश में शिक्षा के लिये भाषा उल्लेखनीय चुनौतियाँ भी उत्पन्न कर सकती है।

शिक्षा में बहुभाषावाद क्यों महत्त्वपूर्ण है? 

  • संज्ञानात्मक विकास का संवर्द्धन: 
    • शोध से पता चलता है कि एक से अधिक भाषा सीखने से मस्तिष्क के कार्यों, जैसे स्मृति, ध्यान, समस्या-समाधान और रचनात्मकता को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • यह ‘मेटालिंग्विस्टिक अवेयरनेस’ (metalinguistic awareness) में भी सुधार कर सकता है, जो भाषा संरचनाओं एवं नियमों पर गंभीरता से मनन करने और कुशलतापूर्वक उनका उपयोग कर सकने की क्षमता है।
  • सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना: 
    • विभिन्न भाषाओं को सीखने की प्रक्रिया में छात्र विभिन्न संस्कृतियों, दृष्टिकोणों और मूल्यों से परिचित हो सकते हैं। यह उनमें अंतर-सांस्कृतिक क्षमता (intercultural competence) विकसित करने में भी मदद कर सकता है, जो विविध पृष्ठभूमि के लोगों के साथ प्रभावी ढंग से और उचित रूप से संवाद कर सकने की क्षमता है।
    • आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 22 से अधिक भाषाओं और सैकड़ों उप-भाषाओं/बोलियों (जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व है) के साथ भाषा हमारी पहचान का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
  • शैक्षणिक उपलब्धि में सुधार: 
    • अध्ययनों से लगातार पुष्टि हुई है कि जो छात्र अपनी मातृभाषा या घर में प्रचलित भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे स्कूल में उन छात्रों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं जिन्हें विदेशी या अपरिचित भाषा में शिक्षण प्रदान किया जाता है।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि वे पाठ्यक्रम सामग्री तक अधिक आसानी और आत्मविश्वास से पहुँच सकते हैं तथा अपने कौशल एवं ज्ञान को अन्य भाषाओं में स्थानांतरित कर सकते हैं।
  • सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना:
    • कई भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि प्रत्येक बच्चे को अधिगम तक समान पहुँच और अवसर प्राप्त हो, चाहे उनकी भाषाई पृष्ठभूमि कुछ भी हो। 
    • यह अल्पसंख्यक भाषा बोलने वाले लोगों के बीच अपनेपन और पहचान की भावना को भी बढ़ावा दे सकता है तथा भेदभाव और वंचना को कम कर सकता है।

बहुभाषी शिक्षा को प्रभावी ढंग से लागू करने के उपाय:

  • भाषाओं का चयन:
    • बहुभाषी शिक्षा शिक्षार्थियों और समुदायों की भाषाई वास्तविकताओं एवं आवश्यकताओं पर आधारित होनी चाहिये।
    • इसे संवैधानिक प्रावधानों और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के त्रि-भाषा फॉर्मूले का भी सम्मान करना चाहिये।
    • आदर्शतः बहुभाषी शिक्षा का आरंभ शिक्षा के माध्यम के रूप में शिक्षार्थियों की मातृभाषा या घरेलू भाषा से होना चाहिये और फिर धीरे-धीरे अन्य भाषाओं को विषय या शिक्षा के अतिरिक्त माध्यम के रूप में पेश किया जाना चाहिये।
  • भाषाओं का शिक्षाशास्त्र: 
    • बहुभाषी शिक्षा के तहत शिक्षार्थी-केंद्रित और परस्पर संवादात्मक शिक्षाशास्त्र (interactive pedagogy) को अपनाना चाहिये जो भाषा जागरूकता और दक्षता को बढ़ावा दे।
    • इसे शिक्षार्थियों के बीच क्रॉस-लिंग्विस्टिक हस्तांतरण (cross-linguistic transfer) और बहु-साक्षरता कौशल (multiliteracy skills) को भी बढ़ावा देना चाहिये।
      • इसके अलावा इसमें सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक और संदर्भ आधारित उपयुक्त सामग्रियों एवं विधियों का उपयोग किया जाना चाहिये जो भाषाओं और संस्कृतियों की विविधता एवं समृद्धि को दर्शाते हों।
  • भाषाओं का आकलन: 
    • बहुभाषी शिक्षा में निष्पक्ष और वैध मूल्यांकन साधनों एवं मानदंडों का उपयोग किया जाना चाहिये जो विभिन्न भाषाओं में शिक्षार्थियों के अधिगम प्रतिफलों (learning outcomes) एवं प्रगति की माप करते हैं।
    • इसे शिक्षार्थियों को उनके भाषा कौशल में सुधार करने के लिये रचनात्मक प्रतिक्रिया और सहायता भी प्रदान करनी चाहिये।
    • इसके अलावा इसे बहुभाषी शिक्षा में शिक्षार्थियों की उपलब्धियों और प्रयासों को चिह्नित करना चाहिये तथा उन्हें पुरस्कृत करना चाहिये।

