विश्व कछुआ दिवस क्यों मनाया जाता है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कछुओं और उनके संरक्षण के महत्त्व को रेखांकित करने के लिये प्रतिवर्ष 23 मई को विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता है।
- इस दिवस की स्थापना वर्ष 2000 में वैश्विक स्तर पर कछुओं के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उन्हें बढ़ावा देने के लिये की गई थी।
कछुओं से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- परिचय: कछुए (Order Testudines) सरीसृप हैं जो अपनी पसलियों (Ribs) से विकसित एक उपास्थिल कवच (Cartilaginous Shell) द्वारा पहचाने जाते हैं, जो एक सुरक्षा कवच का निर्माण करता है।
- अन्य कवचधारी प्राणियों के विपरीत कछुए अपने कवच को न तो त्याग सकते हैं और न ही उससे बाहर आ सकते हैं, क्योंकि यह उनके कंकाल (Skeleton) का अभिन्न अंग है।
- निवास स्थान: कछुए स्वच्छ जल और समुद्री (लवणीय) दोनों वातावरणों में रह सकते हैं।
- टॉर्टोइस से भिन्नता: टॉर्टोइस (Tortoises) अन्य कछुओं से मुख्य रूप से इस कारण भिन्न होते हैं कि वे पूर्णतः स्थलीय होते हैं, जबकि कछुओं की कई प्रजातियाँ आंशिक रूप से जलीय होती हैं।
- हालाँकि सभी टॉर्टोइस कछुए हैं, लेकिन सभी कछुए टॉर्टोइस नहीं हैं।
- दोनों आम तौर पर शर्मीले, एकांतप्रिय जानवर हैं जो भूमि पर घोंसलों का निर्माण कर अपने अंडों को सुरक्षित रखते है।
- प्रमुख विशेषताएँ: कछुए असमतापी (बाह्यउष्मीय) प्रजाति हैं, अर्थात वे उष्ण और शीत वातावरण के बीच विचरण करके अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं।
- अन्य बाह्यतापी जीवों जैसे कि कीट, मत्स्य और उभयचरों की तरह, इनमें धीमी चयापचय क्रिया होती है तथा ये भोजन या जल के बिना भी लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।
- प्रमुख प्रजातियाँ:
- समुद्री कछुए: लॉगरहेड टर्टल, ग्रीन टर्टल, हॉक्सबिल टर्टल, लेदरबैक टर्टल, ओलिव रिडले टर्टल और फ्लैटबैक टर्टल।
- स्वच्छ जल के कछुए: स्नैपिंग टर्टल, पेंटेड टर्टल, रेड ईयर्ड स्लाइडर टर्टल, स्पाइनी सॉफ्टशेल टर्टल और मस्क टर्टल आदि।
भारत में टर्टल प्रजाति की स्थिति क्या है?
- भारत में मीठे जल के कछुओं की 30 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 26 को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।
- असम, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में कछुओं की विविधता अधिक है।
- भारत में समुद्री कछुओं की 5 प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं : ऑलिव रिडले, ग्रीन, लॉगरहेड, हॉक्सबिल और लेदरबैक। ये सभी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित हैं।
- संरक्षण स्थिति ( IUCN रेड लिस्ट के अनुसार ):
- ऑलिव रिडले, लॉगरहेड और लेदरबैक : सुभेद्य
- ग्रीन टर्टल : लुप्तप्राय
- हॉक्सबिल टर्टल : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- खतरे: कछुओं को कई गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें आवासीय क्षेत्र का विनाश, जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक प्रदूषण, अवैध वन्यजीव व्यापार शामिल है। उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल प्रमुख तस्करी के केंद्र हैं।
- संरक्षण प्रयास: उत्तर प्रदेश कुकरैल (लखनऊ), सारनाथ (वाराणसी), चंबल (इटावा) और प्रयागराज में 30 किलोमीटर के कछुआ अभयारण्य में कछुआ संरक्षण केंद्र स्थापित करके कछुओं के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
- वन विभाग अवैध व्यापार पर सक्रिय रूप से अंकुश लगाता है, विशेष रूप से पीलीभीत में, जिसकी WCCB के ऑपरेशन कूर्मा के तहत पहचान हुई, एक प्रमुख तस्करी केंद्र है।
- इन प्रयासों को और मज़बूती देने हेतु पीलीभीत टाइगर रिज़र्व में नदी माला के तट पर एक कछुआ संरक्षण एवं अनुसंधान केंद्र स्थापित किया जा रहा है, जिसे CAMPA द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
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