कजाकिस्तान में क्यों हो रहा है इतना बवाल ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

तीन दशक पहले स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से कजाकिस्तान देश में सबसे विरोध का सामना कर रहा है। ईंधन या एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ एक साधारण विरोध के रूप में जो शुरू हुआ, वह पूरे देश में बवंडर की गति से हिंसा में बदल गया, जिससे पूर्व राजधानी अल्माटी में बड़ी घटनाएं हुईं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट तोकायेव के निवास के अलावा कई सरकारी कार्यालयों और नेताओं के घर में आग लगाने की कोशिश की है। वहीं राष्ट्रपति ने सुरक्षा बलों को “बिना किसी चेतावनी के गोली मारने” का आदेश दिया है। आखिर इस अशांति की वजह क्या है जिसके कारण अब तक देश में एक सप्ताह के विरोध प्रदर्शन में नागरिकों और पुलिस सहित दर्जनों लोग मारे गए हैं।

क्या वजह है हिंसा भड़कने की? कजाकिस्तान में गाड़ियों के ईंधन के लिए

लोग एलपीजी पर निर्भर हैं। अब तक इनकी कीमतों पर सरकारी नियंत्रण था मगर सरकार ने 1 जनवरी से नियंत्रण यह सोचकर हटा दिया कि देश में इसको सप्लाई बढ़ेगी मगर हुआ उलटा कीमते रातोरात दोगुना हो गई। लोग भड़क उठे। एलपीजी की कीमतों के अलावा देश में महंगाई दर 9 फीसदी से ऊपर बनी है, ऊपर से महामारी के कारण इकॉनमी ठप है। ऐसे में सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा है।

सिर्फ महंगाई की वजह से नाराजगी? 

नजरबायेव के शासन में आम लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया। विरोध हुआ तो हिंसक तरीके से दवाया गया। साल 2011 में झानाओजेन शहर में 16 श्रमिक काम की खराब स्थिति को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे जिन्हें पुलिस ने मौत के घाट उतार दिया। मीडिया पर भी कड़ा नियंत्रण था और विपक्ष बेअसर था। नज़रवायेब ने खुद को सत्ता में बनाये रखने के लिए संविधान में बदलाव किया और चुनावों में धांधली हुई थी। इन सब वजहों से भी लोगों में गुस्सा उबल रहा था।

पुतिन ने बगावत को कुचलने के लिए भेजी सेना

मध्य एशियाई देश कजाकिस्तान में पिछले कुछ दिनों से चल रही बगावत में अब एक नया मोड़ आ गया है। कजाकिस्तान की सड़कों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे नागरिकों का दमन करने के लिए अब रूसी सेना की एंट्री हो गई है। हालात काजाकिस्तान सरकार के हाथ से बाहर जा चुके हैं। राष्ट्रपति टोकायेब ने देश में चल रही बगावत को कुचलने के लिए रूस से सेना बुलाई है।

अब सबकुछ रूसी सैनिकों के हाथ में है। अपनी भौगोलिक स्थति के चलते अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बेहद अहम स्थान रखने वाले कजाकिस्तान की सरकार को बचाने के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भले ही अपनी सेना भेज दी हो। लेकिन कजाकिस्तान के हालात से सबसे ज्यादा परेशान उसका एक और पड़ोसी मुल्क चीन है।

सीएसटीओ शांति-रक्षक बल

सीएसटीओ कुछ देशों का समूह है जिसको सोवियत संघ के पतन के बाद स्थापित किया गया था. इसके सदस्यों में रूस, कजाकिस्तान, बेलारूस, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और आर्मेनिया जैसे देश शामिल हैं। रूस कजाकिस्तान के साथ सबसे लंबी सीमा साझा करता है, कजाकिस्तान की आबादी में करीब 19 प्रतिशत जातीय रूसी हैं। रूस के नेतृत्व वाले सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ ) की फोर्स में कथित तौर पर लगभग 2,500 सैनिक हैं।

राष्ट्रपति टोकायव ने सेना भेजने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को शुक्रिया अदा किया है। रूस, कजाकिस्तान में गैस पाइपलाइनों, रूसी सैन्य ठिकानों और बैकोनूर में रूसी अंतरिक्ष स्टेशन जैसी जगहों की सेक्योरिटी के लिए कजाकिस्तान में पहले से मौजूद सेना में बढ़ोतरी करना चाहता है।