भारत के लिये बहुभाषी शिक्षा के लाभ:

  • मानव पूंजी में वृद्धि: 
    • बहुभाषी शिक्षा शिक्षार्थियों को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे शिक्षा, रोज़गार, अनुसंधान, नवाचार आदि में भाग लेने के लिये आवश्यक भाषा कौशल एवं दक्षताओं से लैस कर सकती है।
    • यह वैश्वीकृत दुनिया में उनकी रोज़गार पात्रता और गतिशीलता को भी बढ़ा सकती है।
  • भाषाई विविधता का संरक्षण: 
    • बहुभाषी शिक्षा भारत की भाषाई विविधता और विरासत को संरक्षित करने और उनका पुनरुद्धार करने में मदद कर सकती है।
    • यह विभिन्न भाषाओं के लोगों के भाषाई अधिकारों और सम्मान को भी बढ़ावा दे सकती है, विशेष रूप से उन लोगों के लिये जो हाशिये पर स्थित हैं।
  • राष्ट्रीय एकता को सशक्त करना: 
    • बहुभाषी शिक्षा विभिन्न भाषाओं के लोगों और विभिन्न संस्कृतियों के बीच परस्पर समझ एवं सम्मान को बढ़ावा दे सकती है।
    • यह भारत में विविध आबादी समूहों के बीच सामाजिक एकता और सद्भाव को भी बढ़ा सकती है।
  • अतिरिक्त भाषाएँ सीखने के लिये सुदृढ़ आधार का निर्माण: 
    • अपनी मातृभाषा में शिक्षा शुरू करने से राष्ट्रीय भाषा और अंग्रेज़ी सहित अतिरिक्त भाषाओं को सीखने के लिये एक सुदृढ़ आधार प्राप्त होता है, जिससे बहुभाषावाद को बढ़ावा मिलता है।
  • उच्च प्रतिधारण दर:
    • जब छात्रों के लिये सीखना आसान होता है तो उनके स्कूल में बने रहने और अपनी शिक्षा पूरी करने की संभावना भी अधिक होती है। 

शिक्षा में बहुभाषावाद से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ:

