क्या ईरान पर भीषण बमबारी करेगा इजरायल?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
ईरान ने की युद्द विराम की अपील
वहीं, दूसरी ओर ईरान ने कतर, सऊदी अरब और ओमान से ट्रंप से इजरायल पर तत्काल युद्ध विराम के लिए दबाव बनाने के लिए कहा है। ईरान ने अरब देशों से कहा कि है कि वो अमेरिका से बात करे ताकि, अमेरिका, इजरायल को युद्ध विराम के लिए तैयार करे।
दरअसल, सबसे पहले ईरान की राजनीति को समझते हैं। ईरान की सत्ता रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (IRGC) और कुछ कट्टरपंथियों के हाथों में है, जिसे जनता ने चुनावी प्रक्रिया के जरिए नहीं चुना है। उन्हें तख्तापलट करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वो पहले से ही सत्ता का आनंद ले रहे हैं।अगर ईरान में विद्रोह के बाद अराजकता की स्थिति बन भी जाती है तो ईरान में कोई ऐसी ताकतवर विपक्षी गुट नहीं है, जिस पर वहां की जनता भरोसा दिखा सके।
विपक्षी नेता के रूप में एक चेहरे की अक्सर चर्चा होती है, वो हैं ईरान के पूर्व शाह के बेटे और पूर्व क्राउन प्रिंस रजा पहलवी, जिन्हें 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया था फिलहाल वो EXILE यानी निर्वासन की जिंदगी जी रहे हैं।
अब बात करते हैं ईरान की इस्लामिक क्रांति (1979) की। इसे 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं में से एक कही जाती है। इस क्रांति ने ईरान को इस्लामिक रिपब्लिक देश में बदल कर रख दिया था।
क्यों हुई ईरान में इस्लामिक क्रांति?
साल 1979 से पहले ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन था। यह एक राजशाही शासन था। शाह मोहम्मद रजा पहलवी की तानाशाही नीतियों से वहां की जनता में असंतोष बढ़ने लगा था।
दूसरी तरफ दुनिया के सबसे बड़े शिया बहुल देश के शाह का झुकाव अमेरिका और इजरायल की तरफ था। यह बात वहां के शिया मौलवियों को रास नहीं आ रही थी। ईरान की पश्चिमीकरण की नीतियों ने शिया मौलवियों और धार्मिक नेताओं को नाराज कर रखा था।
इसी बीच 1978 के अगस्त महीने में ईरान के रेक्स सिनेमा हॉल में आग लग गई थी, जिसमें 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद शाह की नीतियों के खिलाफ देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
छात्र, मजदूर, धार्मिक नेता, मौलवियों और बुद्धिजीवियों ने खुलकर ईरान के शाह के खिलाफ आवाज उठाई। विरोध प्रदर्शनकारियों को फ्रांस में रह रहे अयातुल्लाह खामेनेई से निर्देश मिल रहे थे।
जनवरी 1979 तक पूरे ईरान में हालात गृहयुद्ध जैसे हो गए थे और प्रदर्शनकारी निर्वासन में रह रहे अयातुल्लाह खामेनेई की वापसी की मांग कर रहे थे। देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शन की वजह से शाह को अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता होने लगी। जनवरी 1979 में वो ईरान छोड़कर चले गए।
इस्लामिक रिपब्लिक ईरान का जन्म…
वहीं, दूसरी ओर शाह को प्रमुख आलोचकों में से एक अयातुल्लाह खामेनेई फरवरी 1979 में वतन वापसी हुई। इसके बाद अयातुल्लाह खामेनेई ने ईरान में इस्लामिक शासन की स्थापना की। ईरान ने इस्लामी कानूनों (शरिया) पर आधारित शासन प्रणाली को अपना लिया। यहीं से सुप्रीम लीडर बनने की कहानी शुरू हुई।
शाह के सबसे बड़े आलोचक अयातुल्लाह रुहोल्लाह खामेनेई को ईरान में एक हीरे के तौर पर देखा जाने लगा था। उन्हें देश का पहला सुप्रीम लीडर और इस्लामिक रिपब्लिक ईरान का संस्थापक बनाया गया। उनके निधन के बाद यह पद अयातुल्लाह अली खामेनेई को सौंपी गई।गौरतलब है कि ईरान में सुप्रीम लीडर बनने के लिए अयातुल्ला होना जरूरी है। यानि यह पद शीर्ष स्तर के धर्मगुरु को ही दिया जा सकता है।
ईरान में सुप्रीम लीडर और राष्ट्रपति की क्या है भूमिका?