 कजाकिस्तान के जरिये विश्व विजेता बनने के मंसूबे पाल रहा चीन

कजाकिस्तान की इस बगावत पर चीन की भी पैनी नजर है। क्योंकि कजाकिस्तान के साथ ही चीन का वो सपना जुड़ा हुआ है जो उसके राष्ट्रपति शी जिनपिंग को विश्व विजेता बनाने के लिए देखा है। कजाकिस्तान ही वो देश है जहां से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने सबसे बड़े प्रोजक्ट बेल्ट एंड रोड परियोजना (बीआरआई) का आगाज किया था। चीन अपने प्रोडक्ट को जमीनी मार्ग से यूरोप भेजने की योजना में कजाकिस्तान का इस्तेमाल करना चाहता है और इसलिए कजाकिस्तान में चीन ने कई बड़े प्रोजेक्ट हाथ में लिए हैं।

यही नहीं अपनी एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी चीन की नजर कजाकिस्तान के गैस भंडारों पर है। अगर कजाकिस्तान की बगावत कामयाब हुई और वहां लोकतंत्र आया तो चीन का दुनियाभर में अपना आर्थिक साम्राज्य फैलाने का सपना मुश्किल में पड़ जाएगा। जिनपिंग के इसी सपने को टूटने से बचाने की जिम्मेदारी भी रूस की फौज पर आ गई है।

कजाकिस्तान में है गैस का अकूत भंडार

कजाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसके पास गैस और तेल का अकूत भंडार तो है लेकिन उसका फायदा वहां की आम जनता से ज्यादा वहां की एलीट वर्ग को मिलता है। साल 2021 खत्म होने के साथ ही सरकार ने गैस की कीमतों में दोगुना ज्यादा इजाफा कर दिया। ज्यादातर कजाक लोग एलपीजी को ही अपनी गाड़ियों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए। सरकारी ईमारतों में तोड़फोड़ और आगजनी शुरू हो गई।

इस प्रदर्शन के मद्देनजर राष्ट्रपति टोकायेब ने अपनी सरकार को बर्खास्त कर दिया। लेकिन लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ। दरअसल, ये गुस्सा पूर्व राष्ट्रपति नूर सुल्तान नजरबायेब के खिलाफ भी है। जो 1991 से लेकर 2019 तक कजाकिस्तान के तानाशाह थे।  टोकायेब को भी उन्हीं का दाहिना हाथ माना जाता है। कजाक की जनता को लगता है कि नजरबायेब और उनका परिवार अब भी अप्रत्यक्ष रूप से हुकूमत कर रहा है।

क्यों ओल्ड मैन गो के नारे लगे 

1991 में कजाकिस्तान सोवियत संघ से अलग होकर आजाद देश बना और नजर आए इसके पहले राष्ट्रपति बने तीन दशक तक सत्ता में रहे। इस दौरान तेल और गैस का उत्पादन बढ़ा और तेल का एक्सपोर्ट शुरू हुआ पूर्णिमा की आर्थिक तरक्की वहां की जनता को नहीं बल्कि नजरबायेव के करीबी लोगों को मिली। 2019 नजरबायेव अपने तोकायेव को सत्ता सौंपने के पीछे से कुछ सरकार चलाते रहे पूर्वी ना यही वजह है कि स्मार्ट सब लोगों का सब्र टूटा तो गुस्सा नजरबायेव फूटा रोड मैंगो के नारे लगने लगे।

अब आगे क्या?

कजाकिस्तान में प्रदर्शनकारियों को शांत कराने के लिए सरकार ने एलपीजी कीमतें कम करवा दी हैं, यहां तक कि पूरी कैबिनेट बर्खास्त कर दी है मगर प्रदर्शन कम होने का नाम नहीं ले रहे। जो कि प्रदर्शनकारियों का कोई नेता नहीं है इसलिए भी स्थिति डांवाडोल बनी हुई है और सरकार असहाय दिख रही है। वहीं पड़ोसी रूस इस उथल-पुथल को शांत कराने के लिए कजाकिस्तान में सोवियत गठबंधन वाली अपनी शांति सेना भेज रहा है।

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