क्या विवाह की आयु सीमा बढ़ाने पर माता-पिता उसकी शिक्षा पर अधिक ध्यान देंगे?

क्या विवाह की आयु सीमा बढ़ाने पर माता-पिता उसकी शिक्षा पर अधिक ध्यान देंगे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्व बैंक का यह भी आकलन है कि अगर हर लड़की 12 साल की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करे, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमाई 30 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ सकती है. किशोरावस्था में विवाह से किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पादन को कम-से-कम 1.7 प्रतिशत की क्षति पहुंचती है. बात लड़कियों के अधिकार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी युवा पीढ़ी के निर्माण की बात है,

जो पूरी तरह से स्वस्थ और शिक्षित हो. शरीर स्वस्थ होगा, तो मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ होंगे. ऐसे में किशोरावस्था में विवाह और प्रसव को हतोत्साहित करने की बड़ी आवश्यकता है. जब परिपक्व आयु में महिला बच्चे को जन्म देती है, तो वह उसकी बेहतर परवरिश कर सकती है, बेहतर जीवन दे सकती है. एक किशोर लड़की अपने जीवन को ठीक से नहीं संभाल पा रही है, तो फिर वह अपने बच्चे को कैसे संभाल सकेगी. आशा है कि शादी की न्यूनतम आयु बढ़ाने पर देश में एक गंभीर विमर्श होगा और उचित निर्णय लिया जायेगा.

हिमाचल प्रदेश सरकार ने महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को 18 साल से बढ़ा कर 21 साल करने का निर्णय लिया है. इस निर्णय को लागू करने के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन किया जायेगा. हमारे देश में शादी या सहमति की न्यूनतम आयु को लेकर समय-समय पर चर्चा होती रही है. हिमाचल सरकार के इस निर्णय के बाद इस बहस का फिर से खड़ा होना स्वाभाविक है.

बीते वर्ष सितंबर में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि विवाह या सहमति की न्यूनतम आयु को 18 साल से घटा कर 16 साल करना उचित नहीं होगा. आयोग ने चेताया था कि अगर ऐसा हुआ, तो इसके कई नुकसान होंगे तथा बाल विवाह और बच्चों की तस्करी रोकने के प्रयासों को भी धक्का लगेगा.

साथ ही, बच्चों के विरुद्ध होने वाले यौन अपराधों को रोकने के लिए बना पॉक्सो कानून भी कमजोर हो जायेगा. सोलह साल की आयु के पक्ष में तर्क यह दिया गया था कि अब लड़के और लड़कियां दोनों इस उम्र में मानसिक और शारीरिक रूप से परिपक्व हो रहे हैं तथा यौन संबंधों के बारे में जानने-समझने लगे हैं. ऐसे मामले भी अदालतों के सामने आते हैं, जिनमें 14, 15 और 16 साल के लड़के-लड़कियां यह कहते हैं कि उन्हें पति-पत्नी के रूप में रहने की अनुमति दी जाए.

ये तर्क त्रुटिपूर्ण हैं. परिपक्वता को बहुत विखंडित रूप से परिभाषित किया जाता है. परिपक्वता का अर्थ यह होता है कि आप सही गलत के बीच निर्णय लेने की स्थिति में हों. हम नहीं कह सकते हैं कि सोलह साल के लड़के व लड़कियों में ऐसी परिपक्वता होती है. केवल यौन संबंधों की जानकारी होने से किसी को परिपक्व मानना पूर्णतः अनुचित होगा. जहां तक सहमति की आयु 21 वर्ष करने की बात है, तो केंद्र के स्तर पर भी और अन्य चर्चाओं में भी यह विषय पहले आया है.

महिलाओं के लिए जीवन साथी चुनने में मानसिक से कहीं अधिक शारीरिक परिपक्वता की आवश्यकता है. गर्भधारण, गर्भावस्था तथा शिशु के जन्म के बाद उसे पोषण उपलब्ध कराने के लिए स्वस्थ शरीर आधारभूत आवश्यकता है. हिमाचल सरकार के इस निर्णय का विरोध होगा. ऐसा विरोध तब भी हुआ था, जब लड़कियों के लिए सहमति की न्यूनतम आयु 14 वर्ष थी और उसे बढ़ाने के प्रयास हो रहे थे. वर्ष 1954 से पहले लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 14 साल थी, जिसे उस साल 18 वर्ष कर दिया गया था.

चोरी-छुपे बाल विवाह की बात छोड़ दें, तो आयु बढ़ाने का लाभ यह हुआ कि जो शिशु मृत्यु दर 1951 में प्रति हजार 116 थी, वह 2019-21 में 35 पर आ गयी. अल्पायु में जो लड़की मां बनती है, तो केवल उसका स्वास्थ्य ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि शिशु के लिए भी खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 15 से 19 साल की जो लड़की मां बनती है, तो गर्भाशय में संक्रमण, उच्च रक्तचाप आदि जैसे जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाते हैं. वहीं 20 से 24 साल की महिलाएं मां बनती हैं, तो मां और शिशु दोनों स्वस्थ रहते हैं.

अगर विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष कर दी जाती है, तो इससे लड़कियों के जीवन पर बहुत सकारात्मक असर पड़ेगा. आज भी देश में, विशेषकर ग्रामीण अंचलों में, माता-पिता बच्ची के 18 साल होने की प्रतीक्षा करते हैं और इस आयु में आते ही उसकी शादी कर देते हैं. इस आयु तक उनकी कॉलेज की शिक्षा पूरी नहीं हो पाती है. विवाह की आयु सीमा बढ़ाने पर माता-पिता उसकी शिक्षा पर अधिक ध्यान देंगे.

जो लड़कियां महाविद्यालय स्तर की शिक्षा प्राप्त कर लेती हैं, वे अपेक्षाकृत अधिक परिपक्व होती हैं, अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक होती हैं. इस स्थिति का समूचे भारतीय समाज पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा. इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन तथा विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि किशोरावस्था में विवाह की वजह से आयी शिक्षा में रुकावट उनके अर्थोपार्जन में औसतन नौ प्रतिशत की कमी का कारण बनती है. इसका परिवार और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है.

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