ईरान की राजनीति की सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये है कि भले ही ईरान के राष्ट्रपति को वहां की जनता चुनती है लेकिन देश के हर बड़े फैसले सुप्रीम लीडर लेते हैं यानी देश की बागडोर सुप्रीम लीडर के हाथों में होती है।ईरान के राजनीतिक ढांचे को कुछ यूं समझ सकते हैं कि एक और जहां देश में जनता द्वारा चुनी गई संसद और राष्ट्रपति है। वहीं, दूसरी ओर सर्वोच्च नेता द्वारा नियंत्रित अनिर्वाचित संस्थाएं हैं। दोनों मिलकर देश चलाते हैं।
साल 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद अब तक सिर्फ दो ही लोग हैं जो सर्वोच्च नेता के पद तक पहुंच पाए हैं। सबसे पहले थे अयातुल्लाह रुहोल्ला खुमैनी, जो कि ईरानी गणतंत्र के संस्थापक थे। वहीं दूसरे अयातुल्लाह खामेनेई हैं।
वहीं, ईरान में राष्ट्रपति दूसरे सबसे ताकतवर शख्स होते हैं। वह कार्यकारिणी का प्रमुख होता है और उसका दायित्व संविधान का पालन करना है। गौरतलब है कि वहां राष्ट्रपति पद के लिए हर साल में चुनाव होता है।
जब हिजाब के खिलाफ ईरान में उठी थी आवाज
यह बात सच है कि ईरान की सभी लोग मौजूदा सरकार की नीतियों से खुश नहीं है। आपको याद है कि साल 2022 में ईरान के अंदर एक विद्रोह ने जन्म लिया था।
“वूमन लाइफ फ्रीडम, जिसे दुनिया हिजाब विरोधी आंदोलन के नाम से भी जानती है। ईरान की महिलाओं ने शक्त इस्लामिक ड्रेस कोड पर खुलकर आवाज उठाने का फैसला किया था। हिजाब का विरोध करने वाली 22 वर्षीय महिला महसा अमीनी की मौत हो गई थी।उसकी मौत के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन ने और विकराल रूप ले लिया था, लेकिन मजबूत विपक्षी न होने की वजह से मौजूदा सरकार ने इस आंदोलन को दबा दिया, लेकिन आज भी वहां कुछ ऐसे लोग हैं जो अयातुल्ला खामेनेई सरकार की नीतियों की कट्टर सोच को पसंद नहीं करते।
लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता है करीब 9 करोड़ की आबादी वाले देश में ज्यादातर लोग आज भी अयातुल्ला खामेनेई सरकार के साथ खड़े हैं।
कभी ईरान के शहरों में था लंदन-पैरिस जेसा माहौल
इस्लामिक क्रांति से पहले ईरान में पश्चिम का जबरदस्त प्रभाव था। वहां न तो पहनावे और रहन-सहन को लेकर कोई पाबंदी थी और न ही धार्मिक पाबंदियां।उस समय ईरान को इस्लामी देशों के बीच सबसे अधिक आधुनिक माना जाता था और ईरान का माहौल पेरिस या लंदन जैसे शहरों से किसी मायने में कम नहीं था।
कैसा था प्राचीन काल का ईरान?
आज का ईरान प्राचीन काल के ईरान से बिल्कुल अलग है। ईरान को तब पर्शिया या फारस के नाम से जाना जाता था। उससे पहले यह आर्याना कहलाता था। तब फारस देश में आर्यों की एक शाखा का निवास था।माना जाता है कि वैदिक काल में फारस से लेकर वर्तमान भारत के काफी बड़े हिस्से तक सारी भूमि आर्यभूमि कहलाती थी, जो अनेक प्रदेशों में विभक्त थी।जिस प्रकार भारतवर्ष में पंजाब के आसपास के क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाता था, उसी प्रकार फारस में भी आधुनिक अफगानिस्तान से लगा हुआ पूर्वी प्रदेश अरियान व एर्यान कहलाता था, जिससे बाद में ईरान नाम मिला।