  • संसाधनों की कमी: 
    • बहुभाषी शिक्षा को लागू करने के लिये पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होगी जैसे प्रशिक्षित शिक्षक, उपयुक्त पाठ्यक्रम, गुणवत्तापूर्ण पाठ्यपुस्तकें, मूल्यांकन उपकरण और डिजिटल प्लेटफॉर्म।
      • हालाँकि कई स्कूलों में, विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में, इन संसाधनों की कमी पाई जाती है।
  • नीति समर्थन का अभाव: 
    • हालाँकि NEP 2020 और निपुण भारत मिशन (NIPUN) बहुभाषी शिक्षा की वकालत करते हैं, लेकिन नीति और व्यवहार के बीच अभी भी अंतर मौजूद है।
    • कई राज्यों ने अभी तक इन नीतियों को प्रभावी ढंग से अंगीकृत या क्रियान्वित नहीं किया है।
    • केंद्र एवं राज्य सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों, नागरिक समाज संगठनों और समुदायों जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच अधिक समन्वय एवं सहयोग की भी आवश्यकता है।
  • जागरूकता की कमी:
    • माता-पिता, शिक्षक, छात्र और नीति-निर्माताओं की एक बड़ी संख्या बहुभाषी शिक्षा के लाभों से अवगत नहीं है। 
      • कुछ भाषाओं या बोलियों के बारे में वे गलतफहमियों या पूर्वाग्रह के शिकार हो सकते हैं।
    • वे शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेज़ी को प्राथमिकता भी दे सकते हैं, जहाँ वे यह धारणा रखते हैं कि यह उनके बच्चों के भविष्य के लिये बेहतर अवसर प्रदान करेगी।
  • पाठ्यचर्या संरेखण:
    • राष्ट्रीय या मानकीकृत पाठ्यक्रम के साथ मातृभाषाओं या क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
    • यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि छात्रों को सर्वांगीण शिक्षा तक पहुँच प्राप्त हो और साथ ही उनकी भाषाई पृष्ठभूमि को भी महत्त्व दिया जाए।
  • आकलन और मूल्यांकन: 
    • विभिन्न भाषाओं में निष्पक्ष और मानकीकृत मूल्यांकन पद्धति विकसित करना कठिन सिद्ध हो सकता है। 
    • कई भाषाओं का उपयोग करते समय छात्रों का निष्पक्ष और लगातार मूल्यांकन सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
  • उच्च शिक्षा और रोज़गार की ओर संक्रमण: 
    • जबकि बहुभाषी शिक्षा प्राथमिक स्तर पर प्रभावी हो सकती है, उच्च शिक्षा या रोज़गार बाज़ार की ओर आगे बढ़ने के लिये अधिक व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा में दक्षता की आवश्यकता पड़ सकती है, जो उन छात्रों के लिये संभावित रूप से हानिकारक सिद्ध हो सकती है जो अपनी मातृभाषा में शिक्षित हुए हैं। 

शिक्षा में बहुभाषावाद के लिये नीतिगत अनुशंसाएँ:  

  • लचीला और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना: 
    • बहुभाषी शिक्षा को विभिन्न शिक्षार्थियों और समुदायों की आवश्यकताओं एवं संदर्भों के अनुरूप बनाया जाना चाहिये।
    • इसमें भारत में बोली जाने वाली सभी भाषाएँ और बोलियाँ शामिल होनी चाहिये, जिनमें जनजातीय भाषाएँ, सांकेतिक भाषाएँ, शास्त्रीय भाषाएँ, विदेशी भाषाएँ आदि सब शामिल हैं।
  • भाषा सीखने की निरंतरता का विकास करना: 
    • बहुभाषी शिक्षा, स्कूली शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिये।
    • इसे पूर्व-प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक संपूर्ण शैक्षिक प्रणाली में विस्तारित किया जाना चाहिये। इसे छात्रों के लिये उनके शैक्षणिक कॅरियर के विभिन्न चरणों में नई भाषाएँ सीखने का अवसर भी प्रदान करना चाहिये।
  • शिक्षक क्षमता को सुदृढ़ बनाना: 
    • बहुभाषी शिक्षा प्रदान करने में शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
    • उन्हें कई भाषाओं में प्रभावी ढंग से शिक्षण प्रदान कर सकने के लिये पर्याप्त प्रशिक्षण और सहायता दी जानी चाहिये। 
    • उन्हें भाषा अधिगम बढ़ाने के लिये अभिनव शिक्षाशास्त्र और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिये भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • माता-पिता और समुदायों को शामिल करना:
    • बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने में माता-पिता और समुदाय प्रमुख भागीदार होंगे।
    • उन्हें बच्चों के विकास और अधिगम के लिये बहुभाषावाद के लाभों के बारे में सूचित किया जाना चाहिये। 
    • उन्हें भाषा नीतियों और अभ्यासों के संबंध में निर्णयन प्रक्रियाओं में भी शामिल किया जाना चाहिये। 
  • बहुभाषावाद की संस्कृति का सृजन करना:
    • बहुभाषावाद को भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये एक मूल्यवान संपत्ति के रूप में महत्त्व दिया जाना चाहिये।
    • इसे सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे मीडिया, कला, खेल, शासन आदि में एकीकृत किया जाना चाहिये। 
    • इसे शिक्षा, रोज़गार, अनुसंधान आदि विभिन्न क्षेत्रों में भी मान्यता दी जानी चाहिये और बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

निष्कर्ष: 

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