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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस क्यों मनाया जाता है? - श्रीनारद मीडिया

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस क्यों मनाया जाता है?

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस क्यों मनाया जाता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 10 अक्तूबर को मनाया जाता है, यह एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये समर्थन जुटाना है।

भारत के संदर्भ में यह दिन देश की बढ़ती किशोर जनसंख्या (10-19 वर्ष की आयु) के सामने आने वाली मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाता है, जो इसकी भविष्य की समृद्धि और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2023 की थीम: मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है।
नोट: विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की स्थापना 10 अक्तूबर,1992 को वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ द्वारा की गई थी। तब से यह हर वर्ष मनाया जाता है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति:

मानसिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सेहत को संदर्भित करता है, जिसमें उसकी समग्र मानसिक और भावनात्मक स्थिति शामिल होती है।इसमें किसी व्यक्ति की तनाव से निपटने, अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने, स्वस्थ रिश्ते बनाए रखने, उत्पादक रूप से काम करने और तर्कसंगत निर्णय लेने की क्षमता शामिल है।मानसिक स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य और खुशहाली का एक अभिन्न अंग है तथा यह शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्त्वपूर्ण है।

भारत में स्थिति:

भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज़ के आँकड़ों के अनुसार, ज्ञान की कमी, कलंक और देखभाल की उच्च लागत जैसे कई कारणों की वजह से 80% से अधिक लोगों की देखभाल सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
वर्ष 2012-2030 के दौरान मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (WHO) का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है।

मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी पहल:

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP)
आयुष्मान भारत – स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AB-HWC)
राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम
किरण हेल्पलाइन
राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम
युवा स्पंदन योजना (कर्नाटक)

भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे:

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है।
इस कमी के परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुँच है, शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक संसाधन होते हैं।

जागरूकता की कमी और कलंक :

भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को प्रायः कलंकित किया जाता है और गलत समझा जाता है।
कई व्यक्ति एवं परिवार सामाजिक भेदभाव के डर और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मदद लेने से झिझकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के प्रति किशोरों की संवेदनशीलता: किशोरावस्था बचपन से वयस्कता की ओर परिवर्तन का प्रतीक है, जो शारीरिक छवि के मुद्दों और सामाजिक अपेक्षाओं सहित विभिन्न चुनौतियों से भरी होती है।शैक्षणिक दबाव, भविष्य को लेकर चिंताएँ किशोरावस्था के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को प्रमुखता से प्रभावित कर सकती हैं।

भारत में किशोरों में गंभीर मानसिक बीमारी की व्यापकता 7.3% है।लैंगिक असमानताएँ: स्त्रियों एवं पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य में असमानताओं में उनके लैंगिक भिन्नताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।भारत में महिलाओं को अवसाद, चिंता और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है तथा उनके पास मदद मांगने हेतु स्वायत्तता अक्सर सीमित होती है।

NCRB की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2021 में भारत में कुल आत्महत्याओं में गृहिणियों की हिस्सेदारी 50% थी।
आर्थिक कारक: गरीबी और आर्थिक असमानता मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वृद्धि में योगदान देती है। वित्तीय अस्थिरता के चलते तनाव और शैक्षिक अवसरों की सीमितता भी मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकती है। ऑनलाइन और सोशल मीडिया का प्रभाव: मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन कंटेंट का बढ़ता प्रभाव एक अन्य चिंता का विषय है। साइबरबुलिंग, सामाजिक तुलना और गलत सूचना का प्रसार आदि मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले अन्य प्रमुख कारक हैं।
वृद्ध जनसंख्या और वृद्धजन मानसिक स्वास्थ्य: भारत में वृद्ध जनसंख्या में तीव्र वृद्धि को देखते हुए उनके लिये बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

अकेलापन, अवसाद और मनोभ्रंश अधिक उम्र के वयस्कों के बीच आम चिंताएँ हैं।आपदा और आघात: प्राकृतिक आपदाओं तथा अन्य दर्दनाक घटनाओं का मानसिक स्वास्थ्य पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।भारत बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं के प्रति काफी संवेदनशील है, इसके कारण मानसिक आघात तथा अभिघात-उपरांत तनाव विकार (Post-Traumatic Stress Disorder – PTSD) हो सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य हेतु सहायता केंद्रित मॉडल को अपनाना: नीति निर्माताओं को सामान्य चिकित्सा मॉडल से सहायता केंद्रित मॉडल को अपनाना चाहिये जो मानव जीवन के सार्वभौमिक कल्याण को समाहित करता है। उदाहरणतः अमेरिका में ‘होल स्कूल, होल कम्युनिटी, होल चाइल्ड’ (Whole School, Whole Community, Whole Child) मॉडल का सफल कार्यान्वयन, जो स्कूली परिवेश में पोषण, शारीरिक गतिविधि और भावनात्मक स्वास्थ्य जैसे कारकों पर विचार करके बच्चों की भलाई के लिये समग्र दृष्टिकोण अपनाता है।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे में वृद्धि: विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में अधिक मानसिक स्वास्थ्य क्लीनिक और सुविधाओं के निर्माण में निवेश करना चाहिये।
मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और परामर्शदाताओं सहित अधिक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना और उनकी भर्ती करना।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विषमता को पाटने तथा पहुँच बढ़ाने के लिये टेलीमेडिसिन एवं ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना चाहिये।प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ एकीकरण: प्रारंभिक जाँच और उपचार सुनिश्चित करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मौजूदा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
साथ ही सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और प्रबंधन के लिये प्राथमिक देखभाल प्रदाताओं को प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है।

शिक्षा में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करना:

प्रारंभिक जागरूकता और उन्मूलन को बढ़ावा देने के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को शामिल करने की आवश्यकता है।मानसिक स्वास्थ्य बीमा कवरेज: उपचार को अधिक किफायती और सुलभ बनाने के लिये चरणबद्ध तरीके से स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों के तहत मानसिक स्वास्थ्य कवरेज का विस्तार करने की आवश्यकता है।साथ ही ऐसी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है जो मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये बीमा समानता सुनिश्चित करती हैं।

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